हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा: हाय रे हाय मैंने देखा…

एयरकंडीशंड डिब्बों में हजारों किलोमीटर की ‘पैदल’ यात्रा करके मैं कश्मीर पहुँचा। वही कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है। मेरे स्वागत में चारों ओर भीड़ हो गयी थी। उसी भीड़ में एक समूह की तरफ इशारा करके किसी ने मुझे बताया कि ये जेहादी आतंकवादी हैं। मैंने उनको ध्यान से देखा, उन्होंने भी […]

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खट्टा-मीठा: उनका सुपरहिट भाषण

उनको भाषण देने का शौक है। कोई मौका हो या न हो, पर वे भाषण जरूर देते हैं। वे प्रायः दूसरों के लिखे हुए भाषण पढ़ते हैं, पर कई बार अपने मन से भी बोल देते हैं। वे बोलते पहले हैं और सोचते बाद में हैं। कई बार तो उन्हें यही पता नहीं होता कि […]

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खट्टा-मीठा : ठग को महाठग

“सेर को सवा सेर” यह लोकोक्ति अब पुरानी हो गयी है। अब एक नयी कहावत बनी है- “ठग को महाठग”। जो कोई अपनी बातों के जाल में फँसाकर भोले-भाले लोगों का माल हड़प लेता है, उसे ठग कहते हैं, परन्तु जो ठगों को भी ठग लेता है, उसे महाठग कहा जाता है। जी हाँ, आप […]

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खट्टा-मीठा: इदन्न मम

जब कोई आर्यसमाजी हवन करता है, तो आहुति डालते समय प्रायः ऐसा मंत्र बोलता है- ‘ओम् इन्द्राय स्वाहा। इदम् इन्द्राय, इदन्न मम।’ लगभग हर आहुति के साथ ‘इदन्न मम’ जोड़ा जाता है, जिससे त्याग की भावना बढ़ती है। लेकिन आजकल भारत के राजनीतिज्ञों में त्यागी-बैरागियों का एक वर्ग पैदा हुआ है, जो करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति […]

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खट्टा-मीठा : हमसे मत पूछिए

एक समय था जब समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में एक स्तम्भ अवश्य आता था– “हमसे पूछिए “।इनमें विशेषज्ञ लोग पाठकों के प्रश्नों के उत्तर दिया करते थे। अब तो ये स्तम्भ समाप्त हो गये हैं, क्योंकि लोग सीधे गूगल बाबा से पूछ लेते हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका काम पूछताछ किये बिना […]

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खट्टा-मीठा : कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर

लाहौल विला कूवत! देश-धर्म के लिए मरने में भी कोई तुक है? मरना ही है, तो किसी अस्पताल में जाकर ठाठ से मरना चाहिए। पंचतारा अस्पताल में एसी कमरे में नरम गुदगुदे बिस्तर पर आराम से लेटे हुए प्राण त्यागने में जो सुख है, वह और कहीं मरने में कहाँ है? उससे पहले मजे में […]

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पंचतारा चिंतन शिविर

पार्टी की दुर्गति लम्बे समय से हो रही थी। वह हर जगह दुत्कारी जा रही थी। हर जगह पार्टी को पटकनी खानी पड़ रही थी। जो भी चाहता था, वही पार्टी को उठाकर दे मारता था। पाँच-सात गालियाँ सुनाता वे अलग से। स्थिति सहनशक्ति से बाहर हो जाने के कारण उन्हें चिन्तन करने के लिए […]

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खट्टा-मीठा : टोपीलाल के हसीन सपने

टोपीलाल का असली नाम तो कुछ और था, परन्तु वे अपने सिर पर हमेशा नेतागीरी की प्रतीक लाल रंग की टोपी लगाये रखते थे, इसलिए लोगों ने उनका नाम टोपीलाल रख दिया था और उनका असली नाम भूल गये थे। यों वे कभी-कभी ७२ छेदों वाली जालीदार टोपी भी लगा लेते थे, पर ज़्यादातर लाल […]

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खट्टा-मीठा : लड़की नहीं, लड़ती हूँ

कोई पचपन साल की अधेड़ औरत यदि खुद को लड़की कहे, तो उस पर हँसी से ज़्यादा तरस आता है। दादी-नानी बनने की उम्र में लड़की बनने का शौक़ चर्राया हो, तो ब्यूटी पार्लर वाली भी आत्महत्या कर लेंगी। “सींग कटाकर बछड़े बनने” का मुहावरा ऐसे ही उदाहरणों से निकला होगा। वैसे औरतों के लिए और विशेषकर अधेड़ उम्र की औरतों के लिए लड़ना कोई अजूबा नहीं है। इसका नजारा रोज़ ही आप किसी बस्ती के सार्वजनिक नल पर देख सकते हैं। “पहले मैं भरूँगी-पहले मैं भरूँगी” के वाक् युद्ध के साथ-साथ हाथ नचा-नचाकर जो महायुद्ध होता है, उसको देखकर बस्तीवालों का अच्छा मनोरंजन हो जाता है, वह भी बिना टिकट। औरतों की इस लड़ाका-क्षमता का सही सदुपयोग राजनैतिक दल ही कर पाते हैं। वे अपनी रैली के दिन दिहाड़ी पर ऐसी औरतों को इकट्ठा कर  ले जाते हैं, फिर वे किसी सरकारी कार्यालय के सामने […]

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खट्ठा-मीठा : अनाम आत्म-बलिदानी

किसान आन्दोलन के नेताओं को रंज है कि एक वर्ष से भी अधिक चले इस आन्दोलन में 700 किसानों का बलिदान हो गया, पर सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली। मैं उन नेताओं की बात पर अविश्वास नहीं करता। हालांकि वे 700 तो क्या 7 किसानों के नाम भी नहीं बता पाये, जो वहाँ […]