तुम मुझको जीवन देती हो
बंधन, चिंतन, अनुरंजन, तुम भावों को कल्पन देती हो
समझ ना पाईं अब तक तुम, तुम मुझको जीवन देती हो
आशा, जिज्ञासा, अभिलाषा, मुझको परिवर्तन देती हो
समझ ना पाईं अब तक तुम, तुम मुझको जीवन देती हो
सुमति, कुमति, संतति प्रियवर, तुम नव दर्शन देती हो
समझ ना पाईं अब तक तुम, तुम मुझको जीवन देती हो
संवेदन, स्पंदन, तर्षण, तुम मुझको अभिनन्दन देती हो
समझ ना पाईं अब तक तुम, तुम मुझको जीवन देती हो
काश, आस, विश्वाश , प्रिये तुम बस आश्वासन देती हो
समझ ना पाईं अब तक तुम, तुम मुझको जीवन देती हो
__________________________अभिवृत
बहुत सुन्दर !
आपका हार्दिक आभार ज्योत्स्ना जी …स्नेहाशीष सदा बनाये रक्खें
bahut sundar
आपका हार्दिक आभार सविता जी …स्नेहाशीष सदा बनाये रक्खें
आपकी कविता पढ़कर मन खुश हो गया.
आपका हार्दिक आभार धनंजय जी …स्नेहाशीष सदा बनाये रक्खें
कविता बढ़िया है.
आपका हार्दिक धन्यवाद नीलेश जी
आपकी कविता तो अच्छी है, पर कई शब्दों का अर्थ समझ में नहीं आया, जैसे अनुरंजन, तर्षण, स्पंदन, संवेदन आदि. इनकी जगह सरल प्रचलित शब्द होते तो ज्यादा बेहतर होता.
आपके सुझाव के लिए आपका हार्दिक आभार जगदीश जी ….मैं कठिन शब्दों के अर्थ भी लिख सकता था कविता से साथ पर ये उसकी नेसर्गिकता के साथ अन्याय होता ….कुछ समझने के लिए कुछ प्रयास भी करना चाहिए मेरे विचार से …नहीं तो सरलता के कारण हिंदी अपना मूल स्वाभाव ही खो देगी
मैं जगदीश जी के सुझाव से सहमत हूँ. हर पाठक का हिंदी भाषा ज्ञान उतना नहीं होता कि कठिन शब्दों को भी समझ सके. यदि आप अपनी कविता को सभी तक पहुँचाना चाहते हैं, तो भाषा का ध्यान और शब्दों के चयन में सावधानी रखनी होगी. वैसे आपकी इच्छा.
वाह ! वाह ! बहुत सुन्दर प्रेम कविता.
आपका हार्दिक आभार विजय जी ….आपके स्नेहाशीष से उत्साह बढ़ जाता है