लघुकथा : यादों का धरातल …
अचानक द्वार पर किसी ने दस्तक दी | रूपा देवी चौंकी ! इस वक्त कौन हो सकता है ? दीवार के सहारे से चल कर रूपा ने दरवाजा खोला | “अरे विमला तुम !”
“हाँ माँ मुझे कल ही पडौसी रामू चाचा ने खबर करी कि आप बहुत दिनों से बीमार है.”, विमला ने चिन्तित्त होते कहा , ” क्या भैया नहीं आये तुम्हे लेने ? ”
“बेटी ,वो तो नहीं आये हाँ ,उनका फोन जरुर आया कि ये घर बेचकर मुझे विदेशी धरती पर ले जाना चाहते है | जिसे मैंने और तेरे पिता जी ने बहुत मेहनत और प्यार से बनवाया था | ‘कल एक आसामी घर देखने भी आया था |”
“कोई बात नहीं माँ आपको कितनी जगह चाहिए? आप मेरे घर चलिए वहीँ मेरे साथ रहो |”
“नहीं बेटा में अपने ही घर में अंतिम साँस लेना चाहती हूँ | वैसे भी ज्यादा टाइम नहीं है मेरे पास |”, माँ की आँखों से आँसू छलकने लगे|
बेटी समझा- बुझाकर माँ को अपने घर ले गयी | बेटे ने घर का सौदा पक्का कर लिया |
समय आ गिया है , जीते जी अपनी जयदाद बच्चों को मत दो , हाँ विल कर सकते हो . जैसे ही आपने बच्चों को दिया आप बेसहारा हो जायेंगे . इसी तरह की कहानी बहन मंजीत ने लिखी है , रिश्तो का कतल , अवश्य पड़नी चाहिए .
आपका कहना सही है, भाई साहब.
लघु कथा अच्छी है. वास्तविकता भी यही है.
धन्यवाद, धनन्जय जी.
बच्चो को माँ बाप से ज्यादा चिंता धन संपत्ति की होती है.