कहानी

कहानी : गर्व अपनों पर…

उमाकांत जी आज बहुत परेशान थे कारण, अपने दोस्त से जो आज सुना उसे वो अपने दिमाग से भरसक प्रयास करने पर भी नहीं निकाल पाए है|

 ”जाओ आप! ,यहाँ से कहीं, तो हम चैन से जिये,कब तक आपको झेलते रहेंगे | प्रेम शंकर की बहु ने उसे और भाभी जी को कहा | वैसे तो,सुबह टहलने जाते समय रोज ही दोस्तों से ये सुनता हूँ- बहु ने आज बहुत झगड़ा किया,बहु ने मुझे दूध देने से मना किया,किसी की बहु ने सास को काम वाली बाई बनाकर रखा हुआ है ;और भी ना जाने क्या -क्या| पर प्रेम शंकर की बहु ने अपने वृद्ध सास -ससुर को इस उम्र मे घर से चले जाने को कहा | ये किसी भी माता -पिता के लिए ये बहुत बड़े दुःख की बात होगी ,उनके ही बच्चे उनको उनके ही घर से बुढ़ापे मे देखभाल की जगह घर से चले जाने को कहे|
बेटे ने भी बहु के कथन का कोई विरोध नहीं किया| बहुत विचारणीय प्रश्न है ये तो, उमाकांत जी का मन बहुत विचलित है ये सब जानकर| कॉलोनी के कृष्ण मंदिर से हर वर्ष तीर्थ यात्रा के लिए बस जाती है | इस बार भी उज्जैन  की यात्रा के लिए बस जा रही है| उमाकांत जी भी अपनी पत्नी रूपा के साथ उस बस मे यात्रा कर रहे है| उनके मन मे अभी भी वो विचार चल रहा है| और उन्होंने मन ही मन तय किया कि वो तीर्थ यात्रा से आते ही अपनी पत्नी को लेकर वृंदावन चले जायेंगे | वहां उनका एक दोस्त एक धर्मशाला का मालिक है उस धर्मशाला मे एक कमरा किराये पर लेकर रहने लगेंगे |
अपनी पत्नी रूपा को अपने मन की बात बताकर आश्वस्त हो गये | रूपा को पति से ये सब सुनकर अजीब लगा| पर अभी इस समय वो इस विषय मे पति से कोई वाद-विवाद नहीं करना चाहती थी|
दस दिन की यात्रा खत्म करके जब घर आये ; तो आने के चार दिन बाद ही अपना सामान समेटने लगे | रूपा ने उमाकांत जी को कहा- ”आप एक बार और सोच ले, हमारे बेटे-बहु कितना ख्याल रखते है, हमारे इस तरह चले जाने से बच्चो की कितनी जग हंसाई होगी , जरा इस बारे मे तो सोचो; और फिर बेटे-बहु और बच्चो के बिना क्या हम चैन से रह सकेंगे? वरुण तो आपके साथ खाना खाने के लिए रोज ही ऑफिस से जल्दी घर लौट आता है. क्या वो आपके बिना अकेले खा सकेगा ? क्या आप भी ऐसा कर सकोगे ?” उमाकांत जी पत्नी की बाते समझकर भी मानना नहीं चाहते थे| इस वक्त उनका दिमाग उनका साथ नहीं दे रहा था |
बहु ने देखा तो बोली- ”ममी -पापा जी आप कहीं जा रहे हो ? लाओ मै आपका बैग पैक करदूं ! वैसे आप कहाँ जा रहे है ?” बहु रीना ने बड़े प्यार और आत्मीयता से पूछा|
”हम दोनों अब वृन्दावन जाकर रहेंगे; यहाँ नहीं ,इसलिए वहीँ जाने की तैयारी कर रहे है|” उमाकांत जी ने बहु के सवाल का जवाब दिया |            ये सुनकर बहु ने चिन्तित और दुखी होकर पूछा- ”आप हमे क्यों छोडकर जाना चाहते है? क्या हमसे कोई ग़लती हुई है , जो आप अपना वरद हस्त हमारे सर पर से हटाना चाहते है ? बच्चे और हम आपके बिना रहने का सोच भी नहीं सकते| आपने हमे अकेला करके जाने का कैसे सोच लिया| रानू ,रिंकू क्या आप दोनों के बिना रह पाएंगे ?” बहु ने कहा |
शाम को जब बेटा वरुण घर आया तो पत्नी ने उदास होते हुए कहा ” ना जाने हमसे ऐसी क्या ग़लती हुई, जो मम्मी -पापा हमे छोडकर वृन्दावन रहने को जा रहे है ? क्या ! ऐसा कैसे हो सकता है !” वरुण पत्नी को बिना कोई जवाब दिए मम्मी -पापा के पास उनके कमरे मे गया और बोला ”आप दोनों को जाना है ठीक है! हम भी आपके साथ चलते है, हम आपको अकेले नहीं जाने दे सकते | और उसने पत्नी रीना को कहा- ”हम सब भी जा रहे है ; तैयारी कर लो.” वरुण दुखी मन से अपने कमरे मे चला गया|
उमाकांत जी ने रूपा को कहा, “रूपा , मैने कितना गलत निर्णय लिया, तुमने बहुत समझाया पर अपनी जिद पर अड़ा रहा| अपने बच्चो को समझ नहीं पाया और बेमानी फैसला कर बैठा|”
”वरुण बेटा, मुझे माफ़ करदो, मैने तुम सबका दिल दुखाया| मै इस उम्र मे सही निर्णय नहीं ले पाया आम तौर पर हर घर मे बुजुर्गो के साथ बेटे-बहु द्वारा मर्यादा हीन व्यव्हार होता है| मै भी गलतफहमी का शिकार हो गया था| मुझे तुम दोनों पर गर्व है|,चलो हम सब, कुछ दिन बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए वृन्दावन चले|” उमाकान्त जी ने वरुण से कहा|
”क्या !आप नहीं जा रहे हो ?” वरुण ने पापा को गले से लगा लिया और सब जाने की तैयारी करने लगे |
शांति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

8 thoughts on “कहानी : गर्व अपनों पर…

  • धनंजय सिंह

    कहानी अच्छी लगी.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, धनन्जय जी.

  • जगदीश सोनकर

    अच्छी कहानी लिखी है. माता-पिता की सेवा करना संतानों का कर्तव्य होता है.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, जगदीश जी.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी, बहिन जी. भारतीय वातावरण में वृद्ध माता पिता को समर्थ बच्चों के साथ ही रहना चाहिए. जो बच्चे अपने वृद्ध माँ बाप की सेवा नहीं करते, वे अपने एक बड़े कर्तव्य से वंचित रह जाते हैं. इस बारे में मैंने काफी पहले एक लेख लिखा था, उसे शीघ्र प्रस्तुत करूंगा.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, भाई. आपका कहना सही है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , कहानी बहुत अच्छी है . किओंकि आज ज़माने की हवा का रुख गलत दिशा की और जा रहा है . इसी लिए कुछ लोग अपने भविष्य के चिंतत हो उठते हैं जो सुभाविक है . लेकिन सभी बच्चे बुरे नहीं होते , समझदार बच्चे बजुर्गों को घर से जाने को अपनी बेइजती समझते हैं . हम इंग्लैण्ड में रहते हैं , यहाँ का सिस्टम इंडिया से हट कर है . एक वाक्य बताऊँ , १९६५ में मैं ने एक अँगरेज़ से घर का सौदा किया . दोनों मिआं बीवी retired थे . चाए पीते पीते मैं ने उन से सवाल किया , इस उम्र में तुम अपने बच्चों के साथ कियों नहीं रहते ? वोह अँगरेज़ तो कुछ नहीं बोला लेकिन उस की वाइफ कुछ गुस्से में बोली , why? we don,t want to lose our independence !! मैं बहुत हैरान हुआ . लेकिन इतने वर्षों बाद आज हमारे इंडिया भी व्ही कर रहे हैं . हमारा एक ही बेटा है . शादी के बाद पांच वर्ष वोह हमारे साथ रहे , उस के बाद हम ने उन को एक और घर ले दिया . वोह उधर रहते हैं , हम इधर लेकिन वोह रोजाना ही यहाँ आते रहते हैं . पियार पहले से ज़िआदा बड़ा है . कारण ? उन को अपनी आजादी है हम को अपनी . उन के दोस्त उधर मज़े से ऐन्जोए करते हैं , अगर हमारे यहाँ ज़िआदा गेस्ट आ जाएँ तो वो आ कर खाने बनाने में मदद कर देते हैं . हम महसूस करते है कि यह ढंग अच्छा है . अपने बुढापे के लिए हम ने सेव किया हुआ है , हम उन पर आशा नहीं रखते . भारत में भी लोग धीरे धीरे कर रहे हैं .

    • शान्ति पुरोहित

      बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब.

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