हास्य व्यंग्य

यह कैसी सभ्यता !

क्रिकेट जबसे 20-20 के रूप में शृंगारिक हुआ है, तब से लोगों में क्रिकेट के प्रति दीवानगी बढ़ गयी है। अपनी आरंभिक अवस्था में जब यह खेल-‘टेस्ट मैच’-हुआ करता था, तो शांत रस प्रधान हुआ करता था। एक दिवसीय अंतर-राष्ट्रीय स्वरूप धरते ही यह वीर रस से आभामंडित हो गया किन्तु, जबसे 20-20 के रूप में यह अवतरित हुआ है, यह शृंगार रस से ओतप्रोत हो गया है। यहाँ तक कि इस खेल को राष्ट्रीय खेलों का दुश्मन माननेवाले, दादाजी और बाबाजी टाइप लोग भी अब घंटों टी वी के सामने से नहीें हटतंे। कहाँ तो वे अपने पोतांे को डाँटते थे-‘ लौंडा क्रिकेट खेल कर बिगड़ रहा है।’ और कहाँ तो यह आलम है कि बुड्ढा कहीं स्क्रीन तोड़ कर टी वी में ही न घुस जाए! अपनी प्रगति पर है यह खेल, जो कभी ब्लैक एण्ड व्हाइट था, फिर ‘रंगीन’ हो गया और अब तो इतना ‘रंगीन’ हो गया कि, दर्शकों का दिल भी रंगीन करने लगा। बुजुर्ग कहते हैं,”भैया, कोई भी टीम खेले, कोई भी खिलाड़ी खेले, हमें क्या? हमे तो छक्के-चैके से मतलब! इधर छक्का या चैका लगा और उधर वो बाइयोें के ठुमके चालू।“

कहा जाता है कि क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल है-जैण्टिलमेन्स गेम! गुलाम इसे खेलते हैं और सभ्य देखते हैं। मेरा देश सभ्य हो गया। चलो जो काम पे सभ्यता के इस स्तर तक पहुँचते-पहुँचते पूरे बारह वर्ष लग गये थे। मेरे पिता तो अभागे रहे! वे इस असार संसार से असभ्य ही कूच कर गये! अपना अपना भाग्य! भारत को आधुनिक और सभ्य बनाने में युवक-युवतियाँ, दोनों ही अपने से बहुत दूर है।

कैसी विडंबना है? इन्हें चीयर लीडर्स कहा जाता है! ये ठुमकेबाज चीयर लीडर्स शायद यह नहीं जानतीं कि इस देश में लीडर, चीयर नहीं देता अपितु चोट करता है, खुशियाँ छीनता है, दुख देता है। जनता बड़ी आशा से इन सफेदपोश लीडर्स को सत्ता सौंपती है कि ये हमें खुश रखेंगें, लेकिन ये जनता को खुश रखने के लिए अधनंगी छोरियाँ देते हैं। मुझे लगता है, बापू होते तो उन्हें चीयर लीडर के रूप में प्रयोग किया जा सकता था।

जहाँ तक इन नाचनेवाली चीयर लीडर का सवाल है, मैं कई बार भ्रमित हो चुका हूँ कि सड़क पर चल रहा हूँ या क्रिकेट के मैदान में खड़ा हँू। समझ नहीें आता लड़कियों को दोष दिया जाए या उनके माँ-बाप को? ना जाने माँ-बापो की आँखो पर ममता की ऐसी कौन सी पट्टी लगी है जो उन्हें कम कपड़ों में अपनी बेटी सुंदर लगती है। ये अधनंगी फैशनपरस्त बालाएँ सड़क पर पहुँचते ही मनचलों के लिए चीयर लीडर बन जाती हैंै शायद इस देश की नारियाँ भूल गईं हैं, कपड़ों का जन्म शरीर के उभारों को उघाड़ने के लिए नहीं अपितु छिपाने के लिए हुआ है।

उस दिन हमारे पड़ोसी का चार वर्षीय पप्पू जोर-जोर से रो रहा था। पूछने पर पता चला कि बरामदे में अपने पिता के साथ क्रिकेट खेल रहा था। पप्पू ने पापा की गेंद पर छक्का जड़ दिया और अपनी माँ और बहन से फरमाइश करने लगा कि अब आप भी चीयर लीडर बन जाओ ! एक दिन तो हद हो गई साब ! हमारे मोहल्ले की गली छोटा-मोटा स्टेडियम बनी हुई थी। पप्पू ने जोरदार शाॅट मारा और, गेंद सामनेवाले घर की खिड़की का शीशा तोड़ती हुई छः रनों के लिए। थोडी देर बाद पड़ोसी चड्डी पहने बालकनी पर निकले तो भ्रम हुआ कि चीयर लीडर आया। किन्तु यह भ्रम जल्द टूट गया जब वे बुरी-बुरी गालियाँ बकने लगे।

कहने का अर्थ यही कि क्रिकेट हमने भी बहुत खेली, बहुत छक्के-चैके मारे। पर यह नौबत तो कभी न आयी कि कोई हसीना कपड़े उठा-उठाकर नाचने लगे। मेरी खोपड़ी में एक बात अब तक न घुसी कि खुश होने के लिए इन अधनंगी लड़कियों को लाखो रूपए देने की क्या जरुरत? क्या इसके पहले दर्शकों को खुश होते नहीं आता था? या दर्शको की खुशी से आयोजक खुश न थे? या खुशी नंगी होने पर अधिक अच्छी लगती है? जो भी हो। अपनी समझ से तो परे है। ये क्रिकेट की सभ्यता है या सभ्यता का क्रिकेट!

चलिए, सभ्यता के विकास को अतीत और वर्तमान के परदे पर देखें। मानव की सभ्यता के विकास के मुझे अपने मानस पटल पर एक साथ दो-दो चित्र दिखाई दे रहे हैं। आधी स्क्रीन पर है-आदिमानव-असभ्य! नंगा!! जंगली!!! पशु!!!! और आधी स्क्रीन पर है आधुनिक मानव-अधनंगा! सभ्य!! शिक्षित!!! आधी स्क्रीन पर असभ्य, नंगा, जंगली पशु तुल्य आदिमानव, पत्थर से पत्थर को रगड़कर आग जला रहा है। मारकर लाए हुए जानवर को भून रहा है, और अपने साथी को भी खिला रहा है। इधर शेष आधी स्क्रीन पर है, सभ्य, शिक्षित, आधुनिक मानव, जो बम, मिसाइलों और बंदूकों से आग उगल रहा है। आदमी को ही भून कर खा रहा हैै। चकरा गए? क्या करूँ? मैं भी चकरा जाता हूँ! चलिए, हटाइए वह देखिए चीयर लीडर्स ठुमक रही हैं, इस सभ्यता पर!!

5 thoughts on “यह कैसी सभ्यता !

  • धनंजय सिंह

    हाहाहा सही बात !

  • अजीत पाठक

    अच्छा व्यंग किया है शरद सुनेरी साहब. क्रिकेट एकदम बेहूदा खेल है और इसमें बेहूदगी बढती ही जा रही है.

    • विजय कुमार सिंघल

      मैं आपसे सहमत हूँ.

  • जगदीश सोनकर

    सही व्यंग्य है. पैसे के कारण क्रिकेट में पहले ही बहुत विकृतियाँ आ गयी थीं, अब चीर लीडर्स ने इनमें बढ़ोत्तरी ही की है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत करारा ब्यंग्य किया है आपने क्रिकेट के दीवानों पर. बधाई !

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