कविता

मुक्तक

1

बेफिक्र तो तटस्थ रहता है
संज्ञाशून्य निर्जीव होता है
जीवन जो भी रूप दिखाए
मुस्कुराना खेल होता है

2

ताश का पत्ता जोकर
भाग्य बदले दे ठोकर
मैं खुद बनना चाहूँ वैसा
रोऊँ अपनों को खोकर

विभा

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

3 thoughts on “मुक्तक

  • अजीत पाठक

    ठीक है मुक्तक. और अच्छे लिखे जा सकते हैं.

  • जगदीश सोनकर

    मुक्तकों में मजा नहीं आया.

  • विजय कुमार सिंघल

    मुक्तक अच्छे हैं, लेकिन इनमें हाइकु का प्रभाव स्पष्ट पता चलता है.

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