अफसाना
दिल से तेरी दूरी को,
हम अपनी मजबूरी को
तुमसे दूर रहने का
बहाना बना लेते हैं
दूर तुम आँखों से हो
पास तुम सांसो के हो
बस इन्ही अरमानो को
ज़िंदगी बिताने का
अफसाना बना लेते हैं
हर शाम घुटन सी होती है
दिल में चुभन सी होती है
हर रात को तेरे सपने का
दीवाना बना लेते हैं
ज़िंदगी बिताने का
अफसाना बना लेते हैं
सुधांशु रंजन शुक्ल
अच्छी कविता ! शुक्ल जी, आप अपनी कवितायेँ नियमित प्रस्तुत किया करें.