कविता

तांका

1

नूर की बूँदें
उदासी छीन रही
इक आसरा
तरुणी हुई धरा
अनुर्वरा ना रही

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2

बूँदों की धुन
झींगुर सुर संग
कील निकाले
पेंगो संग सपने
ऊँची उड़ान चढ़े

विभा रानी श्रीवास्तव

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “तांका

  • विजय कुमार सिंघल

    तांका पसंद आये. कठिन शब्दों से बचा जाये तो बेहतर.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आगे से कोशिश रहेगी ….. शब्द सीमित रहने से ये गलती हो जाति है

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