इनका धर्म और उनका धर्म
2. संसद भवन की कैंटीन में खराब खाने का विरोध करते हुए एक सांसद ने एक कर्मचारी के मुंह में रोटी ठूंसने की कोशिश की। उस पर बावेला हो गया, क्योंकि वह कर्मचारी मुसलमान था और रोटी मुंह में जाने से उसका रोजा टूट गया। हालांकि उसने रोटी खायी नहीं केवल उसके मुंह को छुआ गया था। लेकिन इतने से ही रोजा टूट गया। इस पर सारे चैनल इस तरह चिल्लपों मचाने लगे, जैसे इस्लाम पर कोई बड़ा भारी संकट आ गया हो। हालांकि कुछ दिन पहले ही बालताल में मुसलमान टट्टूवालों ने अमरनाथ यात्रियों के लंगरों में आग लगा दी थी, उनकी मूर्तियों को अपवित्र किया था। लेकिन तब कोई चैनल नहीं बोला। इस समाचार को दबाने की भी कोशिश की, जबकि वहां बहुत हिंसा हुई थी। मीडिया का दोमुंहापन कोई नयी बात नहीं है, लेकिन यहां हम उसकी चर्चा नहीं कर रहे हैं। हम तो इस्लाम की नाजुकता की बात कर रहे हैं।
3. अगर सड़क पर होकर हिन्दुओं का कोई धार्मिक जुलूस निकलता है, जिससे 10-15 मिनट के लिए सड़क बन्द हो जाती है, तो लोग उस पर गुस्सा करने लगते हैं और पुलिस भी लाठियां भांजने लगती है। लेकिन यही पुलिस हर शुक्रवार को घंटों के लिए सड़क रोककर नमाज पढ़वाती है और तब किसी को जनता की कठिनाई नजर नहीं आती।
4. राजस्थान से कुवैत में मजदूरी करने गये एक हिन्दू युवक शिब्बू की हत्या वहां के मुसलमानों ने इसलिए कर दी कि वह उनके रोजे के समय कोल्ड ड्रिंक पी रहा था। (इस समाचार की कतरन साथ में दी गयी है।) इसका अर्थ है कि मुसलमानों का रोजा केवल रोजेदार द्वारा खाने-पीने से ही नहीं बल्कि दूसरों द्वारा खाने-पीने से भी टूट जाता है।
नावों में जिसतरह बहुसंख्यक जनता ने एकजुट होकर एक पार्टी भाजपा के पक्ष में मतदान किया और सभी मुस्लिमपरस्त दलों को धूल चटा दी, उससे इन्हें सावधान हो जाना चाहिए था। परन्तु लगता है कि इन पार्टियों ने अभी भी कोई सबक नहीं सीखा।
वस्तुतः मुस्लिमपरस्ती करने वाले दल स्वयं मुसलमानों के दुश्मन ही सिद्ध हो रहे हैं, क्योंकि वे समाज में भेदभाव को हवा दे रहे हैं। आगे चलकर इसका कुपरिणाम मुसलमानों को ही भुगतना पड़ेगा। अगर बहुसंख्यक लोग एकजुट होकर मुस्लिमों का आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार कर दें, जिसकी सलाह कई संगठनों और व्यक्तियों द्वारा दी जाने लगी है, तो वह मुस्लिमों के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण दिन होगा। अगर अभी भी मुस्लिम संगठन औ मुस्लिमपरस्त दल मुस्लिम समाज का सही मार्गदर्शन नहीं करते, तो वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन शीघ्र आ जाएगा।
विजय कुमार सिंघल
बहुत अच्छा लेख
सार्थक लेखन ….. सरकार कुछ नहीं करती केवल कुर्सी के चक्कर में
आपने बहुत सही लिखा है.
आभार !
बहुत अच्छा लेख है. जो न तो दुसरे धर्मों का सम्मान करते हैं और न न्यायलय के फैसलों का, उनका विनाश होकर रहता है.
धन्यवाद, सौरभ जी. आपका कहना सत्य है.
बहुत सही…….जो बोया वही काटेंगे और काट भी रहे है
आभार, अभिवृत जी. यही प्रकृति का नियम है. जैसा करोगे वैसा भरोगे.
बहुत अच्छा लिखा है, विजय जी. सही भी है. ये अपने धर्म को ही धर्म मानते हैं, बाकी सब अधर्म हैं. अब इसका अंत निकट है.
धन्यवाद, जगदीश जी. आपका कहना सही है.