कहानी : एक छाया (स्वप्न कथा)
सपने मे मैने देखा एक बहुत खूबसूरत लडकी जिससे मैँ प्यार करता हूँ उसका भाई फिल्म डार्कनाइट के जोकर जैसा है फर्क इतना है कि उसका चेहरा काला था, उसकी आँखेँ गहरी थीँ और वो चीखते हुए हीहीही करके हँसता था। मैँ और वो लडकी एक ही साथ पढते थे। शायद वो मैँ था या मैँ नहीँ था, पता नहीँ। हम दोनोँ एक ही सडक से साथ मेँ गुजरते थे, आसपास ढेरोँ पेड थे मैने देखा मैँ एक पेड के पीछे छिपा, दोनोँ यानि मुझे और उस लडकी को देख सकता हूँ।
हमारी दोस्ती बढी और प्यार हुआ! एक दिन मैँ उस लडकी के घर गया वो घर पर नहीँ थी उसका वो बदसूरत, बद्दिमाग भाई था, उस पागल ने मुझपर हमला कर दिया, मैँ बहुत डर गया था, तभी एक खिडकी से मैँने देखा कि मैँ खुदको उससे पिटते हुए देख रहा हूँ, कुछ कुछ वो पागल मुझे सिनिस्टर मूवी के भूत जैसा लगता था। मैने देखा कि मैँ खुद बहुत डर गया हूँ और जैसे तैसे वहाँ से भागा। लडकी का फोन मुझे आता है पर मैँने मिलने से मना कर दिया। और उसके खतरनाक भाई की हरकत बताता हूँ। लडकी फोन पर रोती है बोलती है कि उसका भाई उसे बहुत चाहता है वो उसे नहीँ छोड सकती तब जब उसकी दिमागी हालत खराब है।
मैँ सोच मेँ पड जाता हूँ पर मैँ लडकी के प्यार को नहीँ भूल सकता। मैँ तय करता हूँ कि मैँ उस जंगली से लडकर भिडकर कैसे भी लडकी को पा लूँगा। और उसके घर की तरफ उस रात ही निकल पडता हूँ एक खिडकी से उस अंधेरे कमरे का नज़ारा जहाँ एक मोमबत्ती की रोशनी मेँ वो पागल आइने के आगे तरह तरह के मुँह बनाता है और चीखता सा हँसता है, मैँ देख रहा हूँ खुद को जो सडक के इस पार खडा उस खिडकी के अंदर देख रहा है मैँ देख रहा हूँ अपनी आँखोँ के खौफ को। अजीब डर को महसूस कर रहा हूँ।
मैँ फिर चक्कर लगाता हुआ दरवाजा खटखटाता हूँ हिम्मत जुटाकर और पागल पर हमला कर देता हूँ इस बार वो फिल्म डार्कनाइट के उस पागल लडके की तरह हँसता है जिसे बैटमैन एक वैन के अंदर बाँध देता था, वो हँसता रहता है मैँ मारते मारते जब थक जाता तो वो राक्षस मुझपर टूट पडता है, ये मैँ एक पेड के पीछे छिपकर देखता हूँ। पागल बहुत डरावना दिख रहा था मैँ खून से लथपथ होकर बेहोश होकर दरवाजे के आगे पडा रहता हूँ और वो दरवाजा लगाकर चीखता सा हँसता हुआ घर के अंदर चला जाता है!
मैँ फिर दरवाजा खटखटाता हूँ ये सोचकर कि अब मरुँगा या मार डालूँगा। मेरे अंदर एक आत्मविश्वास और अपार शक्ति भर जाती है और मैँ दरवाजा खटखटाता हूँ। लटकती और खून से लथपथ हालत मेँ मेरी आँखोँ के आगे धुँआ सा होता है और मैँ देखता हूँ कि मैँ खुदको एक पेड के पीछे से देख रहा हूँ और उस काले लबादे पहने पागल को भी, वो मुझे देखता है फिर गहरी नजरोँ से मेरी आँखोँ मेँ और पूछता है क्या चाहिए?
मैँ लडखडाती आवाज मेँ बोलता हूँ मैँ प्यार करता हूँ और वो अपने सफेद दाँत दिखाकर चीखता सा हँसता है हीहीही और खुद मेरे लिए दरवाजा खोल देता है, मैँ पाता हूँ मेरे अंदर एक कंपन हुआ इस अट्टहास के साथ भयंकर डर उमडा फिर यकायक खुशी और मैँ पाता हूँ इस बार मेँ वहीँ हूँ दरवाजे खुल गये हैँ मैँ सफल हुआ हूँ।
गुरमेल जी आपका कमेंट पढ़कर अच्छा लगा,,,,हाँ ये बस एक स्वप्न कथा थी,,,कॉलेज के दिनों की कुछ यादे उभर आती हैं बस….मैंने अपनी कहानी रोज की तरह में बदलाव किया है जरुर देखें
सौरव जी , आप की कल्पना में खट्टी मीठी और कड़वी भावनाएं हैं . बहुत सुन्दर रचना है . भारत की अपनी एक हट कर दुनीआं से इल्लग संस्कृति है . मैं इस्ट और वैस्ट दोनों सभिताएं से वाकफ हूँ . जो आप की कल्पना है , किओंकि मैंने जिंदगी के पहले १९ वर्ष भारत और ख़ास कर गाँव में बिताए हैं इस लिए जवानी की भावनाएं और उन के सामने कुछ डर झिजक और इशक में कामयाबी की खुछी सभी के बारे में भली भाँती वाकिफ हूँ . अक्सर ऐसा होता है कि जब हम बूड़े हो जाते हैं तो वोह बातें भूलने का ढोंग करते हैं . लेकिन इस पियार वीआर के चक्कर का जो नुक्सान एक लड़की को उठाना पड़ता है वोही डर बड़ों के सामने रहता है किओंकि वोह खुद इस से वाकिफ होते हैं . वैस्ट में लड़का लडकी अगर एक दुसरे को चाहते हैं तो उन को किसी का डर नहीं होता . गोरी किसी भी काले पीले नीले गोरे के साथ इश्क रचा ले किसी का कोई बिजनैस नहीं है लेकिन हमारी संस्कृति में यह रुकावटें हैं . इस में एक बात है कि जो हम ने जवानी में इश्क लड़ाया वोह हमारी अपनी खुद की मीठी यादें बन कर रह जाती हैं जिस को अपने सीने में छुपाए रखते हैं .
अच्छी स्वप्न कथा. सपने हमारे मन की भावनाओं के दर्पण हुआ करते हैं.
बहुत अच्छी कहानी.