बताओ! वह कौन है?
आज परीक्षा का दिन था। गुरुजी ने प्रश्न किया- ”शिष्यों! बताओ यह कौन है, जो सर्वशक्तिमान है। जिसके समक्ष बडे़-बड़े बलवान घुटने टेक देते हैं। शूरमा, बगलें झाँकने लगते हैं। जो यम और बम, दोनों से भी बड़ा है। न सुई उसे चुभ सकती है न परमाणु बम उसे ध्वस्त कर सकता है। न वायु उसे उड़ा सकता है, न पानी उसे गला सकता है और न ही अग्नि उसे जला सकती है। वह पंच महाभूतों से भी बड़ा महानतम भूत है।
“शिष्यों! वह विराट है किन्तु अगोचर है। यत्र-तत्र-सर्वत्र व्याप्त है। दशों दिशाओं में वह स्थित है। वह निराकार सब जगह विराजमान है। सूर्य-चंद्रमा और ग्रह-नक्षत्र तक उसे प्रणाम करते हैं। उदित होते हैं तो उसका नाम लेकर और अस्त होते हैं तो उसके नाम के साथ। वह भौगोलिक सीमाओं से परे है। वह कालातीत है। क्या भूत! क्या वर्तमान और क्या ही भविष्य, सब उसके दास हैं। सब उसके चक्कर काटते हैं।
“वह निर्बलों का बल है। गुणहीन उसकी भक्ति कर गुणीजनों और विद्वानों में सम्मान पाते हैं और पूजे जाते हैं। सत्, रज और तामस सभी गुण उसके तलवे चाटते हैं। जो उसे नहीं पूजता वह बिना आत्मा के शरीर के समान अस्पश्र्य हो जाता है। मानव समाज में वह असामाजिक और अमानवीय कहलाता है। वह अवध्य है। राजा उसका कुछ उखाड़ नहीं सकते। मंत्री और प्रशासक उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। वह अलौकिक शक्ति संपन्न है। वह सूक्ष्मों में सूक्ष्मतम और स्थूलों में स्थूलतम है। वह अनंत हैं अनादि है।
“वह व्याकरणों में सर्वश्रेष्ठ व्याकरण है। संज्ञाओं में वह समस्त संज्ञा है। वह व्यक्तिवाचक संज्ञा है क्योंकि भौगोलिक सीमाओं और ऐतिहासिक पत्रों में अपने नाम से जान जाता है। वह जातिवाचक संज्ञा है क्योंकि उसे माननेवाले विश्व की श्रेष्ठतम और सभ्यतम जातियों में सम्मान पाते हैं। वह भाववाचक संज्ञा है क्योंकि उसका नाम सुनते ही रसिक हृदयों की बाँछें खिल जाती हैं। वे अपना दुख विस्मृत कर भावविभोर हो जाते हैं। वह समूहवाचक संज्ञा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है क्योंकि सारा विश्व समुदास उसकी आराधना आठों प्रहर करता है। द्रव्य के बिना तो उसका काम ही नहीं चलता अतः वह द्रव्यवाचक संज्ञा भी है। सब उसका नाम अपना कर जीवन को सार्थक समझते हैं इसलिए वह सर्वनाम भी है। वह निर्गुण होते हुए भी विशेषण है। उसे अंगीकार कर साधारण मनुष्य भी विशिष्ट हो जाता है। प्रसिद्धि पाता है।
“गुसाईं जी ने कहा था ना-” बिन पग चले, सुने बिन काना।“ वह क्रिया है। एक अनंत काल तक चलनेवाली क्रिया! सब उसे साधने को तत्पर रहते हैं। जो उसे नहीं साधता, वह हाथ मलता रह जाता है। वह क्रिया विशेषण है। उसे प्राप्त करने के लिए क्रिया का विशेष ढंग से जो करनी पड़ता है। वह संबंधबोधक है क्योंकि इस धराधाम पर सारे संबंध वही बनाता है, बिगाड़ता है। जोड़ता है, तोड़ता है। वह विस्मयादिबोधक है क्योंकि उसका नाम और चरित्र देखकर सभी की आँखें विस्मय से फटी की फटी रह जाती है। वह विराम है, पूर्णविराम और अल्पविराम तथा प्रश्नवाचक चिह्न है।
“वह सर्वधर्म प्रिय है। वह मंदिरों में है। मसजिद, गुरुद्वारे और गिरजाघरों में है। वह समस्त धर्मों में स्तुत्य है। वंदनीय-पूजनीय-स्मरणीय है। वह आस्था है। संस्कार है। जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय, समाज और देश से भी ऊँचा है। उसके लिए सब और सबके लिए वह ग्राह्य है। उसके दरबार में कोई नीच है न महान। कोई छूत नहीं कोई अछूत नहीं। कोई हरिजन नहीं कोई बहुजन नहीं। वह समाजवाद के बाप का भी बाप है। वह हमारी सभ्यता, संस्कृति, सामाजिकता और राष्ट्रीयता का परिचायक है। कौन है वह- बताओ! बताओ!! बताओ!!!“
सभी शिष्यों ने एक स्वर में उद्घोष किया- ”गुरुजी, ईश्वर, भगवान, परमात्मा।“ उत्तर सुन गुरुजी निराश हो गये। तभी उनमें एक छात्र उठा जो सबसे पीछे चिथड़े पहने, दयनीय, भूखा-प्यासा, निर्बल, पीड़ित, असहाय और निर्धन बैठा था, वह बोला- ”गुरुजी! भ्रष्टाचार।“
गुरुजी बोले- ”शाबास! शाबास!! शाबास!!!“
भ्रष्टाचार , जिंदाबाद !!
अच्छा व्यंग्य शरद जी. भ्रष्टाचार की सर्वव्यापकता को आपने अच्छी तरह प्रकट किया है.