कहानी : बिन बेटियाँ कहाँ बढ़ेगी वंशबेल …
सावित्री अचानक चक्र खाकर गिर पड़ी ! धनपति भागकर बहु को उठाती है और डॉ को बुलाने को दौडती है ! घर के बाहर ही धनपति को इमरती देवी मिल जाती है जो की धनपति की अच्छी सहेली होने के साथ साथ दाई भी है ! गाँव में ऐसा कौन जिसने इमरती देवी के हाथो जन्म न लिया हो ! सभी गाँव वाले उसको इमरती काकी कहकर बुलाते हैं ! धनपति को दौड़ते हुए देखकर इमरती काकी पूछ बेठी अरे धन्नो कहाँ भागी जा रही है न राम राम न श्याम श्याम …….
धनपति देवी : अरे काकी क्या बताऊ बहु अचानक चक्कर खाकर गिर पड़ी बस डॉ को ही बुलाने जा रही थी जल्दी जल्दी में आपको देखा ही नहीं !!
इमरति काकी : अरे रुक … चल मैं देखती हूँ क्या हुआ है बहु को … तुम्हे तो पता है न की तो नाडी देखकर ही बता दूंगी क्या हुआ होगा बहु को .. चल घर चल …
( दोनों घर के अन्दर तेजी से प्रवेश करती हैं )
इमरती काकी सावित्री की नब्ज देखती है और फिर पेट हाथ लगाकर देखती है और बोलती है अरे धन्नो ऐसे चक्कर तो सबको आयें .. जा जल्दी से कुछ मीठा ले आ तू तो दादी बनने वाली है … तेरी बहु तो पेट से है …
धनपति की ख़ुशी का ठिकाना न रहा और रसोई से गुड लाकर सबका मुंह मीठा कराती है ये कहते हुए कि अभी तो गुड से काम चलाओ वेदपाल आयेगा तो लड्डू मंगवा कर बाटूंगी ….(इमरती कुछ देर बैठकर निकल जाती है बहु को कुछ जरुरी बाते बता कर क्या करना है कैसे चलना है कैसे उठाना बैठना है आई आदि )
धनपति : बहु अब तुम बहुत ख्याल रखना अपने खाने पीने का मुझे मेरा पोता एकदम चाँद सा सुन्दर चाहिए …
सावित्री : पर माता जी क्या पता पोता होगा या पोती …. जो भी बस चाँद का टुकड़ा होना चाहिए !
धनपति : (गुस्से में) … बहु पोता ही चाहिए मुझे … कुछ दिन बाद जाकर चेक करा लेंगे मुझे बस पोता ही चाहिए जो मेरे वंश को आगे बढ़ाएगा … पराये धन का क्या करना है खिला पिलाकर हम बड़ा करेंगे और कमाएगी किसी और के घर जाकर ….
सावित्री चुप हो गयी क्यूंकि धनपति के सामने कुछ भी कह नहीं पाती थी आखिर धनपति धाकड़ बुढिया थी जिस से सावित्री तो क्या वेदपाल और यहाँ तक भोला सिंह भी डरते थे !
समय बीत गया और आखिर साढ़े-तीन महीने हो गए थे सावित्री को …
धनपति : ओ बहु सुन .. आज हस्पताल जाना है जल्दी से काम निबटा ले … बात कर ली है मैंने घर में सबसे … बेटी हुयी तो क्यों फालतू का झंझट मोल लिया … बेटा हुआ तो रखेंगे ..
सावित्री की तो मानो सांसे ही रुक गयी हों …. उसका दिल जोर जोर से धडकने लगा की पता नहीं क्या होगा … क्या मैं अपने बच्चे को जन्म दे पाऊँगी या नहीं … बेटियां क्या इतनी बुरी होती हैं जिनके पैदा होने पहले ही इतनी चिंता होने लगती है … पर अम्मा जी कहाँ मेरी सुनेंगी
दोनों हस्पताल पहुँच जाती हैं और डॉ से मिलती हैं
धनपति : डॉ साहब ये मेरी बहु है .. साधे तीन महीने पेट से हैं बस अब जल्दी से बता दो की बेटा है या बेटी … मैं आपका दराज पैसो से भर दूंगी …
डॉक्टर : ठीक है ताई ..पर जन्म से पहले बच्चे के लिंग का पता लगाना कानूनन जुर्म है ! हम सिर्फ बच्चा ठीक है स्वस्थ है यही बता पाएंगे …. बाकी …
धनपति : अरे डोक्टर फ़िक्र क्यूँ करे है … बस तू दाम बता और फेर हम तो किसी को बताएँगे नहीं और आपने बताने की के जरुरत है … कानून ने कोणी पता चाले के बताया के नहीं …
डोक्टर : ठीक से ताई .. पर चोखी रकम देनी पड़ेगी फेर ही कुछ कर पाउँगा .. न ते तन्ने पता है कि कितना रिस्क भरा काम है …
धनपति : अच्छा ठीक है जो तू बोले …. बस म्हारा काम कर दे बाकि चिंता न कर …
सावित्री को जिसका डर था आखिर वही हुआ … डोक्टर ने कहा कि लड़की ही है … ये सुनते ही धनपति ने कहा की ख़त्म कर दो नहीं चाहिए … मुझे तो बस लड़का ही चाहिए … सावित्री रोती रही हाथ पैर जोडती रही की मेरी बेटी को मत मारो जीने दो उसको .. उसको भी देखने दो दुनिया .. पर कहाँ चलने वाली थी !
धनपति ने एक तरफ पोती से पीछा छुड़ाकर राहत की सांस ली, वहीँ दूसरी तरफ सावित्री को अब वो पहले की तरह प्यार से नहीं ट्रीट करती थी. जब देखो ताने देती रहती कि एक वारिस भी न दे सकी हमारे परिवार को … इन सबके चलते सावित्री अन्दर ही अन्दर घुटती रहती …. वेदपाल को कुछ कहती तो वो भी आग बबूला हो सावित्री पर ही बरस पड़ता ….
आखिर कुछ दिन बाद सावित्री को पता चला कि वो फिर से पेट से है लेकिन उसने सोचा कि अब अगर वो बताएगी तो फिर से वही होगा .. तो उसने कुछ दिन चुप रहने का ही सोचा लेकिन एक तो सावित्री कमजोर थी ऊपर से पेट से .. उसकी तेज सास को पता लगाने से भला कौन रोक सकता था ! अंततः धनपति को पता चल ही गया कि सावित्री फिर से पेट से है और धनपति ने उसी डोक्टर से मिलने की बात की ….. फिर वही हुआ जो धनपति चाहती थी और सावित्री को डर था .. सावित्री की एक और संतान लड़के की चाह में मिट गयी …… ऐसा एक बार नहीं हुआ कई बार हुआ और सावित्री कुछ न कर सकी सिर्फ दुआ के कि अबकी बार देना हो तो बेटा दे ताकि वो अपनी संतान को जन्म दे सके वरना कुछ न दे …..
कुछ दिन बाद सावित्री फिर से पेट से थी शायद पांचवी बार … पहले चारो बार उसका गर्भपात करा दिया गया था और इस बार रामजाने क्या होगा … लेकिन इस बार शायद सावित्री की दुयाएँ कबूल हो गयी थी और जाँच में पता चला की सावित्री दो जुड़वाँ बेटो की माँ बन ने वाली है … धनपति ने लड्डू बंटवाएँ .. सावित्री भी खुश थी की अब वो माँ बन पायेगी सही मायने में …. और 9 महीनो बाद सावित्री ने दो चाँद से बेटो को जन्म दिया ! देसी घी का खाना किया गया पुरे गाँव और उसके आसपास के लोगो का … मंदिरों में दान दिया गया ….
धीरे धीरे दोनों बेटे बड़े होने लगे पढाई में चतुर थे दोनों ही और सबकी आशाओं पर खरे उतर रहे थे ! पढ़ लिखकर नौकरी लग गए लेकिन जैसा की आप जानते हैं हमारे हरियाणा में लडको के अनुपात में लड़कियां काफी कम हैं ! बहुत से कुवारें लड़के घूम रहे हैं ! ऊपर से जात बिरादरी का भेद अलग से ! अब उनके ही बेटो की शादियाँ हो रही हैं जिनके खुद एक बेटी है … बेटी दो बहु लो यही प्रथा चल पड़ी है ! धनपति को रात-दिन चिंता सता रही है पोतो की शादी की लेकिन कुछ बात नहीं बन रही … एक दिन धनपति एक पड़ोस के दीनू काका से जिक्र करती है की काका कैसे भी करके मेरे पोतो की शादी करा दो … सारा खर्चा हम करेंगे बस लड़कियां ढूँढकर ला दो … काका भी हाजिर जवाबी थे बोले धनपति तुमने इतने पाप किये हैं हमसे क्या छुपे हैं .. तुमने खुद की कितनी पोतियाँ कुर्बान की हैं सिर्फ पोते की लालसा में … तेरी पोती होती तो कब की तेरे भी पोतो की शादी हो चुकी होती तुम तो जानती हो न की आजकल बदला चल रहा है एक हाथ दो दुसरे हाथ लो ! पर तुम कहाँ से बदला करोगी ! अब चलाओ अपना वंश पोतो से ही …..
कहानी पसंद आई
धनंजय सिंह जी आपका तहेदिल से शुक्रिया पसंद करने के लिए …
परवीण मालिक जी , कहानी बहुत अच्छी है , आज जो हो रहा है आप ने उस का चित्रण किया है . अच्छी बात यह है कि बेटी लो बेटी दो . हमारे पंजाब में भी एक जाती है जिस में यही परम्परा है कि अगर लड़के की शादी करनी है तो बदले में लडकी देनी पड़ेगी . अगर अपनी बेटी न हो तो किसी रिश्तेदार के बेटी हो उस की मिनत करनी पड़ती है . यह सिस्टम बहुत अच्छा है . इस को पंजाब में कहते है वटा सटा. जानी एक हाथ दो एक हाथ से लो . पहले तो डाक्टरों को सख्त सजा मिलनी चाहिए , उनके लाइसैंस ज़ब्त होने चाहिए . आप तो अच्छी लेखका हैं . आगे भी आप की रचना का इंतज़ार रहेगा .
आदरणीय गुरमेल सिंह भामरा जी आपका तहेदिल से शुक्रिया एतमा मान देने के लिए … बस आस-पास जो देखती हूँ वही शब्दों में उतरने का प्रयत्न करती हूँ ! आजकल बेटियाँ इतनी कम हो गयी हैं कि लडको की शादी ही नहीं हो पा रही है , कही बदले की रीत है तो कहीं बेटों के लिए लोग लडकियां खरीदकर भी ला रहे हैं आखिर इससे ज्यादा क्या दुर्दशा होगी हमारे समाज की … ये मैंने एक स्कूल में होने वाले प्ले के लिए लिखा है जो की अगले हफ्ते होने वाला है उनको नाटकीय रूप में दिया है उम्मीद है गाँव के लोग कुछ सबक लेंगे उससे … सादर
बहुत अच्छी कहानी. इससे कन्या भ्रूण हत्या करने वालों को सबक मिलेगा.
धन्यवाद आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी …