गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : प्यार की आस

बदले मौसम की तरह चल दिया वो किसी और की तलाश में

करता था दावा खुश्बू की तरह बसने की जो हर एक सांस मे

पहले कभी काली स्याह रात कटती थी बात बात में
अब कटती नहीं रातें बैठी रहती उस बेवफा की आस में

जो नहीं आता क्यूँ उसी का इंतजार करता है ये दिल
काश वो भी महसूस करता मेरे अहसास को अपने अहसास में

करती हूँ लाख कोशिश सोने की जब मै रातों को
ख़्वाबों में आकर हर रोज आंसू दे जाता है आँख मे

या तो अपना बना ले या बैगाना कर दे मेरे सनम
“गुंजन” तो बस जी रही हैं तेरे प्यार की आस में ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

6 thoughts on “ग़ज़ल : प्यार की आस

  • गुंजन अग्रवाल

    shukriya Dhnanjay Singh ji

  • गुंजन अग्रवाल

    utsaahvardhan ke liye tahedil se aabhari hu Gurmel sir ji …..dil to jwaan tha ..hai n rahega 🙂

  • गुंजन अग्रवाल

    bahut bahut aabhar vijay sir ji 🙂

  • धनंजय सिंह

    ग़ज़ल बहुत अच्छी है।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    गुंजन जी , ग़ज़ल तो बहुत मजेदार है , बहुत अच्छी लगी . पिआर की आस पड़ कर जैसे मैं भी जवान हो गिया हूँ , जवानी के हसीन लम्हें याद करा दिए . धन्यवाद .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल, गुंजन जी.

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