ग़ज़ल : प्यार की आस
बदले मौसम की तरह चल दिया वो किसी और की तलाश में
करता था दावा खुश्बू की तरह बसने की जो हर एक सांस मे
पहले कभी काली स्याह रात कटती थी बात बात में
अब कटती नहीं रातें बैठी रहती उस बेवफा की आस में
जो नहीं आता क्यूँ उसी का इंतजार करता है ये दिल
काश वो भी महसूस करता मेरे अहसास को अपने अहसास में
करती हूँ लाख कोशिश सोने की जब मै रातों को
ख़्वाबों में आकर हर रोज आंसू दे जाता है आँख मे
या तो अपना बना ले या बैगाना कर दे मेरे सनम
“गुंजन” तो बस जी रही हैं तेरे प्यार की आस में ।
shukriya Dhnanjay Singh ji
utsaahvardhan ke liye tahedil se aabhari hu Gurmel sir ji …..dil to jwaan tha ..hai n rahega 🙂
bahut bahut aabhar vijay sir ji 🙂
ग़ज़ल बहुत अच्छी है।
गुंजन जी , ग़ज़ल तो बहुत मजेदार है , बहुत अच्छी लगी . पिआर की आस पड़ कर जैसे मैं भी जवान हो गिया हूँ , जवानी के हसीन लम्हें याद करा दिए . धन्यवाद .
अच्छी ग़ज़ल, गुंजन जी.