उपन्यास : शान्तिदूत (उन्नीसवीं कड़ी)
कृष्ण पांडवों के साथ अज्ञातवास में घटी घटनाओं पर विचार करने लगे।
विराट नगर में पांडव किसी से अधिक सम्पर्क नहीं रखते थे और सामान्यरूप से अपना कार्य करते हुए दिन बिता रहे थे। अर्जुन तो वृहन्नला के रूप में सैरंध्री बनी द्रोपदी को लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन देखते रहते थे और कभी कभी उनको युधिष्ठिर भी कंक के रूप में दरबार आते जाते मिल जाते थे। लेकिन सामान्य अभिवादन के अतिरिक्त उनमें कोई बात नहीं होती थी, जैसे वे एक-दूसरे को जानते भी नहीं हों। परन्तु भीम, नकुल और सहदेव से मिलना उनके लिए कठिन होता था। फिर भी वे माह-दो माह में एक बार गुप्त रूप से मिल ही लेते थे। उधर दुर्योधन पांडवों का पता लगाने की पूरी कोशिश कर रहा था, पर अभी तक उनकी हवा भी नहीं पा सका था।
महारानी सुदेष्णा का भाई कीचक विराट नगर का सेनापति भी था। वह बहुत मनमानी करता था। एक प्रकार से वह राजा विराट को अपनी उंगलियों पर नचाता था। सैरंध्री पूरा प्रयत्न करती थी कि वह कीचक की दृष्टि से दूर ही रहे, जो कभी-कभी अपनी बहिन से मिलने महल में आया करता था।
जब अज्ञातवास के दिन लगभग पूरे होने वाले थे, तो एक दिन कीचक की दृष्टि सैरंध्री पर पड़ गयी। उसके स्वाभाविक सौंदर्य को देखकर कीचक बहुत प्रभावित हो गया और उसे पाने की आशा करने लगा। उसने सैरंध्री से उसका परिचय पूछा, तो उसने बताया कि मैं सैरंध्री हूँ और कुमारी नहीं हूँ, बल्कि 5 गंधर्व मेरे पति हैं, जो अदृश्य रहकर मेरी रक्षा करते हैं।
लेकिन कीचक की मोटी बुद्धि में यह बात नहीं आयी। उसने अपनी बहिन रानी सुदेष्णा पर दबाव डाला कि सैरंध्री को मेरी सेवा में भेज दो। लगातार दबाव पड़ने के कारण रानी ने सैरंध्री को कोई वस्तु देकर कीचक के पास भेजा। सैरंध्री जाना नहीं चाहती थी, लेकिन स्वामिनी का आदेश होने के कारण उसे जाना पड़ा। वहाँ कीचक ने उसको पकड़ने की कोशिश की, तो वह किसी तरह वहाँ से भाग निकली।
महल में आकर उसने रानी सुदेष्णा से कहा कि आपके भाई ने मेरे सम्मान पर हाथ डालने की कोशिश की है। यह ठीक नहीं है। मेरे गंधर्व पति बहुत बलवान हैं, वे उसके साथ कुछ भी कर सकते हैं। इसलिए आगे से मैं उसके निवास पर नहीं जाऊंगी। यह सुनकर रानी सुदेष्णा डर गयी, लेकिन वह अपने भाई से बहुत डरती थी, इसलिए उसने कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया।
अपने सतीत्व पर संकट देखकर द्रोपदी उसी रात गुप्तरूप से भीम से मिली और उसे पूरी बात बतायी। भीम ने उसे आश्वस्त किया और सलाह दी कि कीचक को एक निश्चित दिन रात्रि के समय में रंगशाला में आने के लिए कहो। मैं वहाँ उसको मार डालूँगा। द्रोपदी ने ऐसा ही किया। उसने कीचक से कहा कि मैं खुले रूप में तुमसे नहीं मिल सकती, नहीं तो मेरे गंधर्व पति मुझे मार देंगे। इसलिए गुप्त रूप में तुम रात्रि में रंगशाला में आ जाओ। वहाँ तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी।
वासना में अंधा कीचक द्रोपदी की इस चाल को नहीं समझ सका और उसी रात रंगशाला में भीम के हाथों बुरी तरह पिटकर मारा गया।
कीचक को बहुत बलवान माना जाता था। उसके मारे जाने का समाचार देशभर में फैल गया। जब दुर्योधन को कीचक के गुप्त रूप से मारे जाने की खबर मिली तो उसका माथा ठनका। उसे लगा कि पांडव विराट नगर में छिपे हो सकते हैं, क्योंकि कीचक का वध भीम के अलावा कोई नहीं कर सकता।
उसने एक बार राजसभा में पूछा भी था कि पांडव कहाँ छिपे हो सकते हैं, तो भीष्म ने बताया था कि युधिष्ठिर धर्मात्मा हैं, वे जिस प्रदेश में भी होंगे, वहां कोई प्राकृतिक संकट नहीं होगा और सुख-समृद्धि होगी। यह पता लगाओ कि ऐसा प्रदेश कौन सा है? इस पर राजसभा के ध्यान में आया कि विराट नगर में हर वर्ष ग्रीष्म काल में अकाल पड़ता है और चारे के अभाव में उनके हजारों पशु हमारे राज्य में चरने के लिए आते हैं, परन्तु इस वर्ष वे नहीं आये हैं। इससे लगता है कि युधिष्ठिर वहीं छिपे होंगे।
विराट नगर में कीचक का वध होने पर उनको विश्वास हो गया कि पांडव वहीं पर हैं। यह सोचकर दुर्योधन ने पशुधन चोरी होने का बहाना बनाकर विराट नगर पर आक्रमण कर दिया।
(जारी…)
— डॉ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’
विजय भाई , कीचक का वध कुछ न कुछ तो रंग लाएगा ही , लेकिन छुप छुप कर रहना कितना कठिन है वोह भी जब दुश्मन जान का पियासा हो . यह victory of good over evil आज भी बरकरार है . जब से भारत आज़ाद हुआ है पकिस्तान ने भारत को चैन से जीने नहीं दिया . आधा पकिस्तान भी खो दिया लेकिन दुश्मनी बरकरार है . इसी तरह पांडवों के साथ हुआ . कौरवों ने पांडवों को देश निकाले को मजबूर कर दिया यहाँ कि एक वर्ष का अगियात्वास काटने को भी बेवश कर दिया . फिर हुआ किया ? ब्हिंकर लड़ाई में बेतहाशा खून वहाया गिया . बहुत दफा सोचता हूँ कि कहीं भारत पाक की भी महांभारत जैसी लड़ाई न हो जाए . यह तो तैय है कि कौरवों ( पकिस्तान ) का किया अंत होगा लेकिन इस से पांडवों ( भारत ) का भी बहुत नुक्सान होगा .
धन्यवाद भाई साहब। युद्ध में दोनों पक्षों की हानि होती है। इसीलिए युद्ध से बचने की सलाह दी जाती है।
उपन्यास पसंद आ रहा है, विजय भाई.
आभार, बहिन जी।
यह कड़ी भी अच्छी लगी, विजय जी. कीचक का वध अज्ञातवास की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी.
धन्यवाद, जगदीशजी। आपकी बात सही है।