कहानी : भ्रम
भ्रम
”नारी निकेतन” की संचालिका के सामने आज,एक ऐसी लड़की आई है ;जो यहाँ आकर भी यहाँ रहना नहीं चाहती है| ”नारी निकेतन” मे आम तौर पर परिवार,समाज और असामाजिक तत्वों द्वारा सतायी गयी औरते आती है| और अपना आगे का सारा जीवन नारी निकेतन के लोगो को अपना मान कर बिताने को मजबूर होती है|
दो दिन पहले आयी कांता, यहाँ रहना नहीं चाहती| उसे अपने पति पर विश्वास है| वो आयेंगे उसे लेने के लिये|
उस दिन कांता किसी आवश्यक काम से बाजार जा रही थी| इसी दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने उसे अगुआ किया| उसके पवित्र तन-मन को कलुषित और दाग दागदार करके,बेहोशी की हालत मे दुसरे शहर मे किसी सुनसान जगह पर पटक गये|
कान्ता ने आँखे खोली,तो अपने आप को ”नारी निकेतन” मे पाया|
मै,यहाँ कैसे आयी? कांता ने विश्फारित नेत्रों से वहां खड़े लोगो को देखते हुए पुछा?,
”दया नारी निकेतन” की संचालिका, आभा शर्मा ने कहा ”आपको मै यहाँ लेकर आयी, कुछ गुंडे टाइप लडके आपको सुनसान जगह पर पटक गये थे|,
”आप कौन है,कहाँ से है? आभा जी ने पूछा|
याददाश्त पर जोर देने से कांता को वो सब कुछ याद आ गया| जोर -जोर से रोने लगी| ”नहीं रहना मुझे यहाँ,आप मेरे घर खबर कर दीजिये;मेरे पति वेणुगोपाल मुझसे बहुत प्यार करते है, वो मुझे यहाँ से लेकर जायेंगे|
संचालिका आभा जी ने कांता जब बेहोश थी तभी उसके पर्श मे से उसके घर का पता लेकर वेणुगोपाल को खबर कर दी ;पर उन्होंने उसे ले जाने से मना कर दिया था|उनका जवाब था ”अब हमारे घर मे उसके लिए कोई जगह नहीं है|, आभा जी के लिए कांता को ये बताना थोडा मुश्किल हो रहा था|
कांता के पति,,वेणुगोपाल के पुस्तेनी व्यवसाय था| कारोबार जितना बड़ा था,विचार उतने ही संकीर्ण थे| अपनी ही पत्नी को हर वक्त शक की नजर से देखते;बहुत बार कांता का पति से इस बात को लेकर झगड़ा होता रहता था|
कांता ने बार-बार संचालिका,आभा जी से पति को खबर करने का दबाव डाला तो आभा जी को मजबूरन बताना पड़ा”तुम्हारे पति वेणुगोपाल जी ने तुम्हे घर ले जाने के लिए साफ इंकार कर दिया है|,कांता ये सुनकर रोने लगी,आभा जी ने उसे रोने दिया ;करीब दो दिन तक वो रोती रही|
”कांता रोना-धोना छोड़ो,अब तुम अबला नहीं सबला बनो| तुम्हे अपना आगे का जीवन अकेले बिताना है|, समझाया आभा जी ने|
आभा जी की बाते सुनकर,कांता के अंतर मे नई ऊर्जा का संचार हुआ ; पिछला सब कुछ भुलाने मे उसके अंतर्मन मे बहुत पीड़ा हो रही थी;पर उसने सब भुला कर एक नये सिरे से अपना जीवन आरम्भ किया|उसने ग्रेजुएसन किया | पोस्ट ग्रेजुएसन मे टॉप किया| आभा जी ने उसे कालेज मे लेक्चरार लगवा दिय|
आभा जी के परिवार के नाम पर एक सास ही थी जो उनके साथ ही रहती है| कांता आभा जी के साथ ही रहने लगी| उन दोनों के बीच आत्मीय रिश्ता कायम हो गया था|
” क्या वेणु मुझसे इतना ही प्यार करते थे;एक घटना से ही प्यार छिन्न-भिन्न हो गया| वो मुझसे प्यार करते ही नहीं थे शायद मेरे तन से …..कांता आज भी ये सोच कर अपने अतीत का आकलन करने लगती है|
”कांता के कॉलेज मे दो दिन बाद वार्षिक उत्सव होने जा रहा था|
”कांता तुम्हे मंच संचालन करना है, कॉलेज की प्रिंसिपल उमाजी ने कहा|
एक के बाद एक सुन्दर प्रस्तुति पेश की गयी| कार्यक्रम लगभग दो घंटे चला|
अंत मे अतिथियों को जल-पान कराने के बाद जब कांता स्टाफ रूम मे आयी| वहां एक जाना-पहचाना चेहरा पहले से ही मौजूद था |
”कांता घर चलो,मै तुम्हे ले जाने आया हूँ|, कांता के पति वेणुगोपाल ने कहा|
मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है| कांता आदमी के इस रूप को जानने की कोशिश करने लगी| पर वो पुरुष के दोहरेपन को नहीं समझ सकी | अपने को सभाला और बोली ;आपने बहुत देर कर दी |जिस कांता को लेने आप आये हो वो तो कब की अपने पति के दोगले व्यवहार के कारण दफन हो चुकी है | ये जो आपके सामने है वो उसकी जिन्दा लाश है| और वो कमरे से बहर आ गयी| उसे अब तक जो भ्रम था वो टूट गया था |
आभा जी ने सब देखा पर वो भी कुछ नहीं बोली कांता को लेकर वो अपने घर आ गयी |
शांति पुरोहित
शान्ति बहन , आप बहुत अच्छा लिखती हैं , पड़ने में आनंद आता है . जिंदगी की सच्चाई लिखती हैं .आगे भी इंतज़ार रहेगा .
धन्यवाद, भाई साहब ! जो महसूस जरती हूँ, वही लिख देती हूँ.
आपकी स्नेहिल और प्रेरक टिप्पणी नई उर्जा का संचार करती है गुरमेल भाई साहब
waah di really too gud …
आभार, गुंजन !
शुक्रिया गुंजन
बहुत अची कहानी शांति जी .. सादर
धन्यवाद, प्रवीन दी.
आपकी कहानियों के तो मुरीद हैं
ये भी बहुत पसंद आयी जी 🙂
धन्यवाद सौरभ जी।
अच्छी कहानी |
आभार ऋता जी।
कहानी बहुत पसंद आई बहिन जी
धन्यवाद भाई।