कविता

ये बंधन तो प्यार का बंधन है ,,,,! (२०१०)

१- मेरी दीदीहाँ अब बो नानी भी बन चुकी हे
लेकिन राखी बांधना नही भूली
राखी पर उनका फोन आ ही जाता हे
क्या प्रोग्राम हे , कब आ रहे हो
या हर बार कि तरह इस बार भी…..
राखी पोस्ट कर दूँ….
शादी के बाद ये बंधन इतना कमजोर
क्यूँ हो जाता हे…..
में दुविधा में सोचता ही रह जाता हूँ…

२. पत्नी

ए जी सुनो …….
मयंक इस बार भी नही आ पायेगा
मुझे ही उसको राखी बांधने जाना होगा
मेने दबी सी आवाज में कहा
दीदी का फोन आया था ….
उसने इग्नोर किया , और बोली..
शाम को ऑफिस से जल्दी आ जाना
मयंक के लिए राखी खरीदनी है
मेरी दुविधा काफी हद्द तक
ख़तम हो चुकी हे….

३..अंतर

भाई (मयंक) कि शादी हो चुकी हे…
इस बार मयंक का फोन आता है
दीदी आप इस बार राखी पर मत आना
मैं संगीता को उसके भाई के यहाँ लेकर जाऊंगा
पत्नी बड़बड़ाती है….
ये आज कल कि लडकिया तो
आते ही संबंधों में दरार डाल देती हैं
और मयंक को भी देखो
कितनी जल्दी उसका गुलाम बन बैठा
मेरी दुविधा का कोई अंत नही…..

“आलोक”

3 thoughts on “ये बंधन तो प्यार का बंधन है ,,,,! (२०१०)

  • सविता मिश्रा

    बहुत सुन्दर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अलोक जी , कविता से मुझे पुरानी बात याद हो आई . मेरे मामा जी हर वर्ष पहले मासी जी के घर जाते फिर हमारे घर आते .बहुत फ्रूट और मथाई लाते . वोह बाइसिकल पर आते , पहले बीस मील मासी के गाँव जाते फिर बीस मील हमारे यहाँ आते . मेरे पिता जी हमेशा मामा जी को कहते कि अब तो वोह भी बूड़े गए है , भाई साहिब अब इतनी तकलीफ न उठाएं . मामा जी की बात अभी तक मेरे कानों में गूज रही है , भया जी ! जब तक मैं जिंदा हूँ मैं इसी तरह आता रहूँगा , बहन से रिश्ता कैसे तोड़ सकता हूँ ? कभी कभी खियाल आता है वोह लोग कितने अछे थे .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी सामयिक कविता। यह वास्तविकता है।

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