कविता

तुमसे हैं सब एहसास मेरे

कभी समय की ठोकर से, यदि हिल जाएँ विश्वास मेरे

कभी जो तुमसे कहने को यदि, शब्द नहीं हों पास मेरे

कभी तुम्हारी अभिलाषाएं,.. यदि मैं पूर्ण न कर पाऊँ

प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

 

कभी जो मेरा क्रोध यदि, ….अति से ज्यादा बढ़ जाये

कभी जो मेरा अहम् यदि,…… प्रेम के आगे अड़ जाये

कभी जो यदि मैं झूठे कह दूँ, व्यतीत हुए आभास मेरे

प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

 

कभी विवशतावश तुमको, यदि स्वीकार न कर पाऊँ

कभी रीति-रस्मों के भय से, ..यदि प्रिये में डर जाऊँ

कभी जो यदि पीड़ा प्रतीत हों, प्रिय सारे उल्लास मेरे

प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

 

कभी तुम्हें अपमानित कर, ….यदि मैं हर्षित हो जाऊँ

कभी तुम्हें तर्षित कर प्रिय यदि में विचलित हो जाऊँ

कभी जो मर्यादाहीन लगें,… प्रिय उन्मुक्त विलास मेरे

प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

__________________________अभिवृत

2 thoughts on “तुमसे हैं सब एहसास मेरे

  • मानसी

    आपका यह गीत बहुत पसन्द आया।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ख़ूब , अभिवृत जी!

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