लघुकथा

ताज महल

दलजीत सिंह और हरनाम कौर जब भारत से इंगलैंड आये थे  तो उस वक्त इंगलैंड के हालात इतने अच्छे नहीं थे . उन्होंने सोच लिया था कि जितना भी हो सके कुछ पैसे कमा कर अपने गाँव में ज़मीन खरीद लें और वापिस कभी ना आयें . उन्होंने सख्त मिहनत की , ओवर टाइम लगा लगा कर , दिन रात एक करके गाँव में काफी ज़मीन खरीद ली लेकिन जो इंसान सोचता है बहुत दफा उस के उलट हो जाता है . उनके बच्चे हुए जवान हुए और पड़ा लिखा कर उनकी शादीआं कर दीं . अब दलजीत सिंह की खाहिश थी कि गाँव में आलिशान कोठी बनाई जाए लेकिन हरनाम कौर इस के खिलाफ थी . दलजीत सिंह अपनी पत्नी को समझाता , अरी भाग्यवान ! अब हम रीटाएर होने वाले हैं , रीटाएर होने के बाद वोह छे महीने इंडिया और छे महीने इंगलैंड में रहा करेंगे, गाँव में उन का नाम रहेगा  लेकिन हरनाम कौर अक्सर जवाब देती ,तू इंडिया जाना है तो जाह , मैं तो नहीं जाउंगी , यहाँ मेरे बच्चे मैं तो वहीँ रहूंगी .

दलजीत सिंह भी ज़िदी था और उस ने गाँव में एक खूबसूरत कोठी बना ली . हरनाम कौर को भी मानना पड़ा था . आखिर रीटाएर होने के बाद  उन्होंने इंडिया जाने के लिए सीटें बुक करवा लीं . अभी जाने में दो महीने रहते थे कि दलजीत सिंह को इंडिया से उस के दोस्त का टेलीफून आया कि दलजीत सिंह के भाई ने जबरदस्ती कोठी पर कब्ज़ा कर लिया था और कहता था कि कोठी उस की जमीन पर बनी हुई थी . इस लिए वोह कोठी उस की है . दलजीत सिंह और हरनाम कौर तो हैरान रह गए कि यह किया हो गिया ? दलजीत सिंह ने अपने दोस्त को टेलीफून किया कि वोह वकील का बंदोबस्त करे और पैसे भेज दिए .

दिन रात उनके दिन सोचों में बीत रहे थे कि इंडिया जाने से दो हफ्ते पहले दलजीत सिंह को जबरदस्त हार्ट अटैक हुआ और संसार को अलविदा कह दिया . हरनाम कौर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा . सब रिश्तेदार और दोस्त अफ़सोस के लिए आने शुरू हो गए . दलजीत सिंह की बहन भी आ गई और हरनाम कौर के गले लिपट गई और रोने लगी . हरनाम कौर भी जोर जोर से  रो रही थी और बोले जा रही थी , ओह मेरे साथिया ! तू तो मुझे छोड़ कर चला गिया , अब बता ! तू जो गाँव में मेरे लिए ताज महल बना गिया हैं उस का अब मैं किया करूँ .

3 thoughts on “ताज महल

  • मनजीत कौर

    आज कल दुनिया में यही सबकुछ हो रहा है पैसे के लिए लोग रिश्तो की बलि चडा देते है | ऐसे धोखे जब अपनों से मिलते है तो जानलेवा साबित होते है बहुत दुःख भरी कहानी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , धन्यवाद . दरअसल पर्देसिओं का यह दुखांत बहुत ही कॉमन बात है . जो लोग गरीबी में से निकल कर परदेस में आये थे उन के मन में हमेशा एक खाहिश रहती है कि कभी वोह भी अपने देस में आराम से रहेंगे लेकिन इतने वर्षों बाद बहन भाई बदल जाते हैं . ऐसा बहुत लोगों के साथ हो रहा है और कोर्टों में मुक्क्द्में चल रहे हैं . यही कहानी मैंने यहाँ एक रेडिओ को भी भेजी है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत दर्द भरी कहानी, भाई साहब. सबकी यही कहानी है.

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