तेरी ओर आना चाहूँ
तेरी ओर आना चाहूँ
तेरी ओर आना चाहूँ, पर तूफ़ान हैं बहुत.
मिलन के बीच में यहाँ, शैतान हैं बहुत.
चलो दिलकशी का दौर है, हम भी ज़रा चख लें.
बूढ़े हैं कम यहाँ, यहाँ जवान हैं बहुत.
चलो फैला लो पंख पंछी, कब से निराश हो.
हिम्मत तो करो फिर से के मैदान हैं बहुत.
वबा रही है फ़ैल, यहाँ सब बीमार हैं.
हम रोक ले ते इसको पर बेईमान हैं बहुत.
अपनी नहीं है सोचते जो मुल्क के आगे.
ऐसे ही विरले देश पर कुर्बान हैं बहुत.
मिटा तो गर चाहते हो, तुम हस्ती हमारी.
अलग दिल से करोगे कैसे के, हिन्दुस्तान हैं बहुत.
‘आशू’ तड़प रहा है, अब पास जाने को.
पर अपने हैं कम यहाँ, यहाँ अनजान हैं बहुत.
-अश्वनी कुमार
बढ़िया कविता