गीतिका/ग़ज़ल

तेरी ओर आना चाहूँ

तेरी ओर आना चाहूँ

तेरी ओर आना चाहूँ, पर तूफ़ान हैं बहुत.

मिलन के बीच में यहाँ, शैतान हैं बहुत.

चलो दिलकशी का दौर है, हम भी ज़रा चख लें.

बूढ़े हैं कम यहाँ, यहाँ जवान हैं बहुत.

चलो फैला लो पंख पंछी, कब से निराश हो.

हिम्मत तो करो फिर से के मैदान हैं बहुत.

वबा रही है फ़ैल, यहाँ सब बीमार हैं.

हम रोक ले ते इसको पर बेईमान हैं बहुत.

अपनी नहीं है सोचते जो मुल्क के आगे.

ऐसे ही विरले देश पर कुर्बान हैं बहुत.

मिटा तो गर चाहते हो, तुम हस्ती हमारी.

अलग दिल से करोगे कैसे के, हिन्दुस्तान हैं बहुत.

‘आशू’ तड़प रहा है, अब पास जाने को.

पर अपने हैं कम यहाँ, यहाँ अनजान हैं बहुत.

-अश्वनी कुमार

 

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

One thought on “तेरी ओर आना चाहूँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता

Comments are closed.