तोड़ना मत उन्हें है खिलते जाना
रोकना मत राह, चाह है बढ़ते जाना।
तोड़ना मत फूल, उन्हें है खिलते जाना।
भूलना उनको, न था जिन पर बस।
कर धरा-हरित, मिटने से बचाना।
जख़्म मिलते हैं, मरहम मांगतें बस।
हाथ इन्सानियत का, मरहम बनाना।
रोकना मत राह, चाह है बढ़ते जाना।
तोड़ना मत फूल, उन्हें है खिलते जाना।
रात में तारे, उजाले बाॅंटते बस।
दीपों की कतारे, हरपल है सजाना।
उदियमान आदित्य रात चांदनी हो।
निहारना मत, ‘मौन’ कुछ कर जाना।
रोकना मत राह, चाह है बढ़ते जाना।
तोड़ना मत फूल, उन्हें है खिलते जाना।
dhanyavad vijay ji avam gurmel ji sath hi tarif ka shukriya
मनोज जी , कविता बहुत अच्छी है , फूल बहुत अछे ढंग से लगाए हुए हैं , किसी पार्क में ही होंगे लेकिन देख कर खुश होता है .
बहुत सुंदर कविता, मौन जी!