राखी पर लें प्रण ….
” यही प्रण लेना और देना ,
राखी का मान-सम्मान बढ़ाना”
प्रेम के धागे
शायद कच्चे हो गये
या फिर अपना
महत्व खोने लगे हैं
एक डोरी में बंधा
प्रेम-विश्वास, दुआयें और सम्मान
कहीं न कहीं कमजोर हो रहा है
वरना हर दिन यूँ
बहने डर डरके न जीती
एक तरफ श्रीकृष्ण ने
द्रौपदी की लाज बचायी
एक कच्चे धागे से ही
खत्म न होने वाला चीर बनाया
तब तो दुशासन एक था
आज हर गली हर नुक्कड़ पर
दुशासनों का डेरा है
और कोई कृष्णा भी तो नहीं
अब बहनों को भाई से
खुद की रक्षा की नहीं बल्कि
संपूर्ण नारी-जाति के
सम्मान की रक्षा का प्रण लेना होगा
वचन लेना होगा कि
कभी किसी पर कुदृष्टि न डालें
वरना बेइज्जत वो पीडित नहीं
बल्कि मेरी राखी और मेरा विस्वास होगा !!
प्रवीन मलिक ••••••@•••••
परवीन बहन , कविता जागरूपता लाने वाली है . कहते हैं क्रान्ति का कोई दिन निश्चित नहीं होता , बस कभी भी आ सकती है . आज सच्चे और बहादर भाईओं की जरुरत है . आज क्रिशन भाईओं की जरुरत है ताकि दुह्सास्नों का अंत हो सके .
सादर धन्यवाद गुरमेल भाई साहब … बहन का सम्मान देने और कविता के भावो को समझने के लिए … बिलकुल आज समाज को जरुरत है की बाकि सब नारी जाति का भी अपने परिवार की तरह ही सम्मान देना चाहिए
प्रेरणादायी कविता।
सादर धन्यवाद विजय कुमार सिंघल जी आपकी हौसलाफजाई हेतु
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई
सादर धन्यवाद मदन मोहन सक्सेना जी कविता के भावो को समझने के लिए और हौसला बढाने के लिए