समाज में प्रचलित कुछ अन्धविश्वास
रात में मैं सोने की कोशिश कर रहा था की गली में एक कुत्ते की जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी , मुझे थोडा गुस्सा आया और जैसे ही यह देखने के लिए दरवाजा खोलने लगा की कुत्ता क्यों रो रहा है तो मेरी माता जी कहती हैं की ‘ कुत्ते का रोना अशुभ होता है, तू उसे भगा दे नहीं तो कल तक गली में किसी न किसी के घर से अशुभ समाचार मिलेगा’
मैं सोचने लग गया की कुत्ते को कैसे पता की कल क्या होने वाला है? कितना अन्धविश्वास है समाज में।
मैंने कुत्ते के पास जाके देखा तो वह पूंछ हिलाने लगा मैं समझ गया की वह भूंखा है अत: घर से दो- तीन रोटियाँ लाके डाल दी और जा के सो गया। उसके बाद मुझे कुत्ते की रोने की आवाज नहीं सुनाई दी ।
सुबह मुझे गली में ऐसी कोई खबर नहीं सुनने को मिली जिसे ‘बुरी खबर’ कहा जा सके
ऐसे न जाने कितने ही अन्धविश्वास समाज आज भी फैले हुए हैं जिनपर लोग आँख बंद कर के भरोसा करते हैं ।जबकि इनका कोई महत्व नहीं होता ,शकुन अपशकुन , भविष्यवाणी करना आदि सब पाखंड है जिसका कोई मतलब नहीं होता ।
इसी तरह से कुछ बहुचर्चित अन्धविश्वास हैं जिनका समाज से ख़त्म होना ही उचित होगा , जैसे –
1-छींक का आना – यदि कोई काम करने जा रहे हैं तो छींक आ जाये तो उसे अपशकुन माना जाता है , पर आप गौर करेंगे न छीक आने पर आपके काम ज्यादा बिगड़े होंगे।
छींक का आना स्भाविक प्रक्रिया है इसे रोका नहीं जा सकता ,शुभ अशुभ से इसका कोई लेना देना नहीं।
2- खाली बर्तन देखना- यह माना जाता है की यदि किसी काम से जाते समय खाली बर्तन देख लिया तो काम बनेगा नहीं । यदि ऐसा होता तो किसी का काम बिगड़ता ही नहीं क्यों की खाली बर्तन देखने वालो की संख्या बहुत कम होती है और बिना किसी बर्तन के देखे काम पर निकलने वालो की अधिक।
3- नीबू मिर्च बांधना- आपने अक्सर लोगो के घरो ,दुकानों या दफ्तरों के दरवाजो पर नीबू मिर्च टाँगे हुए देखा होगा। इसको बांधने से कहा जाता है की बुरी आत्माये,दुःख दर्द आदि नुकसान पहुचाने वाले विपदाए घर/ दुकानों में प्रवेश नहीं करती । व्यापर आदि में घाटा नहीं होता ।
पर क्या यह सच होता है? क्या जो अपने दरवाजे के आगे नीबू मिर्च बाँध देते हैं उनके घर परिवार में कोई दुःख नहीं होता? क्या दुकानों के आगे नीबू मिर्च बाँधने से व्यापर में घाटा नहीं होता? अगर ऐसा होता तो दुनिया मे किसी को भी व्यापर में घाटा नहीं होता सब अपने दुकानों के आगे पांच रूपये का नीबू मिर्च बाँध के करोडो अरबो का व्यापर करते।
मित्रो, ऐसे कई और अन्धविश्वास समाज में प्रचलित हैं जो समाज के विकास में बाधित हैं उन्हें जल्द से जल्द समाज से ख़त्म करना ही उचित होगा। यह तभी संभव होगा जब लोगो को जागरूक किया जायेगा,यदि आप अपने आस पास ऐसी घटना देखे तो तुरंत उसका विरोध करे और लोगो को समझाए की यह सब गलत मान्यताये हैं ।
आपसे मैं अक्षरशः सहमत हूँ, केशव जी. शकुन-अपशकुन और टोने-टोटके आदि सिर्फ अन्धविश्वास हैं, इसके अलावा कुछ नहीं. मैं इसका अपनी तरह से विरोध करता हूँ. अगर कहीं जाते हुए बिल्ली रास्ता कट जाती है, तो मैं उसी समय अवश्य जाता हूँ. इस कारण कभी मेरे कार्य की हानि हुई हो ऐसा कभी नहीं हुआ. इसी तरह अन्य अंधविश्वासों के बारे में समझा जा सकता है.
केशव भाई , आप नास्तिक हैं , और मैं आप को इस बात की वधाई देता हूँ . जो आप लिख रहे हैं इस से अगर एक भी इस अंधविश्वास के अँधेरे से बाहिर आ जाए तो समझो आप का लिखना कामयाब है. मैं अब ७२ का होने जा रहा हूँ और फखर से कह सकता हूँ कि मैंने कभी भी जिंदगी में अंध विशवास से नहीं जिया . अब तुम हंसोगे कि हम दोस्त बचपन से ही रास्तों में पड़े टोनों को ठोकरें मार कर तोडा करते थे और उन में से पैसे निकाल लेते थे . रात को हम शमशान घाट पर जोर जोर से शोर मचाया करते थे और लोग डर जाते थे किओंकि उन दिनों में गाँवों में बिजली होती नहीं थी और लोग सूरज छिपने के साथ ही सो जाया करते थे . कुछ दोस्त तो मकई के भुट्टे जिस को पंजाब में छली कहते हैं शमशान में जल रहे मुर्दों की आग में भूना करते थे . जब बड़े हो कर शहर पड़ने लगे थे तो शहर में माझमा लगाने वाले जो लोगों को जादू के ट्रिक करके ठग लेते थे उन को डिस्टर्ब करते थे . इतनी बातें हैं कि बहुत पेजज़ लगेंगे बताने को . हमें तो कुछ नहीं हुआ . यह अंधविश्वास कब जाएगा भारत से ? समझ नहीं आती यह पड़े लिखे हैं या अन्पड ?
हा…हा…हा…. भाई साहब, आपकी बात पढ़कर मजा आ गया. ऐसी शरारतें तो हमने कभी नहीं कीं, लेकिन मैं भी प्रारंभ से ही अंधविश्वासों से घृणा करता हूँ. इस कारण मुझे घर पर डांट भी बहुत पड़ती थी और आज भी पड़ती है.
विजय भाई , इतनी बातें हैं कि धीरे धीरे सब लिखूंगा कि लोग अंधविश्वास के कारण अपना कितना नुक्सान कराते हैं . यह बेवकूफ जाहिल बाबे लोगों को कितना ठगते हैं , मैंने बहुत नज़दीक से इन्हें देखा है . मुझे एक बात का बहुत दुःख होता है कि लोग इतने पड़ लिख कर भी इन अन्पड बाबों के सामने घुटने कियों टेक देते हैं . यह बाबे भगवा कपडे पहन लोगों का ब्रेन वाश कर देते हैं . कालिज के ज़माने में हम इन लोगों के पीछे पड़े रहते थे और वोह दूर से ही देख कर हम को हाथ जोड़ देते थे . एक बार तो ऐसा हुआ कि हमारे बचपन का दोस्त ही बाबा निकला जो गाँव छोड़ कर अपने नानके घर रहने लगा था . उस ने बहुत बातें बताई .