गज़ल – अरविन्द कुमार साहू
बदलते हालात में हम घर से गाफिल हो गये
गाँव की मासूमियत में शहर शामिल हो गये
आधुनिकता ने बदल दी गाँव की आबो – हवा
नीम , पीपल , नदी , पनघट सभी फाजिल हो गये
गाँव की चौपाल के जो पंच परमेश्वर रहे
सीख कर परपंच वो संसद के काबिल हो गये
गाँव के नजदीक जबसे पुलिस चौकी खुल गयी
जो दबे कुचले थे वो , बीहड़ में दाखिल हो गये
एक छप्पर के लिये सौ हाथ उठते थे जहाँ
बिस्वा बिस्वा भूमि की खातिर वो कातिल हो गये
जिनको दी पतवार ‘साहू’ पार करने के लिये
नाव गहरे में डुबोकर खुद वो साहिल हो गये
सम्पर्क – मोबाइल – 98 38 83 34 34
बदलते ज़माने को अछे ढंग से वर्णन किया है , यही तो हुआ है !
एक और अच्छी गजल, अरविन्द जी.