कविता
हवाओं ने रुख को मोड़ा, तूफानों ने दे दी गति,
इतिहास ने दे दी फिर से नए परिवर्तन की स्वीकृति !
गगन भी लगा स्वच्छंद, और पवन भी महकी-महकी
धरा ने ली सुख की अंगड़ाई, और चिड़ियाँ भी चहकी-चहकी
नदियों ने ली ख़ुशी से उन्मुक्त हिलोरें
उनकी बढ़ेगी पावनताऔर जन जन में जग जाएगी
एक नए परिवर्तन की उत्सुकता
आशाओं के आधार को मिल गया एक नया सेनापति
इतिहास ने दे दी फिर से नए परिवर्तन की स्वीकृति !
परिवर्तन की इस अगुवाई पर परमादिकता की मोहर लगनी है
गौ गंगा गायत्री गीता वाली शान फिर से अब लौटनी है
संस्कृति सभ्यता और आधुनिकता के
तारतम्य का सरगम तुमको गाना है
हर क्षेत्र में हम अग्रणी बनें
ऐसा मजबूत भारत हमको बनाना है
कहने सुनने की अब बात नहीं
कर दिखाने की है एक बड़ी चुनौती
इतिहास ने दे दी फिर से नए परिवर्तन की स्वीकृति !
अब कहीं न शीश कटे
माँ की आन बान शान पर कहीं से कोई न आवाज उठे
याद रहे हमको वो दर्द क्यूँ बिन कारण वो शीश कटे
आँख दिखाने वालों के मन में आँख निकलने का डर समाया हो
आज़ाद, भगत सिंह वाला जूनून
हर भारतवासी के दिल में छाया हो
आज़ादी के पर्व पर आजादी के दीवानों की फूले हर्ष से छाती
उच्च कर्मों के फल से हम सब उतारें उनकी आरती
आजाद भारत में आज़ाद हो हर अच्छा इंसान
ऐसी बनानी है हमको नीति
इतिहास ने दे दी फिर से नए परिवर्तन की स्वीकृति !
आजादी के अवसर पर बहुत अच्छी कविता, भाई साहब.
धन्यवाद, विजय जी.