युवाओं का राजनैतिक शोषण -नितिन त्रिपाठी
जवानों मोड़ सकते हो तो मोड़ो रुख जमाने का, अगर तुम कर नहीं सकते तो फिर नौजवान क्यों हो? अभी हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में यह पंक्तियाँ एक 70 वर्ष की आयु के प्रत्याशी के भाषण में सुनीद्य हंसी भी आई और क्षोभ भी हुआद्य सभा में वक्ता ही सबसे ज्यादा आयु के थे और श्रोता सभी नौजवान ही थेद्य सभा के पश्चात एक युवा ने प्रश्न किया कि यदि आप विजई हुए तो रोजगार के लिए क्या कदम उठाएंगेद्य नेता जी के पास कोई जवाब ही न थाद्य नेता जी का वही घिसा पिटा जवाब था कि एक बार जिता दीजिये फिर सब कुछ ठीक कर दूंगाद्य तत्पश्चात नेता जी तुरंत अपने चिर परिचित बिजली सड़क के पुराने नारों पर आ गएद्य
ऐतिहासिक रूप से सभी क्रांतियाँ युवाओं की ही की हुई हैंद्य चाहे वह जय प्रकाश नारायण का आन्दोलन हो या अन्ना का आन्दोलन होद्य युवा शक्ति क्रान्ति का प्रतीक होती हैद्य कहा भी जाता है जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता हैद्य भारत की राजनीति में भी सार्वधिक नाम कमाने वाले वही राजनीतिज्ञ रहे हैं जो युवावस्था से ही राजनीति में कूदेद्य चाहे वह अटल जी हों या इंदिरा जी या फिर मायावती हों या फिर युवा तुर्क चन्द्र शेखरद्य ऐतिहासिक रूप से भारत वर्ष में श्री राम युवावस्था में अयोध्या के राजा हुएद्य 29 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध को वैराग्य हुआद्य यह वही धरा है जहाँ अंग्रेजों की गुलामी में भी चन्द्र शेखर आज़ाद एवं भगत सिंह जैसे युवा क्रांतिकारी हुएद्य
यह भारत का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि भारत वर्ष में लगभग सभी राजनैतिक पार्टिया युवाओं का शोषण ही करती हैंद्य सभी राजनैतिक दलों के युवा प्रकोष्ठ हैं, दलों की रैलियों में भीड़ लाने का, धरना अनशन प्रदर्शन, पुलिस की लाठियां खाने का उत्तर दायित्व पूरी तरह से युवाओं का ही माना जाता हैद्य चुनाव के समय कैम्पेनिंग करना हो या मतदाताओं को बूथ तक लाना हो, दारू पैसा बांटना हों इन सभी में युवाओं के कंधे पर ही बन्दूक रखी जाती हैद्य पर जब संगठन में उत्तर दायित्व देने की बारी आती है या सरकार में भागीदारी की बारी आती है, तो युवाओं को अनुभव हीन बता कर उनके अधिकार से वंचित रखा जाता हैद्य टोकन स्वरुप 5 दृ 10: नियुक्तियां युवाओं की होती भी हैं तो वोह प्रायः नेता जी के परिवार के होते हैं या फिर उनके सम्बन्ध नेता जी से अच्छे होते हैंद्य भारत की दो तिहाई जनसँख्या 35 वर्ष से कम आयु की हैद्य पर उनका प्रतिनिधित्व करने वाले राजनैतिज्ञ 95: 35 वर्ष से ज्यादा आयु के हैंद्य सभी दलों के संगठनों में भी 35-40 वर्ष तक की आयु के नेताओं का लगभग पूरी तरह से अभाव हैद्य जो हैं भी वोह प्रायः बड़े नेताओं के डमी उम्मीदवारों के ही रूप में हैंद्य
हास्यास्पद यह भी है कि प्रायः 50 दृ 60 वर्ष वालों को भी राजनीति में युवा कह कर संबोधित किया जाता हैद्य जिस उम्र में तेंदुलकर रिटायर होते हैं उस उम्र के नेता को युवा नेता बोला जाता हैद्य यह सब एक शाजिश है युवाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखने कीद्य दुर्भाग्य यह भी है कि सरकारें जब नीतियां बनाती हैं, तो किसानों के लिए अलग नीतियां बनती हैं, व्यापारियों के लिए अलगद्य यहाँ तक की जाति और धर्मों तक के लिए भी नीतियां आती हैं, पर युवाओं के लिए प्रतीकात्मक इक्का दुक्का नीतियां छोड़ दी जाएँ तो युवाओं के लिए कोई नीति ही नहीं आतीद्य बिजली, पानी, मकान, सुरक्षा आदि आदि सारे देश की समस्याएं हैंद्य इनको युवाओं से जोड़ना गलतद्य युवाओं की समस्याएं हैं रोजगार, शिक्षा, मानसिक तनाव आदिद्य शायद ही कोई सरकार हो जो इन समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करती होद्य
प्रायः पद देते वक्त भारतीय राजनैतिक दल युवा राजनैतिक रूप से परिपक्व नहीं होते का बहाना देते नजर आते हैंद्य आज सारे विश्व में युवा जाग चुका हैद्य फेसबुक ट्विटर आदि अब नई राजनीति के अखाड़े बन गए हैंद्य भारत में भी पिछला चुनाव सोसल मीडिया पर ही लड़ा गया और इस चुनाव में सबसे अग्रणी भूमिका युवाओं की ही रहीद्य लेकिन 16 वीं लोकसभा भारत के इतिहास की सबसे बूढी संसद हैद्य प्रथम लोकसभा में औसत आयु सांसदों की 46.5 वर्ष थी, जो इस बार की संसद में 54 वर्ष हैद्य देश जवान हो रहा है पर देश के नेता बूढ़े हो रहे हैंद्य सारे विश्व के राजनैतिक दल राजनीति में और सत्ता में युवाओं की भागेदारी सुनिश्चित करते नजर आ रहे हैंद्य ओबामा 48 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं, तो वहीँ इटली में रेंजी 39 वर्ष में ही प्रधान मंत्री बन रहे हैंद्य टोनी ब्लेयर 44 वर्ष की आयु में इंग्लैंड के प्रधान मंत्री बन जाते हैंद्य
युवाओं के राजनैतिक शोषण की दो मुख्य वजहें रही हैंद्य प्रथम तो परिपक्व राज नेताओं में कुर्सी खाली न करने की विकृत मनोदशाद्य द्वितीय ऐसे ही राज नेताओं द्वारा पालित पोषित नाम मात्र के युवा नेताद्य चूंकि ऐसे नेताओं को आरम्भ से ही ट्रेनिंग दी जाती है कि युवा शक्ति को बिना उसका श्रेय दिए कैसे उपयोग में लाया जाए तो यह नेता युवा होते हुए भी राजनीति युवाओं की करने के बजाय बुजुर्गों की करते हैंद्य एक तीसरा कारण भी है वर्तमान भारत के अधिसंख्य दलों में बढ़ता वंशवादद्य वंशवाद की वजह से शीर्ष नेतृत्व कुशल और बुद्धिमान नई पीढी के नेताओं को आगे नहीं लाना चाहता, ताकि उनके परिवार के युवा नेताओं के लिए कोई प्रतिद्वंदिता न रहेद्य यह बात अलग है कि लम्बे समय तक ऐसा करने वाले दलों में विचारों का अभाव हो जाता है और वह दल अंततोगत्वा समाप्त हो जाते हैं, तथापि इस प्रक्रिया में समय लगता हैद्य
युवा शोषित है, वंचित है और कहीं न कहीं राजनैतिक दलों से हताश भीद्य उसकी हताशा साफ़ झलकती है कि वह लगातार विकल्प की तलाश में हैद्य कभी उसे विकल्प राहुल गांधी के युवा नेतृत्व में दीखता है, तो कभी अखिलेश में, तो कभी केजरीवाल में दिखता है, तो कभी उसकी आस्था तुरंत मोदी पर आ टिकती हैद्य अब फैसला लेना है नई पीढ़ी के बुजुर्ग नेताओं को कि क्या वह युवाओं को उनका उचित प्रतिनिधित्व न देकर ऐसे ही बार बार बदल कर सरकारें बनाते रहेंगे या वाकई में युवाओं को उसका उचित अधिकार और हिस्सा देकर लम्बे समय तक स्थाई राजनैतिक विकल्प देंगेद्य साथ ही युवाओं को भी समझना होगा कि बार बार नेता बदलने से बेहतर है की मुहीम चला कर सत्ता में सहभागिता मांगी जाएद्य संगठन में हिस्सेदारी मांगी जाएद्य जर्जर हो चुके प्रतिष्ठानों का बहिष्कार किया जाएद्य मैं समापन नेता जी की पंक्तियों से ही करना चाहूँगा पर अब भाव दूसरा है – जवानों मोड़ सकते हो तो मोड़ो रुख जमाने का, अगर तुम कर नहीं सकते तो फिर नौजवान क्यों हो?
मैं भी सहमत हूँ कि नौजवानों को आगे आना चाहिए और बूड़े सिआस्त्दानों को आराम करने दिया जाए . कुर्सी के चाहने वाले बुडों को चैलेंज करके वोटों से कुर्सी छीन ली जाए . जो वोट्र्ज़ हैं उन को चाहिए नौजवानों को आगे लाएं . तभी देश का कुछ हो पाएगा .