लघुकथा : भगवान की मर्जी
विमला मजदूरी कर घर पहुंची तो भड़क गयी भोलू पर, “कमाकर खिलाना नहीं था तो पैदा क्यों किया?”
शराबी भोला “भगवान् की मर्जी कह” बड़ी बड़ी बातें करने लगा|
भगवान सच में बड़ा कारसाज हैं, जिसके घर एक समय का ठीक से भोजन भी नहीं उसके घर हर साल बच्चे| और जिसके घर भण्डार भरा हैं, उसके उप्पर बाँझ का कलंक लगा देता हैं|
शादी के २० साल हो गये थे, सुमिता के घर किलकारी ना गूंजी थी| सुमिता भगवान के किस चौखट पर नहीं पहुंची|
आज यह जोड़ा शराबी भोलू के चौखट पर पहुँच गया| भोला और विमला में खूब बहस हुई पर …..चंद नोटों की गड्डिया ममता पर भारी पड़ गयी|
सुमिता के घर बधाई देने वालो का ताँता लगा था| आज उसकी गोद भर गयी थी, भले कोख सूनी रह गयी थी तो क्या| “भगवान की मर्जी” कह सुमिता ख़ुशी से झूम रही थी|
सविता मिश्रा
सविता जी , कहानी बहुत अच्छी लगी . गरीब के घर हर वर्ष बच्चा और अमीर के घर एक या दो या कुछ भी नहीं. भगवान् का घर तो एक comfort zone है . कुछ भी करो और कह दो भगवान् की मर्ज़ी .
बहुत बहुत धन्यवाद भैया आपका दिल से
सत्य को व्यक्त करती हुई एक लघुकथा जो बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है.
बहुत बहुत धन्यवाद भैया आपका