गीतिका
प्रभु का स्पर्श अहिल्या को हुआ
शाप मुक्तक शापित तन हुआ
शाप तापित काया आभा युक्त हुई
भरी थी आँखे कंठ अवरुद्ध हुआ
मस्तक नत वाणी निशब्द हुई
प्राणों में ख़ुशी का अतिरेक हुआ
कहा राम ने उठो अब दुःख काहे का
समय का खेल अपना ही पराया हुआ
कहीं अहिल्या कहीं सीता छली गयी
करुणा ही नारी के छलने का कारण हुआ
बहुत सुन्दर गीतिका
आभार विजय कुमार भाई जी
अच्छी गीतिका.