गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

प्रभु का स्पर्श अहिल्या को हुआ

शाप मुक्तक शापित तन हुआ

शाप तापित काया आभा युक्त हुई

भरी थी आँखे कंठ अवरुद्ध हुआ

मस्तक नत वाणी निशब्द हुई

प्राणों में ख़ुशी का अतिरेक हुआ

कहा राम ने उठो अब दुःख काहे का

समय का खेल अपना ही पराया हुआ

कहीं अहिल्या कहीं सीता छली गयी

करुणा ही नारी के छलने का कारण हुआ

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “गीतिका

  • मनजीत कौर

    बहुत सुन्दर गीतिका

  • शान्ति पुरोहित

    आभार विजय कुमार भाई जी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी गीतिका.

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