जीवेत शरद शतम्!
आज मेरा जन्मदिन है अर्थात् मैं जीवित हँू। इस देश में जिंदा रहना बड़ा कठिन कार्य है। अटलांटिक और आर्कटिक ध्रुवों पर आसानी से जिंदा रहा जा सकता है, पर यहाँ जिन्दा रहना ज़रा मुश्किल है। मेरे भीतर की आत्मा को यह चोला पसंद आ रहा है, जिसके लिए मैं उसका हृदय से आभारी हूँ। मैं इसके लिए विशेष रूप से कृतज्ञ हूँ कि उसने अब तक मुझे फटा और गंदा नहीं समझा। ऐसा नहीं कि मैंने अब तक कोई गंदा काम न किया हो, पर मेरी आत्मा इस शरीर को गंदा नहीं मानती, तो इसमें मेरा क्या दोष, बताइए भला? हे आत्मा! मैं तुम्हारा यह उपकार आजीवन नहीं भूल सकता। धन्यवाद!!
धन्यवाद की सूची लंबी होती जायेगी, किस-किस को धन्यवाद दूँ! मुझे जिन्दा रखने में कई सामाजिक और असामाजिक तत्वों का बराबर का योगदान है। मेरे संबंधी, परिजन, दोस्त-भाई और मेरे चाहनेवाले, ये वे सामाजिक तत्व हैं जो हर वर्ष शुभकामनायें देकर मुझे दीर्घजीवी बना रहे हैं। मैं इनके लिए उपयोगी पशु के समान हूँ। धन्यवाद भैया! तुम्हारे कारण मैं जीवित हूँ, वरना अब तक डायनासोर की भाँति विलुप्त हो जाता। शोधकर्ता मुझ पर शोध करते होते। मैंने कहा न मुझे जीवित रखने में कई असामाजिक तत्वों का भी योगदान है। वरना इस देश में एक आम आदमी की जिन्दगी का महत्व ही क्या है? मैं सोचता हूँ मुझे आतंकवादियों, नक्सलवादियों, उग्रवादियों की मौत बाँटनेवाली संस्थाओं के प्रति भी उपकृत हो जाना चाहिए। उन्होंने मुझे अब तक जो, मारने लायक नहीं समझा। वैसे भी मुझे मारकर उनके हाथ क्या लगना है? ऊपर से एक गोली या बम व्यर्थ हो जाता। और सबसे बड़ी बात जिस आदमी को बीस वर्ष पहले इस देश की बेरोजगारी और भुखमरी न मार सकी साहब, उसके सामने इन मृत्युदाताओं की क्या बिसात! हे मृत्युदाताओं! मैं हृदय की गहराई के सबसे निचले तल से आभारी हूँ।
अपनी सालगिरह पर यदि मैं ट्रकवालों का आभार व्यक्त न करूँ तो कृतघ्नता होगी। और ऐसा लगेगा कि मुझे जिन्दा रहने का कोई अधिकार नहीं। इस मानसिक पीड़ा से उबरने के लिए तो मुझे आत्महत्या कर लेनी चाहिए। नहीं, मैं ट्रकवालों का भी आभार मानूँगा। मैं इतना टुच्चा और अमानवीय नहीं हूँ। बल्कि मेरी तो इस देश के सभी जीवित लोगों को सलाह है कि वे भी मेरे साथ सामूहिक रूप से धन्यवाद दे दें कि, उन्हें अब तक किसी ट्रक चालक ने कुचला नहीं। मुझे गर्व है कि मैं आज भी देश की टूटी-फूटी, गड्ा। जब-जब समाचार-पत्रों में पढ़ता और रेडियो तथा टी.वी की खबरों में सुनता कि फलाँ ट्रेन के दुर्घटनाग्रस्त होने पर मरनेवालों को पाँच लाख रूपये मिले तब ऐसा लगता हाय हुसैन हम न हुए। सच मानिए मूर्दों को देखकर कलेजे पर एनाकोण्डा लोट जाता था। सोचते जिंदगी तो कभी लखपति न बनने देगी, कमबख्त मौत ने भी ये सौभाग्य छीन लिया! हवाई जहाज को मैं कुछ न कहूँगा। हवाई जहाज मेरे लिए भारत वर्ष की नब्बे प्रतिशत जनता के समान नीचे से ऊपर की ओर कोई अजूबा-सी देखने की वस्तु रहा है, बच्चों को दिखाने की चीज़ रहा है या टी.वी. या सिनेमा के परदे पर निहारने की वस्तु रहा है। समाचार पत्रों में पढ़ने मिलता कि कोई विमान रिहायशी इलाके में गिरा तो कुछ मरे पर, अपने को यह सौभाग्य भी अब तक नसीब नहीं हुआ है। मेरा सौभाग्य यही है कि मैं ऐसे शहर में रहता हूँँ, जहाँ मंत्रीजी चुनाव के समय हेलीकाॅप्टर से आते हैं, और जनता उसे चढ़ता-उतरता देख लेती है। उन्हें यही लगता है कि यह हेलीकाॅप्टर उनके देखने से चे जीवित रखने में मेरे देश के जीवित नेताओं का भी योगदान कम नहीं। ये देश आश्वासनों पर जी रहा है, और मैं भी। मैं एक सच्चा भारतीय हूँ-स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र-दिवस पर ध्वज फहराकर ‘जन-गण-मन’ गाता हूँ और रिश्वत भी खाता हूँ। मैं भी आश्वासनों पर जीता हूँ। क्या करें इस देश में आॅक्सीजन के बिना सांसे ली जा सकती हैं पर आश्वासनों के बिना….! मेरा मानना है कि जो लोग मर चुके वे इसलिए नही मरे कि उन्हें मरना था। वे तो इसलिए मरे कि वे आश्वासनों के सहारे नहीं जी सकते थे। कमज़ोर थे, डरपोक! निर्बल!! छी!!! ऐसे लोगो को तो इस देश की नागरिकता ही नहीं देना चाहिए। मै! मैं, साहसी हूँ और बलवान भी। हर टूटता और छूटता आश्वासन मुझे जीने की प्रेरणा और संबल प्रदान करता है। मैं डटा हुआ हूँ और आगे भी डटा रहूँगा। क्यों? क्योंकि मैं एक आम भारतीय हूँ। यदि नेता न होते होते तो आश्वासन न होते। आश्वासन न होते तो मैं न होता। और मैं न होता तो यह जन्मदिन न होता। हे नेताओं! तुम्हें शत्-शत्-नमन।
मै अपना जन्मदिन मना रहा हूँ। क्यों? क्योंकि मँहगाई का अजगर मुझे अब तक निगल नहीं पाया। ऐसा नहीं कि उसने कोशिश नहीं की। की। पर, क्या हुआ? हुआ यह कि जब-जब मँहगाई का अजगर मुझे निगलना चाहता, उसका मौसेरा भाई ‘बे पहले ही डस लेता। मैं पहले से अधिक ज़हरीला हो जाता। अब मँहगाई के अजगर की हिम्मत ही नहीं होती कि मुझ जैसे ज़हरीले आदमी को निगले। मुझे निगलकार भला क्यों वह अपनी मौत को पुकारे? मैं इस बे लगता है कि सरकार को मेरे इस पराक्रम को देखते हुए मुझे ‘परमवीर चक्र’ दे देना चाहिए। एक आम भारतीय अभिमन्यु की तरह न सिर्फ इतने शत्रुओं से जूझ रहा है अपितु जन्मदिन पर जन्मदिन मनाए जा रहा है! यह शौर्य और वीरता की बात है। वीरता के सम्मान की बात है। जिसे जाति-पाति, धर्म की दीवारें न दबा सकीं, जो सांप्रदायिकता की धूल भरी आँधियों में सांसें ले रहा है, जो रिश्वतखोरी के दलदल में भी तैरता रहा है, उस आम भारतीय की जीवित अवस्था का सम्मान इस व्यवस्था को करना चाहिए। इस विषमता भरे दौर में अपना जन्मदिन मना रहा हूँ, ये जीवित अस्तित्व का प्रमाण है।
आप मुझे बधाई दीजिए-जीवेत शरद शतम्!!
एक और अच्छा व्यंग्य. बधाई ! जीवेत शरदः शतं !!