उपन्यास : शान्तिदूत (बत्तीसवीं कड़ी)
कृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सिर काटने के दृश्य को याद करके सब भयभीत हो गये। उन्होंने देखा था कि कृष्ण ने अपना दायां हाथ थोड़ा सा ऊपर उठाकर तर्जनी उंगली से आकाश की ओर संकेत किया ही था कि जाने कहां से एक घूमता हुआ चमकीला चक्र प्रकट होकर उनकी उंगली में घूमने लगा। जब तक वहां उपस्थित जन कुछ समझ पाते, तब तक वह चक्र वहाँ से छूटकर घूमता हुआ शिशुपाल की ग्रीवा को भेद गया और फिर लौटकर उसी उंगली में आकर लुप्त हो गया। चीत्कार करता हुआ शिशुपाल इसके साथ ही धरती पर गिर पड़ा और फिर सदा के लिए शान्त हो गया।
आज भी उस दृश्य को स्मरण करके सभी भयभीत हो जाते हैं। शिशुपाल दुर्योधन का मित्र था और उसी की तरह उद्दंड था। उसकी उद्दंडता का दंड देकर कृष्ण ने केवल शिशुपाल का ही वध नहीं किया था, बल्कि उस जैसे अनेक राजाओं-युवराजों को प्रत्यक्ष चेतावनी ही दे डाली थी। शिशुपाल के बाद फिर किसी ने राजसूय यज्ञ में बाधा डालने का दुस्साहस नहीं किया था। अनेक वर्ष बाद भी वह घटना आज भी दुर्योधन आदि कौरवों के मस्तिष्क में जीवंत थी। इसलिए वे कृष्ण के विरुद्ध कोई दुस्साहसपूर्ण कार्यवाही करने में डर रहे थे। यदि यह कृष्ण की जगह कोई अन्य व्यक्ति रहा होता, तो दुर्योधन ने तत्काल उसको बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया होता।
देर तक सन्नाटा छाये रहने के बाद दुःशासन ने मौन तोड़ा- ‘भ्राताश्री, सुदर्शन चक्र तो तभी प्रकट होता है, जब कृष्ण का दायां हाथ ऊपर उठता है। यदि हाथ को ऊपर ही न उठने दिया जाये, तो चक्र कहाँ पर और कैसे आयेगा?’
दुःशासन की बात विचारणीय थी। सभी एकटक दृष्टि से दुःशासन को देखने लगे और विचार करने लगे। अन्त में शकुनि बोले- ‘हां, यह एक उपाय हो सकता है। यदि हम कृष्ण को इस प्रकार पकड़कर बांध लें कि उनका हाथ ऊपर न उठ पाये, तो उनको निष्क्रिय किया जा सकता है। परन्तु इसमें असफलता की सम्भावना भी बहुत है। यदि कोई चूक हो गयी, तो सब व्यर्थ हो जाएगा।’
अन्य सभी ने उनके कथन के समर्थन में सिर हिलाया। इस कार्य में चूक की सम्भावना तो थी, लेकिन यदि सफल हो गये, तो फिर उनको युद्ध जीतने से कोई नहीं रोक सकता। इसमें दुर्योधन को आशा की किरण दिखायी दी। बोला- ‘मामाश्री, कोई पाश फेंकने वाला ऐसा भी हो सकता है, जो पलक झपकते ही कृष्ण के दोनों हाथों और धड़ को एक साथ पाश में कस ले। यदि ऐसा हो जाये, तो विजय हमारी है।’
‘हमारे राज्य में पाश फेंकने में प्रवीण कई व्यक्ति हैं। उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं और उनको समझाया जा सकता है।’ यह दुःशासन का स्वर था।
‘वाह ! दुःशासन, तुम ऐसा ही करो। आज ही तुरन्त उनसे सम्पर्क करो और कम से कम दो पाश फेंकने में प्रवीण व्यक्तियों को ले आओ। अगर दोनों ओर से एक साथ पाश फेंका जाएगा, तो सफलता की सम्भावना बहुत बढ़ जाएगी।’
दुर्योधन की यह बात सुनकर सभी के मुखमंडल आशा से चमकने लगे। दुर्योधन का आदेश पाकर दुःशासन तुरन्त वहां से चला गया और पाश फेंकने वाले दो अत्यन्त प्रवीण व्यक्तियों को बुला लाया। उनको दुर्योधन के सामने प्रस्तुत किया गया, जहां शकुनि और कर्ण भी उपस्थित थे।
दुःशासन उनको पूरी बात पहले ही बता चुका था। दुर्योधन ने एक बार फिर उनसे स्पष्ट कहा कि उनको क्या करना है। उन्होंने निश्चित ही कृष्ण को पाश में बांध लेने का वचन दिया और कोई चूक न होने का भी दावा किया। इस पर सभी संतुष्ट हो गये। दुर्योधन ने उनसे यह भी कहा कि जब तक वे संकेत न करें, तब तक कुछ न किया जाए। इस पर वे दोनों सहमत हो गये।
दुर्योधन ने उनको सारी योजना गुप्त रखने का आदेश देकर और उनको कुछ धन देकर भेज दिया। उनको कहा गया कि कल राजसभा के समय तैयार रहें और एक किनारे पर बैठकर दुर्योधन के संकेत की प्रतीक्षा करें। उनको राजसभा के योग्य वस्त्रों में आने का भी आदेश दिया गया, ताकि किसी को सन्देह न हो।
पाश फेंकने में प्रवीण व्यक्तियों के जाने के बाद दुर्योधन की चिन्ता लगभग समाप्त हो गयी। उन सबने उस रात्रि देर तक आमोद-प्रमोद किया। फिर वे अगले दिन की राजसभा की प्रतीक्षा करते हुए निद्रा में निमग्न हो गये।
(जारी…)
— डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’
बहुत अच्छा जा रहा है भाई साहिब , दुर्योधन कर्ण दोह्सासन और शकुनी मामा की सोच को देख कर आगे पड़ने की उत्सुकता बड्ती जा रही है .
आभार भाई साहब. यह छोटा सा उपन्यास अब रोचकता की चरमसीमा तक पहुँच रहा है. अभी पढ़ते जाइये.
बहुत बढ़िया भैया …..किताब भी छपवाई होगी आपने अपने इस उपन्यास की
धन्यवाद, बहिन जी. अभी यह उपन्यास लिखा ही जा रहा है. दो दिन में एक कड़ी लिखता हूँ और वेबसाइट पर डाल देता हूँ. जब पूरा हो जायेगा तो छपवाने की बात भी सोची जाएगी. आपको अच्छा लग रहा है, यह मेरा सौभाग्य है.
🙂