सामाजिक

‘लव जेहाद’ क्या है? 


‘लव’ का सामान्य अर्थ ‘प्रेम’ तो सभी समझते हैं, पर’प्रेम’ शब्द बड़ा व्यापक है। प्रेम के बल पर ईश्वर को भी विवश कर देने उदाहरणों से हमारे धार्मिक आख्यान भरे पड़े हैं। ‘लव’ शब्द से इस स्तर केप्रेम का बोध नहीं होता; ‘लव’ शब्द सामान्य अर्थों में दो विपरीत लिंगीमनुष्यों के बीच शारीरिक आकर्षण आरम्भ होने वाले रासायनिक क्रिया-कलाप मात्रका द्योतक है।

”जेहाद’ शब्द का सामान्य अर्थ है- दार उल हरब को दार उल इस्लाममें बदलने के लिए लगातार चलने वाला संघर्ष। यह संघर्ष युद्ध का रूप भी ले सकता है, और बौद्धिक छल-कपट का भी। यदि किसी कार्य से इस्लाम के विस्तार में सहायता मिलती हो, तो वह कार्य जेहाद की श्रेणी में आता है। इस प्रकार ‘लव जेहाद’ का अर्थ निकला- इस्लाम के विस्तार के लिए प्रेम संबंधों का प्रयोग।

इस्लाम के विस्तार में तलवार के बाद दूसरा बड़ा कारण इस्लाम में प्रेम-संबंधों की अपेक्षाकृत आसान स्वीकार्यता है। देश में हिन्दुओं और मुस्लिमों के लिए अलग नागरिक आचार संहिताएं होने के कारण कई बार हिन्दुओं के बीच स्थापित होने वाले प्रेम-सम्बन्ध भी इस्लाम में जाकर समाप्त होते देखे गए हैं। मेरे एक पुराने मित्र विवाहित होने के बाद एक महिला के साथ प्रेम कर बैठे, और एक दिन जब वह उस महिला के साथ आपत्तिजनक अवस्था में रंगे हाथों पकड़े गये, तो उन्हें उस महिला के साथ शादी करनी पड़ी। अगर वह हिन्दू बने रहते, तो उन्हें सरकारी नौकरी से हाथ धोना पड़ता, अतः उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया, और न जाने कितने मुसलमानों को दुनिया में लाने में अपनी भूमिका निभाई। इस मामले में ‘लव’ देश में सबके लिए एक आचार संहिता न होने के कारण जेहाद में बदल गया।

हिन्दू और मुसलमान के बीच स्वेच्छा से बने प्रेम-सम्बन्ध तो जेहाद में ही जाकर समाप्त होते हैं; मुस्लिम लड़के के साथ शादी करने वाली लड़की को तो अपना धर्म त्याग कर मुसलमान बनना ही पड़ता है, मुस्लिम लड़कियों को अपने हिन्दू प्रेमियों के साथ शादी की इजाज़त तभी मिलती है, जब वह लड़कों को इस्लाम धर्म में खींच लाने में सफल हो जाएं। मुसलमानों के लिए अपना धर्म छोड़ कर दूसरा धर्म अपना लेने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है, अतः अन्य धर्मों के प्राणियों के साथ स्थापित प्रेम-सम्बन्ध हमेशा ही जेहाद में ही सहायक होते हैं।

धर्मनिरपेक्ष मित्रों से अनुरोध है कि इस तर्क की काट के लिए कृपया कुछ अति विशिष्ट जोड़ों के उदाहरण न दें- वे सब अपवाद हैं। राजाओं और सामंत वर्ग के लोगों पर वैसे भी सामान्य सामाजिक नियम लागू नहीं होते, और इनमें से कई लोग जनसाधारण को दिखाने के लिए एक ज़िन्दगी जीते हैं, और परदे के पीछे दूसरी- जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते।आजकल यह देखा जा रहा है कि हिन्दू लड़कियों के मुस्लिम लड़कों की ओर आकर्षित होने की घटनाएं कुछ ज़्यादा ही हो रही हैं, यहाँ तक कि केरल उच्चन्यायालय को उनका संज्ञान लेना पड़ा है। ऐसी घटनाओं के कई कारण हो सकते हैं।

आजकल के सामाजिक वातावरण में लडकियाँ मानसिक रूप से परिपक्व होने से पहले अपनी शारीरिक विशिष्टताओं और आवश्यकताओं से अवगत हो जाने के कारण अल्पायु में ही एक ऐसे साथी की खोज शुरू कर देती हैं जो उनकी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ छिछोरों से उनकी रक्षा में भी समर्थ हो। सामान्य हिन्दू लड़के दब्बू किस्म के होते हैं, जो लड़कियों पर अपनी भावनाओं को प्रकट करने में बहुत घबराते हैं;वहीं मुसलमान लड़के साहसी और दबंग किस्म के होते हैं जिनसे हिन्दू लड़के सहमते रहते हैं। इस प्रकार के वातावरण में मुसलमान आसानी से सीधी-सादी हिन्दू लड़कियों के हृदय-प्रदेश पर कब्ज़ा करने में सफल हो जाते हैं।

कुछ दिन पहले एक ब्लॉगिंग साइट पर एक मुस्लिम विद्वान ने गर्व के साथ घोषणा की थी कि स्कूलों-कालेजों में पढ़ने वाली अधिकांश लड़कियाँ मुसलमानों को अपना ‘मित्र’ इसलिए बना रही हैं क्योंकि हिन्दू लड़के नामर्द होते हैं। अगर इन विद्वान की बात सच हो, और मुसलमान ईमानदारी से हिन्दू लड़कों के साथ प्रतियोगिता कर के हिन्दू लड़कियों के ह्रदय-क्षेत्र पर अधिकार कर रहे हों, तब तो इस तरह के मामलों की जेहादी परिणति के बाद भी इन पर आपत्ति का कोई कारण नहीं है, पर यदि यह सब कुछ एक सोची-समझी जेहादी रणनीति के अंतर्गत हो रहा हो, तो बात गंभीर हो जाती है।

सवाल है कि क्या यह सबकुछ किसी रणनीति के तहत हो रहा है? इसी के साथ दो पूरक प्रश्न हैं कि क्या जेहाद के लिए इस तरह की तरकीबों को इस्लाम में वैधता प्राप्त है, और क्या इस तरकीब का भूतकाल में प्रयोग हुआ है? पहले पूरक प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए हमें बहुत मेहनत करने की ज़रुरत नहीं। ‘तक़िया’- जिसका अर्थ है अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धोखा देने की वृत्ति को अपनाना इस्लाम में पूर्णतया वैध है, और भोली-भाली हिन्दू लड़कियों को धोखा देकर लव-जाल में फँसाने और जेहाद के लिए उनके उपयोग में कोई सैद्धांतिक अड़चन नहीं है।

अब रहा सवाल कि क्या ‘लव-जेहाद’ का प्रयोग भारत में पहले कभी हुआ है! पिछली सदी के प्रसिद्ध चिंतक एवं उपन्यासकार स्वर्गीय गुरुदत्त ने अपने उपन्यास ‘देश की हत्या’ मेंकलकत्ते के एक पीर साहब का ज़िक्र किया है, जिनके मस्जिद-परिसर में हिन्दू लड़कियाँ अगवा कर के लाई जाती थीं, और बाद में उन्हें किसी मुसलमान की दूसरी-तीसरी बीवी बनने के लिए मजबूर किया जाता था। यह तो मानना पड़ेगा कि किसी ऐसी इतिहास की पुस्तक में, जिसे सरकारी मान्यता प्राप्त हो, ऐसी किसी घटना का उल्लेख नहीं है, पर इतिहास के साथ हमारे धर्मनिरपेक्ष विद्वानों ने जिस तरह का खेल किया है, उसे देखते हुए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।

गुरुदत्त के उपन्यास इतिहास के सही प्रकटीकरण के लिए जाने जाते हैं, जिनमें काल्पनिक पात्र और औपन्यासिकता भी केवल इतिहास के सही कथन के लिए ही होती थी। उनसे यह उम्मीद करना कि वह यूँ ही किसी घटना का ऐतिहासिक सन्दर्भों में उल्लेख कर देंगे उनके साथ ज़्यादती होगी। इस तरह की घटनाएं पहले हो रही थीं, जिनका उल्लेख हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने अपने पंथ के प्रचार के लिए इतिहास से गायब कर दिया है, परन्तु इन इतिहासकारों का वश केवल एन सी ई आर टी जैसी सरकारी संस्थाओं और यू जी सी की कृपा से चलने वाले विश्वविद्यालयों पर ही चलता है, मदरसों में पढ़ाये जाने वाले इतिहास पर नहीं। वहाँ अभी भी अपेक्षाकृत सही इतिहास पढ़ाया जाता है। मदरसों में पढ़ने वाले यह अच्छी तरह जानते हैं कि भूतकाल में उनके आचार्य ‘लव जेहाद’ का इस्तेमाल किया करते थे, और इसीलिये वह इस कला को अभी तक जीवित रखे हुए हैं।

गुरुदत्त ने अपने उपन्यास में भी कुछ हिन्दू संगठनों का उल्लेख किया है,जो पीर साहब के कारनामों से परिचित थे, और यथासंभव हिन्दू लड़कियों को उनके चंगुल से बचाने के प्रयास किया करते थे; अभी भी यदि यह सिरफिरे संगठन न होते, तो लव जेहाद निर्बाध गति से चलता रहता।राजनैतिक दल होने की मजबूरियों के चलते भाजपा औपचारिक रूप से तो इस मामले में कुछ नहीं कर सकती, पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न घटक संगठनों को इस मामले को गंभीरता से लेना ही चाहिए।

One thought on “‘लव जेहाद’ क्या है? 

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. लव जिहाद हिन्दू धर्म के प्रति गहरा षड्यंत्र है.

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