कविता

स्टैच्यू बोल दे (10 क्षणिकाएँ)

1.
जी चाहता है

उन पलों को
तू स्टैच्यू बोल दे
जिन पलों में
‘वो’ साथ हो
और फिर भूल जा… !
2.
एक मुट्ठी ही सही
तू उसके मन में
चाहत भर दे
लाइफ भर का
मेरा काम
चल जाएगा… !
3.
भरोसे की पोटली में
ज़रा-सा भ्रम भी बाँध दे
सत्य असह्य हो तो
भ्रम मुझे बैलेंस करेगा… !
4.
उसके लम्स के क़तरे
तू अपनी उस तिजोरी में रख दे
जिसमें चाभी नहीं
नंबर लॉक हो
मेरी तरह ‘वो’ तुझसे
जबरन न कर सकेगा… !
5.
अंतरिक्ष में
एक सेटलाईट टाँग दे
जो सिर्फ मेरी निगहबानी करे
जब फुर्सत हो तुझे
रिवाइंड कर
और मेरा हाल जान ले… !
6.
क़यामत का दिन
तूने मुकरर्र तो किया होगा
इस साल के कैलेण्डर में
घोषित कर दे
ताकि उससे पहले
अपने सातों जन्म जी लूँ… !
7.
अपना थोड़ा वक्त
तेरे बैंक के सेविंग्स अकाउंट में
जमा कर दिया है
न अपना भरोसा
न दुनिया का
अंतिम दिन
कुछ वक्त
जो सिर्फ मेरा… !
8.
मैं सागर हूँ
मुझमें लहरें, तूफ़ान, खामोशी, गहराई है
इस दुनिया में भेजने से पहले
प्रबंधन का कोर्स
मुझे करा दिया होता… !
9.
मेरे कहे को
सच न मान
रोज़ ‘बाय’ कर लौटना होता है
और
उसने कहा –
जाकर के आते हैं
कभी न लौटा… !
10.
बहुत कन्फ्यूज़ हूँ
एक प्रश्न का उत्तर दे –
मुझे धरती क्यों बनाया?
जबकि मन
इंसानी… !
*************************

 

One thought on “स्टैच्यू बोल दे (10 क्षणिकाएँ)

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी क्षणिकाएं, डॉ साहिबा. सच कहूँ तो मुझे हाइकु से ज्यादा अच्छी क्षणिकाएं लगती हैं, क्योंकि इनमें अक्षरों का कोई बंधन नहीं होता.

Comments are closed.