युवाओं के लिए विज्ञान लेखन में कैरियर
राजधानी लखनऊ में अलीगंज स्थित आंचलिक विज्ञान नगरी में विगत 22 से 26 अगस्त तक विज्ञान एवं प्रौद्योंगिकी परिषद के तत्वावधान में पांच दिवसीय विज्ञान लेखन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया था। यह कार्यशाला विज्ञान लेखन में रूचि रखने वाले लेखकों पत्रकारों तथा विज्ञान वर्ग से सम्बंधित छात्रों के लिए आयोजित की गयी थी। इस कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य था वैज्ञानिकों एवं वरिष्ठ पत्रकारों का समन्वय करके प्रतिभागियों में विज्ञान लेखन के प्रति उत्सुकता उत्पन्न करना तथा विज्ञान जागरुकता को बढ़ावा देना । जिसमें यह कार्यशाला कुछ हद तक काफी सफल भी रही है। इस कार्यशाला में भाग लेने के बाद यह अनुभूत हो गयी की कि विज्ञान एक इतना बड़ा व प्रमुख विषय है तथा उसमें वैज्ञानिक इतना अधिक काम कर रहे हैं कि उनका शोधकार्य आम जनता की भाषा में जनता के समक्ष आही नहीं पा रहा है।
विज्ञान एक ऐसा विषय है जो केवल लैब तक ही सीमित होकर रह गया है अब उसे आवश्यकता है आसान भाषा में प्रचार प्रसार की। अभी यह काम केवल विज्ञान प्रसार संस्थाओं तक ही सीमित होकर रह गया है। जबकि यही समय है कि विज्ञान ष्शोधों व खोजों को तथा वैज्ञानिकोें के शोधपत्रों को आम जनता तक पहुंचाया जाये ताकि वे इसके माध्यम से अपने जीवन को खुशहाल बना सकें। कार्यशाला से पता चला कि विज्ञान पत्रकारिता में नवोदित पत्रकारों के लिए एक बेहद चुनौतीपूर्ण व आकर्षक कैरियर बन सकता है। विज्ञान सुखी व सफल जीवन के लिए बेहद जरूरी है। यह आम आदमी के लिए बेहद अनिवार्य है। विज्ञान के अन्तर्गत जलवायु परिवर्तन , प्राकृतिक आपदाओं, अंतरिक्ष,रक्षा से जुड़ें हर क्षेत्र की रिर्पोटिंग व लेखन करके कैरियर बनाया जा सकता है। विज्ञान अब केवल गणित, भैातिकी,रसायन तक ही सीमित होकर नहीं रह गया है। विज्ञान में अधुनातन तकनीकों का भी समावेश हो गया है।
यह विज्ञान और नयी तकनीक का ही कमाल है कि आज के युग में इंटरनेट क्रांति हो रही है। हर रोज एक से बढ़कर एक मोबाइल फोन गैजेट बाजारों में छा रहे हैं। विज्ञान पत्रकारिता के अंतर्गत स्वास्थ्य भी आता है और कृषि भी। आज वैज्ञानिकों ने कृषि के क्षेत्र में काफी खोजें की हैं तथा नयी तकनीकें विकसित की हैं लेकिन विज्ञान प्रसार में कमी के चलते इन तकनीकों का प्रचार- प्रसार नहीं हो पा रहा है। आज जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों के लिए नई तकनीक की आवश्यकता आ पड़ी है ताकि वे कम पानी खर्च करके अधिक से अधिक सस्ती फसलों की खेती कर सकेे।
कार्यशाला में यह बात सामने आयी कि आज विज्ञान लेखकों व पत्रकारों की बेहद आवश्यकता है विशेषकर हिंदी में क्योंकि कला, साहित्य, फिलाॅसिपी तथा धर्म की भांति विज्ञान भी मानव संस्कृति का एक सुुंदर रूप है। विज्ञान प्रचार व प्रसार के लिए ऐसे लेखकों की हरदम आवश्यकता रहती है जो विज्ञान को रूचिकर बनाकर पेशकर सकें। विज्ञान लेखन में कैरियर बनाने के लिए पत्रकारों की कलम में व उनके शब्दों में पर्याप्त ताकत व क्षमता होनी चाहिये। विज्ञान लेखन करने वाले लेखक व पत्रकारों में ष्शब्दकला व शब्दों के चयन की अपार क्षमता होनी चाहिये ताकि वह रूचिकर व जनप्रिय हो सके यहां तक कि वह विषय आसानी से समझ में आना जाये ऐसा लेखन करना चाहिये।
विज्ञान प्रसार नई दिल्ली से आये निमिष कपूर ने विज्ञान के प्रसार की महत्ता पर विशेष बल देते हुए बतायाकि परमाणु ऊर्जा आज एक ऐसा गंभीर विषय है जिसको लेकर हमारे समाज में तमाम प्रकार के भय झूठ व निराधार आशंकाएं व्याप्त हैं जिसका सहारा लेकर विदेशी एजेंसियां एंजिओ आदि के माध्यम से परमाणु संस्थानों के निर्माण व विकास के खिलाफ स्थानीय जनता को भड़काती हैं जबकि वास्तविक सच्च्चाई यह है कि भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनने की ताकत रखता है। निमिष कपूर ने कुडनकुलम परियोजना का उदाहरण भी पेश किया कि किस प्रकार से विदेशी संगठनों ने स्थानीय जनता को भारत सरकार के खिलाफ गुमराह किया। इसी प्रकार उन्होनें जीएम बीजों का उदाहरण देते हुए कहा कि हम विदेशी जीएम बीजों का इस्तेमाल तो पूरी तरह से रोक सकते हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर किसानों को स्वदेशी जीएम बीजों की जानकारी देकर उन्हें लाभान्वित भी किया जा सकता है। उन्होनें बताया कि यह बडे़ं ही दुख व दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के इतने सालों के बाद भी विज्ञान का प्रसार उतनी क्षमता व ताकत से हम नहीं कर सके हैं जितना की होना चाहिये था। विज्ञान प्रसार करने वाले लेखकों व पत्रकारों को देश व विदेश में घट रही सभी प्रकार की वैज्ञानिक घटनाओं, खोजों, शोधों, समाचारों आदि पर विशेष ध्यान रखना चाहिये।सभी वैज्ञानिक घटनाओं आदि का डाटाबैंक तैयार करना चाहिये।
विज्ञान लेखन के दौरान लेखक को अन्य विषयों की भांति पूरी तरह से सत्य बातों का ही उल्लेख व प्रकाशन प्रसारण करवाना चाहिए। विज्ञान एक ऐसा विषय हैं जिसमें यदि कोई भी बात गलत प्रकाशित- प्रसारित हो गयी तो समाज में विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और कैरियर पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा हो सकता है। विज्ञान लेखक को विषय की गहन जानकारी होनी चाहिये। विज्ञान लेखक को बिना शोधपत्र पढ़ें और बिना वैज्ञानिक से पूछे कुछ नहीं लिखना चाहिये। कार्यशाला में यह बात भी सामने आयी की कि ”क्लाइमेट और हिस्ट्री“ भी एक बेहद रोचक विषय है। इस पर काफी मंथन और लेखन की आवश्कयता है। कारण यह है कि क्लाइमेट और मानव जीवन में बहुत गहरा सम्बंध है। आज जिस प्रकार से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उससे होने वाले प्रभावों की जानकारी आम जनता व किसानों तक पहुचें यह अतिआवश्यक हो गया है। आज ग्लोबल वार्मिंग पर तो खूब लिखा जा रहा है लेकिन ग्लोबल कूलिंग भी एक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। आज जिस प्रकार की गर्मी पड़ रही हैं वह पहले भी पड़ चुकी है। इसके विषय में भी विज्ञान लेखक जानकारी दे सकते हैं। विज्ञान प्रसार के माध्यम से देश की जनता की सोच वैज्ञानिक बनाने की आवश्कता है ताकि उसका जीवन खुशहाल और विकासपरक हो सके।
विज्ञान प्रसार का काम रेडियो आदि के माध्यम से हो तो रहा है लेकिन वह बहुत कम मात्रा मेें हो रहा है। आज देश में टी वी चैनलों की भरमार है लेकिन स्वदेशी विज्ञान टी वी चैनल अभी भी नहीं हैं। विज्ञान पर आधारित कोई विज्ञान एजेंसी नहीं हैं जो केवल विज्ञान सम्बंधी खबरों व उपलब्धियों को जनहित में प्रचारित कर सकें। आज देश का युवा वैज्ञानिक व पत्रकार यदि विज्ञान के क्षेत्र मेें कुछ करना चाहता है तो उसके पास स्पेस काफी कम है। आज के समय में विज्ञान वेबसाइट बनाकर, ब्लागिंग व सोशल मीडिया के सहयोग से अपनी मातृभाषा हिंदी में विज्ञान का प्रचार- प्रसार किया जा सकता है। वैसे भी सूचना क्रांति के युग में इंटरनेट पर तमाम जानकारियां उपलब्ध हैं । विज्ञान लेख भी सम – सामयिक आसान भाषा में होने चाहिये। शीर्षक व इंट्रों में समानता व रूचि होनी चाहिये। विज्ञान लेखक व पत्रकार की निगाहें काफी पैनी होनी चाहिये।
विज्ञान लेखक एक अच्छा कार्टूनिस्ट व कवि आदि बनकर भी विज्ञान का प्रचार- प्रसार कर सकता है। कार्टूनों के माध्यम से हम अपनी बातों को बच्चों, महिलाओं , किसानों व गरीब ग्रामीणों तक अच्छे से पहुॅचा सकते हैें। विज्ञान पत्रकारिता एक लीक पर चल कर नहीं की जा सकती। विज्ञान के लिए एक बात कही गयी है कि बुद्धिमानी धरातल का विज्ञान है जबकि मनमानी का धरातल अज्ञान है। आज यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के इतने साल बीत जाने केबाद भी हमारे देश में आई आई टी, आई आई एम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों की इसके लिए हमे विज्ञान आधारित कैंपेन चलाने की महती आवश्यकता है। साथ ही पर्यावरण आदि की ज्वलंत समस्याओं पर विज्ञान लेखक पत्रकार काफी काम कर सकते हैं तथा एक अच्छा कैरियर निर्माण कर सकते हैं।
जरूरी एक विज्ञान लेखक व पत्रकार केवल लेख व फीचर आदि ही बनाये अपितु वह अपनी बातों को जनताके सामने रखने के लिए हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं कविता,लोककथा, लघुकथा,व्यंग्य,नाटक,एकांकी आदि का भी सहारा ले सकता है। बच्चों व समाज के अन्य सभी साधाराण वर्ग के लिए कविता एक ऐसा सशक्त माध्यम हैं जिनसे विज्ञान का प्रचार- प्रसार किया जा सकता है। कहा जाता है कि हिंदी में पहली विज्ञान कविता सूरदास जी ने लिखी। आम कविता और विज्ञान कविता में अंतर होता है। विज्ञान कविता का मानवीकरण किया जाता है। कविता में प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाता है। कविता गीत, गजल, मुक्तक, सवैया, सोरठा, चौपाई, दोहा, कुण्डलियां आदि रूपों में लिखी जा सकती हैं। स्लोगन लेखन आदि के माध्यम से भी विज्ञान का प्रसार किया जा सकता है। विज्ञान लेखकों व पत्रकारों प्रकृतिक आपदाआंे बाढ़,सूखा, भूकम्प, भूस्खलन आदि पर रिपोर्टिंग व लेखन तो खूब कर सकते हैं लेकिन साथ ही उन्हें घटना से सम्बंधित तथ्यों व मानवीय संवेदनाओं पर ध्यान देना चाहिये। दर्दनाक घटनाओं व दृश्यों के छायांकन व रिर्पोटिंग के दौरान सावधानी बरतनी चाहिये।
प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी आज युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण पर बल दे रहे हैं। विज्ञान पत्रकारिता व लेखन उसी प्रकार एक महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिसमें आज का युवा अपनी योग्यता व क्षमता के अनुरूप कैरियर बना सकता है।
दीक्षित जी लेख बहुत बढिया है , विज्ञान ही उन्ती का एक रास्ता है .
बहुत अच्छी जानकारी, दीक्षित जी. विज्ञान लेखन एक रोमांचक और चुनौतीपूर्ण कार्य है.