भूख
श्वेता जो की अमीर बाप की बेटी है जिसने घर में किसी चीज़ की कभी कोई कमी नहीं देखी ! उसका जन्मदिन था और उसने अपने सभी फ्रेंड्स को पार्टी के लिए घर पर बुलाया और घर की बावर्चिन को खाने का मेनू पकड़ाते हुए कहा की आज ये सब खाने में बनना चाहिए और खाना बहुत ही स्वादिष्ट होना चाहिए किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं होनी चाहिए मेरे सब फ्रेंड्स आ रहे हैं तो कोई तमाशा नहीं होना चाहिए !
कमला (बावर्चिन का नाम ) श्वेता के स्वभाव से परिचित थी की श्वेता तो हर बात में नुक्स निकालती है उसको खुश करना टेढ़ी खीर है लेकिन अब जब उसने आर्डर दे ही दिया है तो कमला को तो सब तैयारी करनी ही थी ! कमला ने जी तोड़ मेहनत करके खाना तैयार किया ! शाम हो चुकी थी कमला की धड़कने बढ़ रही थी पता नहीं मेमसाहब को खाना पसंद आयेगा भी या नहीं या फिर आज मेरा नौकरी का अंतिम दिन होगा ! अगर ऐसा हुआ कि मुझे नौकरी छोड़ कर जाना पड़ा तो मेरा और मेरे बच्चों का गुजारा कैसे होगा ! मुश्किल से ये नौकरी करके कमला अपना और अपने तीन बच्चों का पेट पाल रही थी !
पार्टी शुरू हो गयी ! कमला भी अपने बच्चों को साथ लायी थी लेकिन उसकी हिम्मत नहीं थी कि उनको अन्दर आने को कहती इसीलिए उसने उनको घर के पिछवाड़े के आँगन में बैठा दिया ! केक काटने के बाद खाना लगाने को कहा … कमला ने डरते हुए खाना लगाया ! श्वेता ने पहला ही कौर मुह में लिया और थूक दिया ये क्या वाहियात खाना बनाया है …. इसमें नमक है ही नहीं और मिर्ची इतनी की मुंह में छले पड़ जाये ! हटाओ इस बकवास खाने को और ऐसा कहकर श्वेता ने प्लेट फेंक दी ! श्वेता की मम्मी ने कमला को डांटते हुए कहा की बेबी का मूड ख़राब कर दिया आज उसका जन्मदिन है !
बेबी यानि श्वेता जो की बीस साल की हो गयी थी आज ! गुस्से में अपने फ्रेंड्स को लेकर चल पड़ी की चलो कहीं अच्छी जगह जाकर खाना खायेंगे ! जाते जाते श्वेता आर्डर दे गयी की इस खाने को फेंक देना ! कमला ने खाना चखा लेकिन खाना तो बहुत अच्छा बना था पर कमला पलटकर जवाब थोडा दे सकती थी ! उसने खाना उठाया और बांधकर चल पड़ी बच्चों को लेकर बस्ती की तरफ उदास मन से की जिसको खाने की भूख ही न हो उसको खाने का स्वाद कैसे पता चलेगा ! उसने खाना अपनी बस्ती के सारे बच्चों में बांटा ! सारे बच्चे खाने को देखकर टूट पड़े क्यूंकि उनको ऐसे लज़ीज़ पकवान कभी नसीब कहाँ हुए थे वो तो आज श्वेता के ज्यादा नखरे के कारन मिल गया ! सब बच्चे खाना खाकर इतना खुश थे अब कमला भी थोड़ी अपने को हल्का महसूस कर रही थी की चलो किसी का तो पेट भरा !
दोस्तों ये बात सही है कि जब भूख ही न हो तो खाना कैसा भी हो बेस्वाद ही लगेगा और भूख में तो कुछ भी हो खाने को वो बहुत स्वाद लगेगा ! भूख भूख होती है गरीब या अमीर की नहीं होती ! अमीर लोग अपने पैसे के बल पर खाना वेस्ट करते हैं ! जब भूख की मार पड़ती है तो इंसान कुछ भी खाने को मजबूर हो जाता है ! ये भूख ही है जो इंसान को इंसान का दुश्मन बना बैठी है ! ये भूख ही है जो सरेआम लड़कियों के साथ दुष्कर्म हो जाते हैं ! ये भूख ही जिसके लिए लोगो ने अपना ईमान तक बेच दिया है ! ये भूख ही है जिसके लिए इंसान इतना निचे गिर जाते हैं ! भूख का कोई चेहरा नहीं होता कोई रूप नहीं होता ! भूख अमीर गरीब को नहीं पहचानती !
बहुत अच्छी भाव पूर्ण कहानी
परवीन जी , कहानी अच्छी लगी . स्वादिष्ट से स्वादिष्ट खाना खा कर भी कुछ लोग तृप्त नहीं हो पाते और खाने को ही नफरत करने लगते हैं . जब मजबूरी हो जाए तो यही लोग सूखे रोटी के टुकड़ों को भी परसाद समझ कर खाने को मजबूर हो जाते हैं . मुझे याद है पुराने बजुर्ग रास्ते में पड़े दाने उन्ग्लिओं से उठा लेते थे और कहते थे अन्न तो देवता है , इस को पैरों में फैंकने वाला गुनाहगार है .
जिन्होंने कभी स्वयं भूख का अनुभव नहीं किया, वे गरीब की पीड़ा नहीं जान सकते. बहुत अच्छी कहानी.