कविता : सुशासन आएगा
गुस्सा तो मेरे अन्दर बहुत है मगर मैं चुप रहता हूँ
६७ वर्षों में जो दर्द मिले उनको घुट घुट कर सहता हूँ
आजाद कश्मीर से गुलाम कश्मीर के हम वासी हो गए
भ्रष्टाचार और आतंकवाद में पल-पलकर उसके आदी हो गए
लग हमारी माँ को गरीब क्यों बताते हैं
लाखों करोड़ में तुम्हारे स्विस बैंकों में खाते हैं
बताओ हमारे देश को किसने कमजोर किया
गरीब बच्चों के राशन व पशु-चारे तक को बेच दिया
देश की रक्षा के सौदों में तुम दलाली करते हो
खुनी अपराधी होकर भी भारत के मंदिर में बसते हो
कोयले कि दलाली करने वाले सफ़ेद पाशों पर तुम छलते हो
तुमसे अब हम कैसे बचेंगे क्या हमको राम ही बचाएगा
क्या सचमुच ही प्रलय होकर धरती पर सुशासन आएगा
गुस्सा तो मेरे अन्दर बहुत है मगर मैं चुप रहता हूँ
६७ वर्षों में जो दर्द मिले उनको घुट घुट कर सहता हूँ
तुम्हारा कोई विरोध करे तो आधी रात में लाठी गोली चलवा सकते हो
अन्ना जैसे साधू को बेईमान ठहरा सकते हो
ईमानदार अफसर सड़कों पे मारे जाते हैं
या परेशान होकर खुद फांसी चढ़ जाते हैं
२८ रुपयों में हम गुजारा करें यह बात हमें समझाते हो
और हजारों करोड़ रुपयों में अपनी मूर्तियाँ लगवाते हो
हम लड़-लड़कर जी रहे हैं पर कुछ लड़-लड़कर भी मरते हैं
मंहगाई की इस त्रासदी से हम सपने में भी डरते हैं
अब कौन परिवर्तन की चिनगारी लगा कर क्रांति की लौ जलाएगा
या जलियाँ वाला काण्ड ही फिर से दोहराया जायेगा?
नए तंत्र में कोई परिवर्तन होगा ऐसी सबको आशा है
महगाई भ्रष्टाचार आतंकवाद से जनता में घोर निराशा है
अब शायद हम बदलेंगे, क्या नया तंत्र हमको बचाएगा
नहीं तो सचमुच ही प्रलय होकर धरती पर सुशासन आएगा
अशोक भाई , सच को साफ़ शब्दों में बिआं किया है . जब से होश संभाला है रिश्वतखोरी बेईमानी घुटाले ही सुनता आया हूँ . बहुत अच्छी कविता .
बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब ! जो मैं महसूस करता हूँ, लिख देता हूँ.
एक और अच्छी कविता, अशोक भाई साहब. आपकी कविताओं में जनता की भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व होता है.
धन्यवाद, विजय जी.