गीतिका
जब पवित्र जल में हलाहल विष घुल जाता है
तब तब पवित्र जल भी पूर्ण जहर बन जाता है
दुर्जनों का कुसंग जीवन में जब जब है आया
सुसंस्कारित सज्जन भी तब दुर्जन बन जाता है
शंका संदेह का शूल चुभता है जब मनुज मन
ह्रदय में कुभावो का आवेश घर कर जाता है
उलझा हुआ अशांत मन सुनता है कब किसकी
पूण्य फलो पर तब तिमिर कर्म रुक जाता है
भावो की धूसर आँधी में होती सदा शांति चंचल
सुचिता की शांति को मन तब त्याग जाता है
शान्ति पुरोहित
सुन्दर अभिव्यक्ति
अच्छी गीतिका, बहिन जी.