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नास्तिकता और आस्तिकता में मूल अंतर

जंहा तक मैं समझ पाया हूँ नास्तिक और आस्तिको में मुख्य भेद यह है की आस्तिक पांच महाभूतो – अग्नि, वायु,जल, प्रथ्वी और आकाश से संसार की उत्पत्ति मानते हैं ।

जबकि नास्तिक केवल चार महाभूतो को ही मानते हैं – अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी, वे आकाश को महाभूतो में नहीं मानते।
नास्तिक इन चार तत्वों के संयोग से चेतना का उद्भव मानते हैं , इन्ही चारो की रचना और पुनर्रचना के कारण चेतना उत्पन्न होती है और शारीर तथा इन्द्रियां बनती हैं।
मरने के बाद ये तत्व अपने अपने मूल में विलीन हो जाते हैं इनसे प्रथक और कोई पदार्थ नहीं।

जबकि आस्तिक आकाश को भी महाभूत मानते हैं ,मरने के बाद आत्मा आकाश में ही विलीन होती है क्यों की चारो तत्व अग्नि, प्रथ्वी, वायु,जल में विलीन होने के बाद आत्मा ही रह जाती है । परमात्मा की कल्पना भी आकश कंही स्थिति की गई है ।

नास्तिको द्वारा आकाश को तत्व न मानाने से सीधा सीधा आत्मा परमात्मा को नकार देना ही हुआ ।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

4 thoughts on “नास्तिकता और आस्तिकता में मूल अंतर

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    आपका आलेख पसंद आता है मुझे

  • विजय कुमार सिंघल

    केशव जी, आपकी बात सही हो सकती है, पर यह आपने स्पष्ट नहीं किया कि आकाश को पञ्च महाभूतों में क्यों नहीं गिना जाता? मेरे विचार से अन्य चार महाभूतों की अनुपस्थिति ही आकाश है. इसी को अवकाश, शून्य और निर्वात कहा जाता है. यह एक अनिवार्य तत्व है. कम्पुटर में १ के साथ ० का अस्तित्व अनिवार्य है, अन्यथा कोई काम नहीं होगा. प्राकृतिक चिकित्सा में आकाश तत्व को ‘उपवास’ के रूप में प्रयोग किया जाता है.
    वैसे आपका लेख अच्छा है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    केशव भाई , आप के सभी लेख धमाकेदार होते हैं . परमात्मा है या नहीं मैं कभी इन झगड़ों में नहीं पड़ा . मैं तो एक बात ही जानता हूँ कि मैंने इस संसार में जनम लिया और यहीं मरना है . मैं गुरदुआरे और मंदिर में भी जाता था लेकिन मेरे लिए यह सब धर्म मैंन मेड हैं . मेरे जैसे इंसानों ने ही यह धर्म पैदा किये . अपनी जिंदगी में ही नए धर्म बनते देखे और उन के झगडे भी देखे . मैंने यह भी देखा कि जिस जगह कुछ नहीं था , वहां कोई साधू आया , लोग आने लगे , फिर एक झंडा गाड दिया , फिर वोह साधू मर गिया और शर्धालुओं ने बड़ा सा गुरदुआरा बना दिया और धीरे धीरे उस गुरदुआरे का सम्बन्ध इतहास से भी जोड़ दिया . अब लोगों के पास पैसा बहुत हो गिया है और मंदिरों को सोने चांदी से भर दिया , उसी मंदिर के नजदीक गरीब भूखे मर रहे हैं . यह कैसी श्रदा है , किया भगवान् को अमीरों ने खरीद लिया है ? इसी लिए बिदेसी हमलावर पहले मंदिरों को लूटते थे और कोई देवता उन मंदिरों को बचा नहीं सका .

    • विजय कुमार सिंघल

      सही कहा भाई साहब आपने. आज कल धर्म के नाम पर जो हो रहा है उसका धर्म से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है. सब दिखावा और पाखंड है.

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