सामाजिक

विवाह समारोहों में बढ़ता दिखावापन

गोंदिया- वैश्विक स्तरपर भारत आदि अनादि काल से पौराणिक संस्कारों का गढ़ रहा है। परंतु कुछ दशकों से हम देख रहे हैं कि इस पौराणिक संस्कृत गढ़ को आधुनिकता के दंश ने विलुप्तता की ओर अग्रसर कर दिया है।आज दिनांक 1 मई 2024 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने भी अपने एक जजमेंट में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि हिंदू विवाहों को वैध बनाने के लिए उचित संस्कारों व रीतियों का निष्ठा पूर्वक पालन होना चाहिए। जजमेंट की चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। एक ज़माना था जब शादी समारोह में पारंपरिक रीतिरिवाज संस्कार धार्मिक अनुष्ठान इतने होते थे कि 10 घंटे तक पूरी धार्मिक प्रक्रिया चलती थी  मैंने खुद अपने बड़े भैया की 1983 में शादी में धार्मिक अनुष्ठान फेरे सब पारंपरिक रीति रिवाज अनुष्ठान की स्थितियां देखी थी जो अर्धरात्रि सुबह 4 बजे तक पूरे अनुष्ठान पूर्ण कर दूल्हा दुल्हन घर रवाना हुए थे, जो आजकल सैकड़ो हजारों में एक देखने को मिलेगा ऐसा मेरा मानना है  आज शादी से लेकर हर पवित्र खुशी का अनुष्ठान पूरा करने के लिए हर व्यक्तियों द्वारा अपने हिसाब से तारीख व समय निर्धारित किए जाते हैं, अगर मैंनें इस क्षेत्र के विशेषज्ञ को कुछ हरे पीले अधिक दे दिए तो मेरे मन माफिक तारीख व समय उस अनुष्ठान के लिए वह निकालकर देगा, ऐसी अब कहावत नहीं बल्कि सत्यता बन चुकी है। धार्मिक अनुष्ठान रीति रिवाज हरे पीले के आगे प्रोफेशनलिज्म होने की कगार पर है, यानी जितनें अधिक हरे पीले देंगे उतनी तीव्रता से अनुष्ठान पूरा हो जाएगा, जो कार्य या धार्मिक अनुष्ठान पवित्र पूजन उस दिन या उस समय में वर्जित हैं, उसका भी कोई ना कोई उपाय निकालकर संपन्न करवा दिया जाता है। जो समाज को रेखांकित करना होगा। आज शादी केवल नाम मात्र की ही होते जा रही है, शादी से अधिक महत्व दूसरे अनेक कार्यक्रमों गाना बजाना, ढोल बताशा, दारू मदिरा पार्टी इत्यादि पूर्ण कार्यक्रमों को दिया जा रहा है। शादी का बजट बड़े-बड़े लोगों का करोड़ों में तो माध्यम लोगों को लाखों में हो गया है। शादी समारोह में रीति रिवाज संस्कार धार्मिक अनुष्ठान घटते जा रहे हैं व दिखावापन स्टेटस स्मबॉल बढ़ते जा रहा है। मेहमानों दोस्तों यारों रिश्तेदारों का केवल समारोह में शामिल होने का प्रचलन बढ़ गया है पर पवित्र रीति रिवाज संस्कारों में केवल परिवार वाले भी  कभी-कभी शामिल नहीं होते, केवल माता-पिता दादा दादी वह कुछ धार्मिक प्रवृत्ति के लोग शामिल होते हैं जो अत्यंत ही खेदजनक है, जिसे समाज ने रेखांकित कर संज्ञान में लेकर सामाजिक कार्रवाई की ओर अग्रसर होने की जरूरत है। चूंकि आज भारतीय समाज में शादी रूपी एक पवित्र रिश्ता केवल नाचगाने खाने-पीने शराब दहेज तक सीमित प्रचलन में हो गया है जिसका उल्लेख आज माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी किया है, उसे रोकना जरूरी है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी केसहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,आओ शादी समारोह को पवित्र रीति रिवाजों संस्कारों धार्मिक अनुष्ठानों से पूरा करें,आधुनिकता के दंश से बचें।

साथियों बात अगर हम सनातन धर्म के 16 संस्कारों में पाणिग्रहण यानें शादी संस्कार की करें तो, सनातन धर्म में 16 संस्कारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।पाणिग्रहण संस्कार याने विवाह संस्कार को भी इन 16 संस्कारों में से एक माना जाता है। वैदिक संस्कृति में इन 16 संस्कारों के बगैर इंसान का जीवन सफल नहीं माना जाता। विवाह शब्द में ‘वि’ का मतलब विशेष से है और ‘वाह’ का अर्थ वहन करना है। यानी उत्तरदायित्व को विशेष रूप से वहन करना ही विवाह होता है। हिंदू शास्त्रों में इसे पति पत्नी का जन्म जन्मांतर का संबन्ध माना गया है। हिंदू धर्म में शादी का मतलब 7 जन्मों का साथ होता है। एक बार किसी के साथ 7 फेरे ले लिया तो उस रिश्ते को सात जन्मों तक निभाने का वादा करते हैं। विवाह हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में एक होता है। विवाह के दौरान पंडित कई सारी रस्में और मंत्र पढ़ते हैं। इन्ही रस्मों में लड़का और लड़की अग्नि को साक्षी मानकर 7 फेरे लेते हैं। इन 7 फेरों को करते समय पंडित 7 वचनों को संस्कृत भाषा में बोलते हैं। 

साथियों बात अगर हम दिनांक 1 मई 2024 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच द्वारा दिए एक जजमेंट की करें तो, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में पवित्र संस्था का दर्जा हासिल है। यह नाचने गाने का आयोजन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा, हिंदू विवाह को वैध बनाने के लिए इसे उचित संस्कारों व रीतियों के साथ किया जाना चाहिए। विवाह से जुड़ी रीतियों का निष्ठापूर्वक पालन होना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा, विवादों के मामले में रीतियों के पालन का प्रमाण पेश करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत हिंदू विवाह की कानूनी जरूरतों व पवित्रता को स्पष्ट किया। माननीय दो जस्टिस की पीठ ने कहा, पारंपरिक संस्कारों या सप्तपदी जैसी रीतियों के बिना की गई शादी को  हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा। दूसरे शब्दों में, अधिनियम के तहत वैध विवाह के लिए अपेक्षित रीतियों का पालन करना होगा। ऐसा न करने पर वह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार हिंदू विवाह नहीं होगा। कोर्ट ने कहा, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत शादी का पंजीकरण विवाह के सबूत की सुविधा देता है, पर यह तब तक उसे वैधता नहीं देता है, जब तक विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार संपन्न नहीं हुआ हो।पीठ ने कहा, यदि हिंदू विवाह रीति-रिवाज के अनुसार नहीं किया गया है, तो पंजीकरण नहीं हो सकता। वैध हिंदू विवाह के अभाव में पंजीकरणअधिकारी अधिनियम की धारा 8 के प्रावधानों के तहत ऐसी शादी को पंजीकृत नहीं कर सकता। शीर्ष कोर्ट ने कहा, युवा पुरुषों व महिलाओं से आग्रह है, वे विवाह करने से पहले गहराई से जानें कि भारतीय समाज में विवाह कितना पवित्र है। विवाह गीत व नृत्य या शराब पीने-खाने का आयोजन नहीं है। यह ऐसा अहम आयोजन है, जो एक पुरुष व एक महिला में संबंध स्थापित करने के लिए मनाया जाता है, जो पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं। शीर्ष कोर्ट ने एक महिला की ओर से उसके खिलाफ तलाक की कार्यवाही स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं। सुनवाई के दौरान, पति और पत्नी ने संयुक्त आवेदन कर यह घोषणा की कि उनकी शादी वैध नहीं थी। उन्होंने कहा, उनके द्वारा कोई विवाह नहीं किया गया, क्योंकि कोई रीति-रिवाज, संस्कार या अनुष्ठान नहीं किए गए। हालांकि, उन्हें एक जनकल्याण समिति (पंजीकृत) से प्रमाण पत्र लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। तथ्यों के बाद पीठ ने घोषित किया कि यह वैध विवाह नहीं था। कोर्ट ने दर्ज किए मुकदमों को भी रद्द कर दिया। 

साथियों बात अगर हम 1 मई 2024 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच द्वारा सुनाए ऐतिहासिक फैसले को 6 प्वाइंट्स में समझने की करें तो (1) हिंदू विवाह एक संस्कार और धार्मिक अनुष्ठान है जिसे भारतीय समाज में एक महान मूल्य की संस्था के रूप में अपना दर्जा दिया जाना चाहिए। इसलिए, हम युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह करते हैं कि वे विवाह की संस्था के बारे में गहराई से सोचें और यह भी कि भारतीय समाज में यह संस्था कितनी पवित्र है। (2) विवाह गाने और नाचने और खाने-पीने या दहेज और उपहारों की मांग करने और अनुचित दबाव के जरिए लेन-देन करने का अवसर नहीं है। विवाह कोई व्यावसायिक लेन-देन नहीं है. यह एक पवित्र आधारभूत समारोह है (3) सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों का भी जिक्र किया जहां जोड़ों ने अपनी शादी को व्यवहारिक कारणों की वजह से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत रजिस्टर कराया, जबकि असल में शादी संपन्न नहीं हुई थी। अदालत ने कहा कि इसके खिलाफ चेताया और कहा क‍ि सिर्फ रजिस्ट्रेशन से ही शादी वैध नहीं हो जाती। (4) अदालत ने विवाह संस्था को महत्वहीन न बनाने का आग्रह किया। (5) विवाहित जोड़े का दर्जा देने और व्यक्तिगत और स्थायी अधिकारों को स्वीकार करने के लिए विवाह के पंजीकरण के लिए एक तंत्र प्रदान करने के अलावा, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में संस्कारों और समारोहों को एक विशेष स्थान दिया गया है, इसका अर्थ है कि हिंदू विवाह केअनुष्ठान के लिए महत्वपूर्ण शर्तों का लगन, सख्ती और धार्मिक रूप से पालन किया जाना चाहिए। (6) हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 7 के तहत रीति-रिवाजों और समारोहों का ईमानदारी से संचालन और भागीदारी सभी विवाहित जोड़ों और समारोह कराने वाले पुजारियों द्वारा सुनिश्चित की जानी चाहिए।

— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया