कैसे मनाये शिक्षक दिवस?
कैसे मनाये शिक्षक दिवस?
कैसी विडंबना है जिस देश में ‘गुरु’ यानि शिक्षक को देवता तुल्य समझ के उसे पूजने की व्यवस्था की गई है , जिस गुरु के विषय में यह कहा गया है की वह ‘ गोविन्द’को भी मिला देता है उस देश में शिक्षा का स्तर यह है की 50% से अधिक लोग निरक्षर हैं ।
प्राचीन काल में शिक्षा की हालत यह थी की यंहा के देवता तुल्य शिक्षको ने देश के एक बड़े समूह को शिक्षा से ही वंचित कर रखा था । शिक्षको की निष्पक्षता देखिये की अपने उस भक्त शिष्य का अंगूठा ही कटवा लेते हैं जब उन्हें यह पता चलता है की अमुक शिष्य उनके उच्च जाती के शिष्य से अधिक योग्यता रखता है ।
कर्ण जैसे छोटी जात के वीर योद्धा को भी केवल जाती के आधार पर उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया जाता है।
जिन गुरुओ पर समाज के प्रति यह दायित्व सौंपा गया था की वे समाज के सभी वर्गों को समान समझ के सभी को शिक्षा देंगे उन्होंने ही मेहनत करने वाले समाज को हीन समझ के उसके शिक्षा पर रोक लगा दी , यही नहीं यंहा तक विधान बना दिया की यदि वह मेहनतकश वर्ग गलती से भी शिक्षा हासिल कर ले तो उसके कानो में पिघला सीसा डाल दिया जाए ।
बात सिर्फ प्राचीन काल तक ही सिमित नहीं रही है , आधुनिक काल में भी शिक्षक निष्पक्ष नहीं हो पाए । आज भी जाती देख कर बच्चो को शिक्षा दी जाती है , देश के गाँव देहात के विद्यालयों में ऐसी घटनाये सामने आती रही हैं की नीच जाती के समझे जाने वाले बच्चो को विद्यालय जाने पर पाबन्दी लगा दी जाती। यदि नीच जाती समझे जाने वाले बच्चे किसी तरह विद्यायल पहुच भी जाते हैं तो उन्हें शिक्षक जो की अधिकतर अब भी जातिवाद की मानसिकता से ग्रस्त हैं उन्हें पढ़ाते नहीं।
उन बच्चो के बैठने का स्थान अलग कर दिया जाता है , उन्हें तरह तरह प्रताड़ना देके उन्हें बीच में ही पढाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाता है। सरकार ने आर्थिक रूप से और सामजिक रूप से पिछड़े बच्चो के लिए वजीफे का प्रवधान किया हुआ है ताकि उन बच्चो को शिक्षा पाने में आर्थिक समस्या का सामना न करना पड़े पर भारत के ‘देवताओं ‘ यानि गुरुओं ने उसमे भी घपला करना शुरू कर दिया और बच्चो का वजीफा तक खाने लगे। सरकारी अध्यापक विद्यालयों में न पढ़ा के प्राइवेट कोचिंग करने लगे हैं,कैसे पढ़ेगा गरीब का बच्चा वंहा?
कई खबरे ऐसी आई हैं की अध्यापक छात्रों की जाती देख कर उन्हें परीक्षा में अंक देते हैं ।
इस तरह कैस देश का भविष्य सुधरेगा?
मोदी जी आज सभी विद्यालयों में शिक्षको और विद्यार्थियों को संबोधित करेंगे आशा है की वे इस समस्या पर भी ध्यान देंगे तभी सचमुच देश शिक्षक दिवस मना पायेगा वर्ना हर साल की तरह मात्र खानापूर्ति ही होगी।
केशव जी, आपके अधिकांश लेखों की तरह यह भी आक्रोश से भरा हुआ है. इसलिए इसको पढ़कर आश्चर्य नहीं हुआ. लेकिन आपकी बात में वजन है. शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जो दुर्भाग्य से आज तक नहीं किया गया. मोदी जी अवश्य करेंगे, हालाँकि कितना कर पाएंगे यह कहना कठिन है, क्योंकि शिक्षा आज भी मुख्यतः राज्यों का विषय है.
प्रतिभाशाली दलित बच्चे किस प्रकार अपना रास्ता बनाते हैं यह ‘युवा सघोष’ में धारावाहिक प्रकाशित हो रहे श्री मनोज मौन के लघु-उपन्यास ‘करवट’ में दिखाया गया है. आश्चर्य है कि उस पर आपकी एक भी टिप्पणी नहीं आई.