कविता : कुदरत की माया
अजब दिख रही है कुदरत की माया
भादो की काया पर सूखे की छाया
खेत प्यासे पड़े. सारे चिंतित किसान
पानी न मिलेगा तो कैसे उपजेगा धान
मौसम का रुख देख हर दिल घबराया
अजब दिख रही है कुदरत की माया…………
जब पहाड़ों पर बारिश हुई तो
नदियां उफनीं और खूब सनसनाईं
वे खुशी का सबब बन सकीं ना
बस तबाही की सौगात लाईं
मौसम का खेल कोई समझ न पाया
अजब दिख रही है कुदरत की माया……..
भादों की अष्टमी भी सूखी निकल गई
किशन कन्हैया अबकी सूखे में आया
इंद्रदेव ने रुखा रुख क्यों दिखाया
बस नंदलाला ही समझेगा अब उसकी माया
अजब दिख रही है कुदरत की माया…….
अच्छी कविता, उमेश जी.
उमेश भाई , कविता अच्छी है और सिक्के के दोनों हैड और टेल बता दिए .