कविता

कविता : कुदरत की माया

अजब दिख रही है कुदरत की माया
भादो की काया पर सूखे की छाया
खेत प्यासे पड़े. सारे चिंतित किसान
पानी न मिलेगा तो कैसे उपजेगा धान
मौसम का रुख देख हर दिल घबराया
अजब दिख रही है कुदरत की माया…………

जब पहाड़ों पर बारिश हुई तो
नदियां उफनीं और खूब सनसनाईं
वे खुशी का सबब बन सकीं ना
बस तबाही की सौगात लाईं
मौसम का खेल कोई समझ न पाया
अजब दिख रही है कुदरत की माया……..

भादों की अष्टमी भी सूखी निकल गई
किशन कन्हैया अबकी सूखे में आया
इंद्रदेव ने रुखा रुख क्यों दिखाया
बस नंदलाला ही समझेगा अब उसकी माया

अजब दिख रही है कुदरत की माया…….

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।

2 thoughts on “कविता : कुदरत की माया

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, उमेश जी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    उमेश भाई , कविता अच्छी है और सिक्के के दोनों हैड और टेल बता दिए .

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