प्रिय कितने रूप तुम्हारे हैं !!!
प्रेम , हर्ष , लज्जा , विरह , कभी नयना अश्रु धारे हैं
कभी तो सच भी बतला दो, प्रिय कितने रूप तुम्हारे है
कभी प्रिये तुम उन्मत होकर, …हृदय वेग धर देती हो
कभी प्रिये तुम मादक होकर, ..मदिरा मन भर देती हो
कभी प्रिये तुमने बन साधक जग के सब धर्म विचारे है
कभी तो सच भी बतला दो, प्रिय कितने रूप तुम्हारे है
कभी प्यार बनकर तुम,.. मेरा जन्म सफल कर देती हो
कभी दुत्कार मुझे तुम,… मेरा हृदय विकल कर देती हो
कभी सत्कार को तुमने मेरे, प्रिय लोक ही तीनों वारे है
कभी तो सच भी बतला दो, प्रिय कितने रूप तुम्हारे है
कभी मेरे मन उपवन में तुम चन्दन बन कर आ जाओ
कभी मेरे जीवन में तुम प्रिय कृन्दन बन कर छा जाओ
कभी क्षमा याचना में प्रिय,…. तुमनें आदर्श भी हारे है
कभी तो सच भी बतला दो, प्रिय कितने रूप तुम्हारे है
__________________अभिवृत |कर्णावती
बहुत अच्छी कविता भाई साहिब
बहुत अच्छी कविता.
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी.
जिसको भी देखना हो कई बार देखना.