मुझ लौह को भी कर दो कुन्दन
तुम अविनाशी ब्रह्म ज्ञान, मैं व्यथित हृदय का हूँ क्रन्दन
तुम पारस पाषाण प्रिये मुझ लौह को भी कर दो कुन्दन
तुम अकल अक्रोधन प्राप्य प्रिये, प्रियता हो जीवन की
मैं मात्र अकृतात्मन हूँ प्रियवर, मुझसे लज्जा प्रीणन की
तुम कामसखा मैं ठूंठ मात्र प्रिय मुझको भी कर दो नंदन
तुम पारस पाषाण प्रिये मुझ लौह को भी कर दो कुन्दन
तुम तथ्यपूर्ण हो सत्य प्रिये, मैं मात्र अकिंचन सा प्राणी
तुम कोकिलकंठा सरस्वती, प्रिय परिहासित मेरी वाणी
तुम पाणनीय शास्त्रार्थ प्रिये, मैं मूढ़ मगज हूँ अवचेतन
तुम पारस पाषाण प्रिये मुझ लौह को भी कर दो कुन्दन
तुम शाश्वत सत्य सनातन सी, मैं धर्मान्धों का हूँ दर्शन
तुम आत्मशांति परमेश्वर सी, मैं खलकामी मन का बंधन
तुम पूर्ण प्रतिष्ठित वेदों सी, …..मैं प्रतिस्रष्ट काम कल्पन
तुम पारस पाषाण प्रिये मुझ लौह को भी कर दो कुन्दन
अकल = सम्पूर्ण, अक्रोधन = कभी क्रोध न करने वाला , प्रियता = स्नेह, अकृतात्मन = निर्बुद्धि, प्रीणन = प्रसन्नता, कामसखा = वसन्त, अकिंचन = जिसके पास कुछ ना हो , परिहासित = उपहासात्मक, पाणनीय = पाणनी रचित व्याकरण , प्रतिस्रष्ट = तिरस्कृत
बहुत सुन्दर प्रेम कविता.