ग़ज़ल…
ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |
ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुस्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |
जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूं ही ज़िंदगी की शाम हो |
नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |
चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यू ही ज़िंदगी ये तमाम हो |
या रब तेरी दुनिया में क्या ऐसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ , ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |
है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा ‘श्याम’ हो ||
— डा० श्याम गुप्ता , के-३४८, आशियाना, लखनऊ
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल, डॉ साहब !
डाक्टर साहिब , बहुत अच्छी ग़ज़ल है , बार बार पड़ने को दिल करता है .