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श्याम स्मृति– साहित्य की विंडम्बना…

मुझे लगता है यह विडम्बना ही है … कि एक ओर तो हम एकाक्षरी-द्व्याक्षरी आदि छंद के रूप में हर छंद आखर-शब्द को ही छंद मानते हैं ….बालक द्वारा प्रथम शब्द..माँ ..एक छंद ही है आदि आदि …..दूसरी ओर मुक्त छंद, अतुकांत छंद आदि को अछूत | वस्तुतः हमारी सनातन छंद परम्परा तो देववाणी संस्कृति के अतुकांत छंदों से ही है | जब संस्कृत भाषा ज्ञान के तप, साधना, व धैर्य की कमी के कारण तालबद्धता व संगीतमयता की विलुप्ति से संस्कृत का जन साधारण द्वरा प्रयोग में ह्रास हुआ, जनभाषा प्राकृत व अपभ्रंश से होते हुए हिन्दी तक आई तो तुकांत छंदों का आविर्भाव हुआ और तुकांत कविता मुख्य हुई | परन्तु हिन्दी साहित्यकारों द्वारा मुक्त छंद काव्य व अतुकांत रचनाओं की प्रस्तुति भी होती रही| मैथिली शरण गुप्त जी के खंडकाव्य ..

‘सिद्धराज में देखें –
तो फिर-
सिद्धराज क्या हुआ
मर गया हाय,
तुम पापी प्रेत उसके |

कविता का पतन तकनीक के कारण नहीं हुआ अपितु भाव दोषों के कारण हुआ| कथ्यों व विषय-भाव का तादाम्य, तथ्यों की वास्तविकता व सत्यता, सहज भाषा-शैली व स्पष्ट सम्प्रेषणता का गौण होजाना एवं तकनीक छंद-तकनीक, तुकांत-अतुकांत के विवाद, विषय-ज्ञान की अल्पज्ञता, क्लिष्ट शिल्प व नए-नए शब्दों का आडम्बर आदि के कारण | स्वतन्त्रता के पश्चात हम काव्य के विषय चुनने में भटक गए कोई लक्ष्य ही नहीं रहा | पाश्चात्य हलचल की चकाचौंध में हम पूर्व व पश्चिम के जीवन तत्वों व व्यवहार में तादाम्य व समन्वय नहीं कर पाए | भौतिक सुखों व धनागम के ताने-बाने, उपकरण, साधन चुनते-बुनते हम साहित्य में भी अपने स्वदेशी विषय-भावों से भटककर जीवन के वास्तविक आनंद से दूर होते गए | विद्वानों, कवियों, साहित्यकारों, मनीषियों ने अपने कर्त्तव्य नहीं निभाये | समाज के इसी व्यतिक्रम ने व्यक्ति को कविता व साहित्य से क्या दूर किया जीवन से ही दूर कर दिया | और चक्रीय प्रतिक्रया-व्यवस्थानुसार स्वयं साहित्य भी व्यक्ति से दूर जाने लगा |

डॉ. श्याम गुप्त

नाम-- डा श्याम गुप्त जन्म---१० नवम्बर, १९४४ ई. पिता—स्व.श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता, माता—स्व.श्रीमती रामभेजीदेवी, पत्नी—सुषमा गुप्ता,एम्ए (हि.) जन्म स्थान—मिढाकुर, जि. आगरा, उ.प्र. . भारत शिक्षा—एम.बी.,बी.एस., एम.एस.(शल्य) व्यवसाय- डा एस बी गुप्ता एम् बी बी एस, एम् एस ( शल्य) , चिकित्सक (शल्य)-उ.रे.चिकित्सालय, लखनऊ से वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक पद से सेवा निवृत । साहित्यिक गतिविधियां-विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध, काव्य की सभी विधाओं—गीत, अगीत, गद्य निबंध, कथा, आलेख , समीक्षा आदि में लेखन। इन्टर्नेट पत्रिकाओं में लेखन प्रकाशित कृतियाँ -- १. काव्य दूत, २. काव्य निर्झरिणी ३. काव्य मुक्तामृत (काव्य सन्ग्रह) ४. सृष्टि –अगीत विधा महाकाव्य ५.प्रेम काव्य-गीति विधा महाकाव्य ६. शूर्पणखा महाकाव्य, ७. इन्द्रधनुष उपन्यास..८. अगीत साहित्य दर्पण..अगीत कविता का छंद विधान ..९.ब्रज बांसुरी ..ब्रज भाषा में विभिन्न काव्य विधाओं की रचनाओं का संग्रह ... शीघ्र प्रकाश्य- तुम तुम और तुम (गीत-सन्ग्रह), व गज़ल सन्ग्रह, कथा संग्रह । मेरे ब्लोग्स( इन्टर्नेट-चिट्ठे)—श्याम स्मृति (http://shyamthot.blogspot.com) , साहित्य श्याम (http://saahityshyam.blogspot.com) , अगीतायन, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान, छिद्रान्वेषी एवं http://vijaanaati-vijaanaati-science सम्मान आदि—१.न.रा.का.स.,राजभाषा विभाग,(उ प्र) द्वारा राजभाषा सम्मान,(काव्यदूत व काव्य-निर्झरिणी हेतु). २.अभियान जबलपुर संस्था (म.प्र.) द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान( महाकाव्य ‘सृष्टि’ हेतु ३.विन्ध्यवासिनी हिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ स्मृति सम्मान, ४. अ.भा.अगीत परिषद द्वारा अगीत-विधा महाकाव्य सम्मान(महाकाव्य सृष्टि हेतु) ५.’सृजन’’ संस्था लखनऊ द्वारा महाकवि सम्मान एवं सृजन-साधना वरिष्ठ कवि सम्मान. ६.शिक्षा साहित्य व कला विकास समिति,श्रावस्ती द्वारा श्री ब्रज बहादुर पांडे स्मृति सम्मान ७.अ.भा.साहित्य संगम, उदयपुर द्वारा राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान ( शूर्पणखा-काव्य-उपन्यास हेतु)८ .बिसारिया शिक्षा एवं सेवा समिति, लखनऊ द्वारा ‘अमृत-पुत्र पदक ९. कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगालूरू द्वारा सारस्वत सम्मान(इन्द्रधनुष –उपन्यास हेतु) १०..विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान,इलाहाबाद द्वारा ‘विहिसा-अलंकरण’-२०१२....आदि..

3 thoughts on “श्याम स्मृति– साहित्य की विंडम्बना…

  • धन्यवाद विजय जी …गुरमेल सिंह जी…

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. अतुकांत कविता में भी कविता का सौन्दर्य आ सकता है. इस बारे में कोई भी दुराग्रह अनुचित है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    डाक्टर साहिब अच्छा लेख है .

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