कहानी

नकेल



 राधिका जी के सामने अख़बार पड़ा था। ख़बर कल की थी। यह खबर  उन्ही के शहर की एक दुर्घटना की थी। विचलित थी वह , अख़बार की  खबर  से नहीं बल्कि उनके सामने ही घटी थी वह दुर्घटना। वह कल दोपहर बाद भोजन के पश्चात घर से अपने ऑफिस आने को निकली थी कि राह में एक आवारा सांड ने एक मोटरसाईकल चला रहे युवक को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोर से थी कि युवक एक जीप से टकरा गया। देखते ही देखते एक घर का चिराग बुझ गया। भीड़ इक्क्ठी हो गई।

      लोगो ने जब राधिका जी की कार देखी तो उनकी कार को घेर लिया। कुछ लोगों ने नारे भी लगाने शुरू कर दिए। राधिका नगरपालिका अध्यक्ष  थी तो लोगों का रोष दिखाना स्वाभाविक ही था। वह परेशान हो उठी कि वह अब लोगों को क्या जवाब दे। आवारा पशु तो सच में ही परेशानी के  कारण बनते  जा रहा था।

      ” मैडम ! गाड़ी आगे बढ़ा दूँ क्या !!” ड्राइवर ने उनसे पूछा।

 ” नहीं रोको गाडी को , मुझे बात करने दो और बच्चे को देखने दो। “

तब तक युवक के परिवार के कुछ लोग आ गए थे। राधिका जी गाडी से उत्तर कर भीड़ से जगह बनाती हुई युवक के शव तक पहुंची। देख कर आंसू ना रोक सकी।

     ” मैडम ! घड़ियाली आंसू ना बहाओ और शहर के हालात पर नज़र डालो !! यहाँ हर रोज़ एक -दो ऐसी ही दुर्घटना होती है। ” भीड़ में से किसी ने कहा।

     वह किसी तरह युवक के परिज़नों को सांत्वना देकर और लोगों को कुछ कर ने का आश्वासन दे कर कार में बैठ कर ऑफिस आ गई। ऑफिस में मन तो नहीं लगा लेकिन मन का क्या ? जिम्मेदारियों से भाग तो नहीं सकती थी ! वह सोचने लगी कि आखिर यह समस्या कैसे सुलझेगी। उन्होंने कुछ समाज सेवी  संस्थाओं को सम्पर्क किया और उनके प्रधान को  अगले दिन आने का आग्रह किया।

    अगले दिन  शहर के कुछ सामाजिक संस्थाओं  के प्रधान और पार्षदों के साथ  उनकी मीटिंग थी। सबसे पहला प्रश्न था कि शहर में  ये पशु आते कहाँ से हैं और गौशालाओं में इनका प्रबंधन क्यों नहीं हो रहा क्यों ये सड़कों पर आवारा भटकने को छोड़ दिए जाते हैं।

    गौशाला प्रबंधक बोले , ” मैडम ये पशु गाँव से लोग रातो – रात शहर की सीमा में छोड़ जाते है।क्यों कि  गाँव में इनके लिए कोई भी उचित प्रबंध ही नहीं है। इनमे से कुछ पशु शहर में आ जाते हैं और कुछ वहीँ सड़क के साथ लगते खेतों में चले जाते हैं। वहां से हड़काए जाने पर वे सड़कों पर टहलते -भागते दुर्घटना का कारण बनते हैं। ऐसे ही ये शहर में भी दुर्घटनाओं के कारण बनते हैं। जहाँ तक गौशाला में इनको रखने की बात है तो वहां पहले से ही पशु बहुत अधिक संख्या में हैं तो और पशु रखना संभव ही नहीं है। “

  ”  लेकिन  इन पशुओं की संख्या बढ़ती क्यों जा रही है ? एक दिन तो ऐसा होगा की पशु अधिक और इंसान काम नज़र आएंगे यहाँ ! ” सवाल फिर से रखा गया।

” देखिये पुराने ज़माने में बैलगाड़ी होती थी।  लोग बैलों को हल चलाने के लिए काम लिया जाता था। बछड़ों को उनके जन्म के साथ तय कर दिया जाता था कि कौनसा बछड़ा बैल बनाया जायेगा और कौनसा सांड बना कर प्रजनन के लिए तैयार किया जायेगा। दोनों की अलग तरीके से खान -पान होता था। बैल बनाये जाने वाले बछड़ों की नाक में समय रहते ही नकेल डाल दी जाती थी। जिस कारण  वे सधे हुए सीधे चल सकें। लेकिन अब मशीनों अंधानुकरण  ने सारी  व्यवस्था ही बिगाड़  दी है । छोटे से छोटा किसान भी हल चला कर नहीं बल्कि आधुनिक मशीनों से खेती करना चाहता है। चाहे उसे वे सभी साधन किराये पर ही क्यों ना लेना पड़े। ऐसे में किसान पर आर्थिक भार हो जाता है। वह कर्ज़दार हो कर कई बार प्राण घातक कदम भी उठा लेते हैं। अनपढ़ किसान जागरूक नहीं है घर में सस्ती खेती का साधन उपलब्ध होते हुए भी महंगी मशीनो की तरफ भाग रहा है। ” दूसरी सामाजिक संस्था के प्रधान जी कह रहे थे।

 ” सही बात है आपकी !  गायों को दूध के लिए पाल ली जाती हैं और बछड़ों को खुला छोड़ दिया जाता है जो एक दिन आवारा सांड बन लोगों के लिए मुश्किल पैदा करते हैं। ” राधिका जी ने समर्थन किया।

” गाँव ही क्यों शहर में भी तो यही हाल है ! कई लोग गाय आदि रखते है , दूध दुह कर दिन में खुला छोड़ देते है। गलियों में आवारा घूम कर शाम को फिर से ठिकाने पहुँच जाती है। “

 ” हाँ जी सच है ! और ये भी सच है कि कई धर्म -कर्म करने वाले लोग गली -चौराहों पर चारा डलवाते हैं। अपने घरों के आगे उनके लिए पीने का पानी के लिए व्यवस्था करते हैं। लेकिन ये वह नहीं जानते की ऐसा करके वे ‘ रक्षा में हत्या ‘वाली कहावत को चरितार्थ ही करते हैं। “

   ” और नहीं तो क्या ! इस तरह ही तो ये एक जगह जमा हो कर लड़ते हैं या बीच राह में खड़े हो जाते हैं। “

” हाँ , समस्या बहुत गंभीर है। लेकिन हर समस्या का हल तो होता ही है। और इसी समस्या का हल करने में मेरा सहयोग कीजिये। ” राधिका जी ने कहा।

” जी हाँ !! हल क्यों नहीं है। लेकिन जब हर काम सरकार पर थोप दिया जाये और अपने -अपने कर्तव्य हर नागरिक भूल जाये  तो हमें हल मिल ही नहीं सकता।”

” हाँ नागरिकों का जागरूक होना भी जरुरी है। “

” अभी तो हमारे पास इन आवारा पशुओं की समस्या से निजात पाने की प्राथमिकता है। सबसे पहले तो बाहर से जो पशु हमारे शहर में छोड़े जाने पर रोक लगनी चाहिए। इसके किये हर नाके  पर पुलिस की व्यवस्था होनी चाहिए। दूसरी बात ये कि शहर वासी हर कहीं पशुओं के लिए चारा और पानी की व्यवस्था ना करें। इसके लिए नियत जगह गौशाला है। जो भी शहरवासी  पशु रखे वह नगरपालिका से लाइसेंस लें और आवारा घूमते हुए पकडे जाने पर सजा का या जुर्माने का कड़ा प्रावधान रखा जाय। “

” देखिये राधिका जी ! मेरे ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय है तो मेरे पास मेरे ट्रक -बस आदि रखने की बहुत खुली जगह है। वहां पर आप इन पशुओं को रखा जा सकता है लेकिन उनके चारा -पानी की व्यवस्था आपको ही करनी होगी। ” तीसरे सज्जन ने कहा तो राधिका जी को राहत  सी महसूस हुई।

  उन्होंने मान लिया।लेकिन यह समस्या का हल तो नहीं था। बस फ़ौरी तौर पर राहत थी। जब तक आमजन अपने कर्तव्य नहीं समझेगा वह ही क्यों , कोई भी क्या कर सकता है।

   उस दिन मौसम बादलों की उमस भरा था। शाम तक बादल बरस गए। राधिका जी का मन और आसमान दोनों ही हलके से हो गए।

   शाम को अपनी बालकॉनी से हलकी फुहार का आनंद ले रही थी राधिका जी कि एक शोर ने उनका ध्यान भंग कर दिया। कई  मोटर बाइक सवार तेज़ स्पीड में विचित्र से  हॉर्न बजाते हुए और हो-हल्ला मचाते हुए  गली से गुज़रे  थे।  ये अभी युवा होते बच्चे थे।

   दिशाहीन बच्चे ! राधिका जी ने तो यही सोचा कि दिशाहीन बच्चे ही हैं। इनको नहीं मालूम कि इन्हे क्या करना है। माता-पिता अपनी दुनिया में व्यस्त , बच्चे अपनी दुनिया में। आधुनिक सुख सुविधाएं बच्चों को अकर्मण्य और दिशाविहीन कर रही है। वे चिंतित थी कि  देश का भविष्य यूँ सड़कों पर आवारा घूम कर लोगों की परेशानी का कारण  बन रहा है।उनको दुःख होता था कि ये भटके हुए बच्चे ही दुष्कर्म जैसा कदम उठा लेते हैं।

उनको अपना जमाना याद आया कि उनके पास एक दिशा थी कि उन्हें भविष्य में क्या करना है और क्या बनना है और यही दिशा अपने बच्चों के सामने भी रखी।

      आज कल बच्चों को क्या होता जा रहा है। जिन बच्चों के सामने उनका लक्ष्य हैं वे तो अपनी मंज़िल की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। जिनका कोई लक्ष्य नहीं वे परेशानी का कारण  बनते जा रहे हैं। और यही खाली दिमाग शैतानी कर जाता है कि ‘ लम्हों ने खता  की है सदियों ने सज़ा पाई ‘ , वाली बात हो जाती है।

    वह सोच रही थी कि इतनी धार्मिक संस्थाए है जो सभाएं करती है ,लोगों पर कृपा बरसाती है । वे अगर स्कूलों में सप्ताह में दो दिन भी एक -एक घंटा दे और बच्चों में सुविचार और सोहार्द्य पैदा करें तो कितना अच्छा होगा।

    राधिका की रोज़ की आदत है की वह सुबह उठ कर गायत्री मन्त्र की सीडी लगा देती है। उसी दौरान उनके पोता -पोती भी स्कूल के लिए तैयार हो रहे होते हैं। एक दिन उनको सुखद आश्चर्य हुआ कि उनका पोता भी अपना काम करते हुए गायत्री मन्त्र गुनगुना रहा था।बच्चे कच्ची मिट्टी होते हैं उन पर असर भी होता है। जैसा माहोल देंगे वैसे ही बच्चे बनेंगे।

    ” माँ ! आरती का समय हो गया चलिए। ” बहू  ने कहा तो उनकी तन्द्रा भंग हुई। आरती करते हुए उन्होंने सोचा कि बालकों को भी सही दिशा निर्देश देना भी जैसे नकेल डाल देना ही तो हैं। सही समय पर सही सलाह -मार्ग दिखाया जाय  तो वे क्या नहीं कर सकते।   वह अगले दिन कुछ ऐसी ही संस्थाओं और स्कूलों से संपर्क साधेगी। सोच कर मन हल्का सा हुआ उनका। लेकिन मन शांत तो तभी होगा जब सब कुछ सही तरीके से समस्याएं हल हो जाएँगी। परन्तु क्या इसप्रकार उनके अकेले  सोचने से हल होगा ! वह तो यही सोचती है कि  हां ! क्यों नहीं होगा ! वह एक बहुत लोगों की सोच बदलेगी तो दायरा बढ़ता ही जायेगा। वह पहल करने का दृढ़ -निश्चय कर चुकी थी।

   

 

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

2 thoughts on “नकेल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    उपासना जी अच्छी प्रेरणा देने वाली कहानी , यह सही नकेल है आज के बच्चों सेध देने के लिए .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी, उपासना जी. हर समस्या का एक समाधान होता है. आवश्यकता है उसको खोजने की और उस पर निष्ठापूर्वक चलने की. इस कहानी से यही प्रेरणा मिलती है.

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