कविता

मेरा पहला प्यार

मेरा पहला प्यार
वो गुलाबी जाड़ा
पसरा हुआ धूप
मेरे छत पर
खिली धूप मेँ
नहाई हुई सी
ठिठकी थी
पहली बार
जब नजरेँ मिली थी तुमसे
पहली बार
तुम्हारा व्हाइट शर्ट
चाँदनी रात मेँ
चाँद की तरह खिलता हुआ
मेरी नजरोँ मेँ समा गया . . .
इन वावरी नैनोँ को
होने लगा इन्तजार
उस व्हाईट शर्ट का
न मालूम नाम तुम्हारा
तुम्हारी मुस्कुराहट पे
होने लगी निसार मै तो
पढ़ने लगे थे तुम मेरी
नजरोँ की भाषा
मेरी बैचेनी
मेरी तड़प
मेरा सब कुछ . . .
रंगीन होली थी उस दिन
जब मैने तुम्हेँ देखा बेरंग
सफेद दूधीया शर्ट को
मैँ बना डालती
लाल पीले गुलाबी
पर तुम बच निकले
मुस्कुराते हुए
हाए . . .
इक दिन मैँने जाना
नाम तुम्हारा “शबीर”
हैरान हुई
तुम “संदीप” नहीँ “शबीर”हो
कहते हैँ प्यार अंधा होता है।
मेरा पहला प्यार तो
अंधा हो नहीँ सकता
सीखा था उसने
धड़कना दिल का
पहली बार
महसूसा था अहसास
प्यार का पहली बार . . .
हम दोनोँ साथ साथ
होली ईद मनाना चाहते
मैँ “सजदा “करती
वो प्राथनाएँ करता
इस आँख मिचोली मेँ
बीत गए पूरे साल
कुनकुनाती सर्दी ने
फिर से दस्तक दी थी
मेरे शहर मेँ
गुलाबी हो गया था
मेरा कुनबा भी
ओर वो एक सर्द सुबह
जब मैने पढ़ा
“बाबरी-विध्वंश”
और मैने देखा
तुम्हारा मासूम चेहरा
छुपा लिया मैने अपना चेहरा
अखबार के पन्नोँ से
जिसमेँ दर्ज थी
जमीँदोज होते मेरे सपने . . .
आज मैने जाना
की नहीँ जाती मुहब्बत इंसान से
मुहब्बत तो होती है
हिन्दू और मुसलमान से
जल उठी मेरी अयोध्या नगरी
मच गया हाहाकार
हो चुका सर्वनाश
मेरे पहले प्यार का
ढहती जा रही थी
मेरे प्यार की ईमारतेँ
ढहता जा रहा था
मेरा वजूद
शांत सपाट कर्फ्यूग्रस्त सड़कोँ पर
समा गई थी वीरानगी
एक कमरे मेँ बंद
दफन हो रही थी
मेरी आत्मा
मेरा सर्वस्व
मेरा सब कुछ
आह!
मेरा पहला प्यार!!!

“सीमा संगसार”

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

One thought on “मेरा पहला प्यार

  • विजय कुमार सिंघल

    कविता अच्छी है, पर आप कहना क्या चाहती हैं यह स्पष्ट नहीं हुआ.

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