गीतिका/ग़ज़ल

वो हलकी हलकी बारिशें

वो हलकी हलकी बारिशें मुझे अब भी याद है

न साथ होके भी तू मेरे ही साथ है.

हर बात कर ली मैंने जब दूर जा रही

वो अब भी अधूरी है जो असली बात है.

झरना सा झर रहा था आँखों से मोती का

मैं चुन न पाया उनको, मलाल आज है.

उसकी रजा की सोच कर चुपचाप बैठा था

दिन तो गुजर गए बहुत एक बाकी रात है.

मैंने खुदी को समझा सबसे करीब उसके

पर सूना है उसका कोई और खास है.

हर शब पुकारे मुझको आ जा करीब आ जा

कैसे कहूँ मैं भोर की अलग बिसात है.

वो लडकियां जो सडकों पर शिकार बन रही

क्यों दुनिया में उनके लिए फैला तेज़ाब है?

वो छत पड़ोसियों की, वो पतंगें उड़ाना

वो यादें भुरभुरी से मेरे अब भी साथ हैं.

-अश्वनी कुमार

 

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

One thought on “वो हलकी हलकी बारिशें

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल, अश्वनी जी.

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