कविता

कविता

कहीं है नींद का शहर
कहीं उजालों की बारिश है
समंदर की गहराइयों से
हर दिल की गुजारिश है
जमकर बादल बरसते हैं जब
मन मयूर सा झूमे है तब
कहीं है मदहोशियों का आलम
कहीं ये दिल शोर मचाती है
तुम भी जरा उस लय को समझो
और समंदर के तूफानों से कह दो
यहाँ चांदनी है फैली
चारों ओर उजाले हैं
पंछी है करते सपनों की दुनिया का स्वागत …
और हर शय कर रही तुम्हारा मधुर इंतजार …

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

One thought on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, संगीता जी.

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