कविता
कहीं है नींद का शहर
कहीं उजालों की बारिश है
समंदर की गहराइयों से
हर दिल की गुजारिश है
जमकर बादल बरसते हैं जब
मन मयूर सा झूमे है तब
कहीं है मदहोशियों का आलम
कहीं ये दिल शोर मचाती है
तुम भी जरा उस लय को समझो
और समंदर के तूफानों से कह दो
यहाँ चांदनी है फैली
चारों ओर उजाले हैं
पंछी है करते सपनों की दुनिया का स्वागत …
और हर शय कर रही तुम्हारा मधुर इंतजार …
अच्छी कविता, संगीता जी.