कविता : “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी”
मैथिली शरण गुप्त की रचना “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में दूध और आँखों में पानी” को लेकर आज की सबला नारी पर एक व्यंग .
मैथिलीजी अपनी उस अबला का अब नया रूप देख लो,
आँचल कहा उड़ गया हवा में उसका अब नया स्वरूप देख लो,
आपकी वो अबला अब बनकर नयी नयी मिस,
रोज अखबारों व समाचारों की खबरे बन रही है दे देकर किस,
उनके उठने बैठने का तरीका
चलने फिरने का तरीका लिख रहा है दूसरी कहानी,
उनकी आँखों में नहीं अब हमारी आँखों में है पानी…..
मैथिली जी अपनी उस अबला का देख कर ये परिवर्तन ,
अगर आज आप जिन्दा होते तो बहुत रोता आपका मन,
आपने जब लिखा वो भी जरुरी था,
अब ये लिखा जाए ये भी जरुरी है
क्यूकि अति तो हमेशा ही बुरी है,
नारी ही तो समाज की निर्माता है ,
उसका दिया हुआ संस्कार ही तो बच्चों में आता है
और वो बच्चे ही तो करते है समाज का निर्माण
और उन्होंने ही दी है भारत को सदैव अलग पहचान,
हे नारी ! हमने माना आप बहुत समझदार हो,
ये भी हमने जाना आप आज़ादी की हकदार हो,
पर आपकी ये आजादी तोड़ रही मर्यादा सारी ,
ये समाज पर पड़ रही है बहुत भारी ,
हे नारी! तुमको लज्जा नहीं आती देखकर अपना शोषण,
हर जगह विज्ञापन, पोस्टरों , सिनेमा में अपना नंगा तन,
तुम तो मर्यादा शालीनता की खान थी ,
आदर्श संस्कृति की पहचान थी ,
पूरे भारत की शान थी,
हे नारी ! तुमको यह सब देखकर संभलना होगा ,
अपने इस स्वरुप को बदलना होगा……………..!!!!!
बहुत अच्छी कविता, भाईसाहब ! आज की नारी पर आपने अच्छा व्यंग्य किया है. इस कविता को हम पत्रिका में भी छापेंगे.
धन्यवाद, विजय जी.